दैनिक सुविचार 🌺🏵️😊🙋‍♂️
February 15, 2025 at 01:31 AM
15.2.2025 स्वर्ग की कामना सब करते हैं, और बड़े-बड़े सपने देखते हैं, कि *"स्वर्ग कहीं आसमान में है। मरने के बाद हम स्वर्ग में जाएंगे।"* *"बंधुओ! स्वर्ग कहीं आसमान में नहीं है। यहीं इसी धरती पर है। आपके ही घरों में है। और हां, नरक भी यहीं पर है। वह भी आसमान में नहीं है। स्वर्ग नरक और महानरक सब कुछ यहीं पर है, इसी धरती पर।"* स्वर्ग कैसे बनता है? *"जब कोई माता-पिता और अध्यापक अपने बच्चों और विद्यार्थियों को अच्छी-अच्छी बातें सिखाते हैं। वे बातें निश्चित रूप से अच्छी होती हैं, परंतु माता-पिता एवं बच्चे, अध्यापक तथा विद्यार्थी, यदि ये सब उन बातों पर आचरण करें, तो निश्चित रूप से इसी धरती पर आप ही के घरों में स्वर्ग देखने को मिल सकता है।"* परंतु यही तो समस्या है, कि *"माता-पिता जो बातें बच्चों को सिखाते हैं, उनका वे स्वयं पालन नहीं करते, तो बच्चे कैसे करेंगे? क्योंकि बच्चे वही कुछ करते हैं, जो उनके माता-पिता के आचरण में देखते हैं। माता-पिता के आचरण को देखकर ही बच्चे सीखते हैं।" "यही नियम अध्यापक और विद्यार्थियों पर लागू होता है। जैसे कि माता-पिता और अध्यापक अपने बच्चों और विद्यार्थियों को बताते हैं कि गुस्सा मत करो, झूठ मत बोलो, चोरी मत करो, नशा मत करो आदि।" "अब माता-पिता और अध्यापक इन बातों पर स्वयं आचरण नहीं करते। इसलिए बच्चे और विद्यार्थी भी इन बातों पर आचरण नहीं करते। परिणाम आपके सामने है। किसी का कोई सुधार नहीं दिखाई देता। वह स्वर्ग केवल सपनों में ही रह जाता है, धरती पर नहीं दिखाई देता।"* *"यदि माता-पिता और अध्यापक, तथा बच्चे और विद्यार्थी, उन सब बातों पर आचरण कर लें, जो वे कहते और सुनते हैं। तो यहीं इसी धरती पर आपको स्वर्ग दिखाई दे जाएगा।"* स्वर्ग क्या है? *"स्वर्ग का अर्थ है, जहां सभ्य सुशिक्षित धनवान बुद्धिमान अनुशासित सुखी लोग रहते हैं। वह यहीं इसी धरती पर आपके परिवारों में मिलेगा।"* और नरक क्या है? *"नरक इससे उल्टा है। जहां असभ्य अशिक्षित गरीब मूर्ख अनुशासनहीन और दुखी लोग रहते हैं। असभ्यता करते हैं। गाली गलौच करते हैं। खाने को कोई अच्छा भोजन नहीं मिलता। पहनने के लिए अच्छे कपड़े, रहने के लिए अच्छे घर मकान नहीं होते। ऐसे ही फुटपाथों और सड़कों पर वे सोते हैं। वही नरक है।" "और जो यहां पशु पक्षी कीड़े मकोड़े आदि प्राणी दिखाई देते हैं, यह महानरक है। सब कुछ यहीं पर है, इसी धरती पर है, जो कि आजकल चारों ओर दिखाई दे रहा है।"* *"अतः जो कुछ आप कहते बोलते हैं, उस पर आचरण भी पूरी शक्ति के साथ अवश्य करें, और इस धरती को स्वर्ग बनाएं। तभी यह धरती रहने के योग्य बनेगी।"* ----- *"स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात।"*
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