धर्म, संस्कृति, रहस्य, ज्ञान, दर्शन ✍️🎯🙏
February 5, 2025 at 05:44 PM
: नारी धर्म :--
""""""""""""""
१--स्त्री को सदैव प्रसन्न रहकर घर के सभी कार्यों में दक्ष रहकर उन्हें प्रसन्नता के साथ करना चाहिए, घर नारी का सबसे बडा तीर्थ है!
२-- स्त्री को बाल्यकाल में पिता के संरक्षण, किशोर अवस्था में भाईयों के संरक्षण, विवाह के पश्चात् पति और वृद्धावस्था में पुत्रों के संरक्षण में रहकर ही कार्य करने चाहिए, और कभी भी स्वतंत्र रहकर इधर उधर अकेले नहीं घूमना चाहिए!
३--विवाह के पश्चात् स्त्री को सदैव अपने पति पर अनुरक्त रहकर उनकी सेवा करनी चाहिए!
४--स्त्रियों के लिए पातिव्रत धर्म ही उसका सबसे बडा यज्ञ, व्रत और उपवास है!
५--परपुरुष के साथ व्याभिचार करने वाली स्त्री समाज में निंदनीय है, और मरने पर गीदड की योनि को प्राप्त होती है!
६--जिस स्त्री के पति की मृत्यु अल्पायु में हो जाए उसे अपने पति के भाईयों के संरक्षण में रहकर अपने छोटे बच्चों का लालन पालन करना चाहिए , क्योंकि वह कन्यादान होकर अपने पिता के यहां से आई है !
७--जिस स्त्री के बच्चे बडे हों और जिसके पति की मृत्यु हो जाए वह बच्चों के संरक्षण में रहकर ब्रह्मचारिणी की तरह रहे!
८--पतिव्रता नारियां बहुत दुर्लभ होती है, १ लाख नारियों में कोई एक नारी पतिव्रता होती है, जिस स्थान में पतिव्रता नारी होती है वह स्थान तीर्थ होता है!
९--जो स्त्री मन, वाणी, और शरीर का संयम कर पति के विरुद्ध आचरण नहीं करती वह पतिव्रता कहलाती है!
१०--स्त्री भूमि और पुरुष बीज के समान होता है, अतः जैसा पति होता है, उसी के लक्षण के अनुसार स्त्री के गर्भ से संतान उत्पन्न होती है!
११-- जिस स्त्री का पति संतान उत्पत्ति ना कर सके वह अपने पति की आज्ञा लेकर देवर से या सपिण्ड से संतान उत्पत्ति कर सकती है, किंतु संतान पर अधिकार स्त्री के पति का ही होगा !
१२-- जिस स्त्री के पति की मृत्यु यौवन अवस्था में हो गयी हो वह अपने पति के सपिंड अविवाहित देवर से सभी बडों की आज्ञा से छह माह पश्चात् विवाह कर सकती है, और यदि अविवाहित देवर ना हो तो जो भी सपिंड भाई विवाहित हो यदि वह सक्षम हो तो वह उस भाई के अधीन रहकर जीवन यापन कर सकती है !
१३-- यदि विधवा स्त्री के एक बच्चा है, तो जिस देवर या जेठ से उसका विवाह हुआ है, वह उससे अधिकतम दो ही संतान उत्पन्न करे, किंतु मृतक भाई की संपत्ति के आधे हिस्से पर उसके पहले बच्चे का ही अधिकार होगा और शेष आधी सम्पत्ति को वह नारी दोनों बच्चों को दे और उन बच्चों को जो सपिंड से उत्पन्न हुए हैं उनका अपने जन्मदाता की संपत्ति के २५% भाग पर भी अधिकार होगा!
१४-- कोई भी भाई अपने पति की पत्नि पर कभी भी कुदृष्टि ना रखे, भाई जब तक जीवित है, जेठा भाई छोटे भाई की स्त्री के साथ और देवर बडे भाई की स्त्री के साथ समागम ना करे, जब तक भाई जीवित है, तब तक स्त्री देवरों के लिए गुरु पत्नी और जेठों के लिए पुत्रवधू के समान है, किंतु दैवयोग से यौवन अवस्था में पति की मृत्यु होने पर वह नारी घर के सभी बडों की आपसी सहमति से ही देवर या ज्येष्ठों के वरण करने योग्य है!
१५-- नारी देवर को देवर जी और जेठ को जेठ जी कहकर ही संबोधित करे, क्योंकि यदि वह देवर और जेठ को भाई कहे, तो उसका पति भी उसके भाई के समान होगा एसी दशा में नारी पति से समागम के योग्य नहीं होगी !
बालि की मृत्यु के बाद उसकी पत्नि तारा का विवाह छोटे भाई सुग्रीव और रावण की अनेक युवा पत्नियों का वरण विभीषण ने किया था !
१६--वागदान होने पर यदि कन्या का होने वाले पति की यदि आकस्मिक मृत्यु हो जाए तो कन्या की अनुमति लेकर होने वाले देवर से उस कन्या का विवाह कर दिया जाए, इसलिए वर के छोटे भाई को देवर कहा जाता है, अर्थात आकस्मिक स्थिति में कन्या को दिया जाने वाला वर !
१७-- जिस विधवा स्त्री का कोई देवर या ज्येष्ठ नहीं वह अपने पति के रिश्ते पिण्डज भाईयों से अपनी स्वेच्छा से सबकी सहमति से विवाह कर सकती है, और यदि वह चाहे तो अपनी बहन के पति और अन्य नाते में लगने वाले जीजा आदि से भी विवाह सबकी सहमति से कर सकती है!
१८-- जिस स्त्री का पति नपुंसक हो और संतान उत्पत्ति ना कर सके वह अपने पति की इच्छा से अपने ही पति के कुल वंश के किसी भृत्य से पति की इच्छा से संतान उत्पत्ति कर सकती है!
१९-- जो स्त्री अपने पति से द्वेष और घृणा करती हो, उस स्त्री से उसके पति को विवाह के उपरान्त दिये गये सभी आभूषण ले लेने चाहिए और तीन माह तक उस स्त्री से पति बात ना करे यदि पत्नि पति से द्वेष छोड दे और घृणा का त्याग कर दे तो पति को पत्नि का वरण पुनः कर लेना चाहिए!
२०--मदिरा पीने वाली बुरे आचरण वाली, पराये पुरुष के साथ चोरी छिपे समागम करने वाली, और पति के साथ बार बार हिंसा करने वाली पत्नि को पति को त्याग देना चाहिए!
२१-- जो स्त्री संतान उत्पत्ति ना कर सके उस स्त्री का पति अपनी स्त्री से अनुमति लेकर ही दूसरा विवाह करे!
२२-- यदि किसी पुरुष की दो स्त्रियां हो तो भी उन दोनों स्त्रियों में सदैव मधुर संबध बने रहने चाहिए, और दोनों स्त्रियां एक दूसरे का अपमान ना करें !
२३-- दो विवाह या तीन विवाह करने वाले पुरुष के साथ किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में बैठने की पहली अधिकारिणी उसकी पहली पत्नी ही है !
२४--ऋतुमति कन्या भले ही आजीवन अपने पिता के घर में रहे या भाईयों के संरक्षण में रहे किंतु भूलकर भी वह मूर्ख, गुणहीन और व्यसनी व्यक्ति से विवाह ना करे अर्थात जो पुरुष जुआ - मदिरा और पराई नारियों में आसक्त रहता है, ऐसे पुरुष से विवाह ना करे अन्यथा उसका जीवन नर्क बना रहेगा !
२५-- १७ वर्ष होते ही १८ वें वर्ष में कन्या का विवाह उसके माता-पिता अथवा भाईयों को कर देना चाहिए!
२६-- जिस कन्या के माता-पिता अथवा भाई ना हों वह स्वयं की इच्छा से किसी पुरुष से विवाह कर ले तो उसे पाप नहीं लगता !
२७-- ईश्वर ने जन्म देने के लिए नारी को और संतान उत्पत्ति के लिए पुरुष को बनाया है, अतः पति और पत्नी को ऋतुसमागम भी करना चाहिए, यह वेदों की आज्ञा है!
२८-- जो कन्या स्वयं अपना पति चुनती है और परिवार को बताए बिना पहले ही विवाह कर लेती है, वह कभी भी अपने माता-पिता अथवा भाईयों से दहेज ना ले अन्यथा वह चोर कहलाती है और पाप की भागी बनती है!
२९-- जिस कन्या के माता-पिता और भाई सक्षम तथा धनवान हैं, वे अपनी कन्या अथवा बहन को दहेज दे सकते हैं!
३०-- कोई भी वर पक्ष दहेज अपने मुंह से मांगने का अधिकारी नहीं होता, यदि कन्या पक्ष धनहीन अथवा कम धन वाले हैं तो भूलकर भी ऐसी कन्या से वह दहेज ना लें अन्यथा दहेज के रूप में दरिद्रता उस घर में प्रवेश कर जाती है!
३१-- भाईयों के मध्य यदि वाद विवाद हो तो नारियों को दोनों को समझना चाहिए, क्योंकि नारियां यदि अपने पति का पक्ष लें तो भाईयों को लकड़ियों की तरह जलाकर नष्ट कर सकती हैं, अतः विवाह के पश्चात् नारियों को भाईयों के मध्य प्रेम बनाकर रखना चाहिए!
३२-- यदि वर की आयु कन्या की आयु से ९ वर्ष अधिक है, तो वह श्रेष्ठ माना जाता है , श्रीराम और सीता के मध्य ९ वर्ष की आयु का अन्तर था !
परस्थिति के अनुसार वर की आयु कन्या से १२ वर्ष अधिक भी हो सकती है, किंतु वर की आयु यदि एक दिन भी कन्या से अधिक है, तो वह शास्त्रों में सही माना जाता है!
३३-- पिता कन्या का दान केवल एक बार करता है अतः माता पिता को सोच समझ कर अपनी कन्या के लिए वर ढूंडना चाहिए!
३४-- कन्या का दान होने के पश्चात् कन्या की जिम्मेदारी वर पक्ष की होती है, अतः कन्या का पूरा मान सम्मान वर पक्ष रखे !
३५-- भूमि अन्न उत्पन्न करता है, और कन्या कुटुंब और वंश की वृद्धि के लिए शक्तिशाली और सक्षम संतान पैदा करती है, एक संस्कारवान कन्या और शिक्षित कन्या राष्ट्र के लिए राजा को उत्पन्न करती है, अतः कन्या का तिरिस्कार ना करें और कन्या भी अपने पतिव्रत धर्म का पालन करते हुए सदैव पति की इच्छाओं को पूरी कर पति को प्रसन्न रखे यही कन्या का धर्म है और यही कन्या की गति !
हिंदू सनातन धर्म की प्रत्येक नारी को सनातन नारी धर्म की जानकारी होनी चाहिए !
इसीलिए सभी धर्म ग्रंथों का अध्ययन करके यह पोस्ट लिखी है।
👍
🙏
❤️
9