धर्म, संस्कृति, रहस्य, ज्ञान, दर्शन ✍️🎯🙏

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तुम मुझे हरा ना सकोगे, क्योंकि मैं पहले से ही हारा हुआ हूँ, तुम मुझे मेरे सिंहासन से उतार ना सकोगे, क्योंकि मैं जहाँ बैठा हूँ, वह अंतिम स्थान है। तुम मुझे दु:ख न दे सकोगे, क्योंकि मैंने सुख की आकाँक्षा को ही विसर्जित कर दिया है । ✍🏻🙏🛕 https://whatsapp.com/channel/0029Va94n0cEawe00Nisz22J https://www.facebook.com/groups/1636478649957228

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5/19/2025, 11:55:01 AM

*रामायण में छुपे दस रहस्य, जिनसे हम अपरिचित हैं...* रामायण की लगभग सभी कथाओं से हम परिचित ही हैं, लेकिन इस महाकाव्य में रहस्य बनकर छुपी हैं कुछ ऐसी छोटी छोटी कथाएं जिनसे हम लोग परिचित नहीं हैं। तो आइये जानते हैं वे कौन सी दस बातें है। 1. रामायण राम के जन्म से कई साल पहले लिखी जा चुकी थी। रामायण महाकाव्य की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की है। इस महाकाव्य में 24 हजार श्लोक, पांच सौ उपखंड तथा उत्तर सहित सात कांड हैं। 2. वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को, पुनर्वसु नक्षत्र में कर्क लग्न में हुआ था। उस समय सूर्य, मंगल, शनि, गुरु और शुक्र ग्रह अपने-अपने उच्च स्थान में विद्यमान थे तथा लग्न में चंद्रमा के साथ गुरु विराजमान थे। यह सबसे उत्कृष्ट ग्रह दशा होती है, इस घड़ी में जन्म बालक अलौकिक होता है। 3. जिस समय भगवान श्रीराम वनवास गए, उस समय उनकी आयु लगभग 27 वर्ष थी। राजा दशरथ श्रीराम को वनवास नहीं भेजना चाहते थे, लेकिन वे वचनबद्ध थे। जब श्रीराम को रोकने का कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने श्रीराम से यह भी कह दिया कि तुम मुझे बंदी बनाकर स्वयं राजा बन जाओ। 4. रामायण के अनुसार समुद्र पर पुल बनाने में पांच दिन का समय लगा। पहले दिन वानरों ने 14 योजन, दूसरे दिन 20 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और पांचवे दिन 23 योजन पुल बनाया था। इस प्रकार कुल 100 योजन लंबाई का पुल समुद्र पर बनाया गया। यह पुल 10 योजन चौड़ा था। (एक योजन लगभग 13-16 किमी होता है) 5. सभी जानते हैं कि लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा की नाक काटे जाने से क्रोधित होकर ही रावण ने सीता का हरण किया था, लेकिन स्वयं शूर्पणखा ने भी रावण का सर्वनाश होने का श्राप दिया था। क्योंकि रावण की बहन शूर्पणखा के पति विद्युतजिव्ह का वध रावण ने कर दिया था। तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा। 6. कहते हैं जब हनुमान जी ने लंका में आग लगाई थी, और वे एक सिरे से दूसरे सिरे तक जा रहे थे, तो उनकी नजर शनी देव पर पड़ गयी ! वे एक कोठरी में बंधे पड़े थे ! हनुमान जी ने उन्हें बंधन मुक्त किया ! मुक्त होने पर उन्होंने हनुमान जी के बल बुद्धी की भी परिक्षा ली और जब उन्हें यकीन हो गया कि वह सचमुच में भगवान रामचंद्र जी के दूत हनुमान जी हैं तो उन्होंने हनुमान जी से कहा कि "इस पृश्वी पर जो भी आपका भक्त होगा उसे मैं अपनी कुदृष्टि से दूर ही रखूंगा, उसे कभी कोइ कष्ट नहीं दूंगा।" इस तरह शनिवार को भी मदिरों में हनुमान चालीसा का पाठ होता है तथा आरती गाई जाती है ! 7. जब खर दूषण मारे गए, तो एक दिन भगवान राम चन्द्र जी ने सीता जी से कहा, "प्रिये अब मैं अपनी लीला शुरू करने जा रहा हूँ ! खर दूषण मारे गए, सूर्पनखां जब यह समाचार लेकर लंका जाएगी तो रावण आमने सामने की लड़ाई तो नहीं करेगा बल्कि कोई न कोई चाल खेलेगा और मुझे अब दुष्टों को मारने के लिए लीला करनी है। जब तक मैं पूरे राक्षसों को इस धरती से नहीं मिटा देता तब तक तुम अग्नि की सुरक्षा में रहो।" भगवान् रामचंद्र जी ने उसी समय अग्नि प्रज्वलित की और सीता जी भगवान जी की आज्ञा लेकर अग्नि में प्रवेश कर गयी ! सीता माता जी के स्थान पर ब्रह्मा जी ने सीता जी के प्रतिबिम्ब को ही सीता जी बनाकर उनके स्थान पर बिठा दिया ! 8. अग्नि परीक्षा का सच : रावण जिन सीतामाता का हरण कर ले गया था वे सीता माता का प्रतिबिम्ब थीं, और लौटने पर श्री राम ने यह पुष्टि करने के लिए कि कहीं रावण द्वारा उस प्रतिबिम्ब को बदल तो नहीं दिया गया, सीतामाता से अग्नि में प्रवेश करने को कहा जो कि अग्नि के घेरे में पहले से सुरक्षित ध्यान मुद्रा में थीं, अपने प्रतिबिम्ब का संयोग पाकर वे ध्यान से बाहर आईं और राम से मिलीं। 9. आधुनिक काल वाले वानर नहीं थे हनुमान जी : कहा जाता है कि कपि नामक एक वानर जाति थी। हनुमानजी उसी जाति के ब्राह्मण थे।शोधकर्ताओं के अनुसार भारतवर्ष में आज से 9 से 10 लाख वर्ष पूर्व बंदरों की एक ऐसी विलक्षण जाति में विद्यमान थी, जो आज से लगभग 15 हजार वर्ष पूर्व विलुप्त होने लगी थीऐ और रामायण काल के बाद लगभग विलुप्त ही हो गई। इस वानर जाति का नाम `कपि` था। मानवनुमा यह प्रजाति मुख और पूंछ से बंदर जैसी नजर आती थी। भारत से दुर्भाग्यवश कपि प्रजाति समाप्त हो गई, लेकिन कहा जाता है कि इंडोनेशिया देश के बाली नामक द्वीप में अब भी पुच्छधारी जंगली मनुष्यों का अस्तित्व विद्यमान है। 10. विश्व में रामायण का वाचन करने वाले पहले वाचक कोई और नहीं बल्कि स्वयं भगवान श्री राम के पुत्र लव और कुश थे। जिन्होंने रामकथा स्वयं अपने पिता श्री राम के आगे गायी थी। पहली रामकथा पूरी करने के बाद लव कुश ने कहा भी था हे "पितु भाग्य हमारे जागे, राम कथा कहि श्रीराम के आगे।"

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5/19/2025, 4:41:13 PM

#मुक्ति_और_आत्मज्ञान ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं होती किंतु आत्म ज्ञान होना ही पर्याप्त नहीं है, आत्मज्ञान के बाद भी अहंकार शेष रह जाता है। जिससे फिर वासना का उदय हो सकता है, अहंकार के बचे रहने से ही व्यक्ति फिर अपने को कर्ता एवं भोक्ता मानने लगता है जो उसके फिर जन्म मरण का कारण बन जाता है अहंकार के कारण वासना बीज रूप से विद्यमान रहती है। अतः वासना के त्याग के बिना मुक्ति नहीं हो सकती इसलिए इस वासना का प्रयत्न पूर्वक क्या करना चाहिए आत्मज्ञान के बाद जब जान लिया जाता है कि मैं शरीर नहीं बल्कि आत्मा हूं तो भी अहंकार के बच रहने के कारण मनुष्य का यह भाव बना रहता है कि मैं शरीर एवं इंद्रियां हूं जो अनात्म पदार्थ है। इन अनात्म पदार्थों में उसका मैं और मेरा भाव बना रहता है इसी को अभ्यास कहते हैं मुक्ति की इच्छा रखने वाले कोई इस भाव को भी दूर कर देना चाहिए कि मैं शरीर हूं तभी मुक्ति संभव है अन्यथा वासना का यह बीच अवसर पाकर फिर मनुष्य के संसार का कारण बन सकता है। अनेक जन्मों से मनुष्य की अनात्म वस्तुओं में आत्म बुद्धि हो गई है किंतु आत्मज्ञान के बाद जब जान लिया कि मैं आत्मा हूं जो बुद्धि एवं उसकी विधियां का साक्षी है तो उसके बाद अनात्न वस्तुओं में दृढ हुई आत्मबुद्धि का त्याग कर देना चाहिए अन्यथा यह मन फिर वासना ग्रस्त हो सकता है। वासना चाहे किसी भी प्रकार की हो संसार की हो देह की हो अथवा शास्त्रों की सभी छोड़ देनी चाहिए क्योंकि फिर शास्त्रों का भी कोई प्रयोजन नहीं रहा पुणे छोड़ ही देना चाहिए उसी प्रकार शास्त्र मात्र मार्ग निर्देशक ही है जब पहुंच गए तो फिर शास्त्रों कोई प्रयोजन ही नहीं रहा। इसलिए उन्हें भी छोड़ देना चाहिए जिसे छोड़ने की इच्छा नहीं होती वह फिर बंधन का कारण बन जाता है वासना के कारण ही मनुष्य वस्तुओं को पकड़ता है इसलिए इन तीनों की वासना का भी त्याग कर देना चाहिए उसे जबरदस्ती रोकना भी वासना ही है किसी के प्रति कोई आग्रह ना हो तो ऐसा जीवन बना लेना चाहिए इस प्रकार आत्मा में अभ्यास हो गया है उसे छोड़ देना ही मुक्ति है। वासना मन की उपज है मन की प्रवृत्ति विषयों की ओर ही होती है जिससे विभिन्न प्रकार की वासनाएँ पैदा होती है इनमें लोक वासना शास्त्र वासना एवं देह वासना की पूर्ति में ही मन की सारी शक्ति व्यय हो जाती है। जिससे वह आत्म स्वरूप को देख ही नहीं पाता इसलिए इन तीन प्रकार की वासनाओं को छोड़े बिना उसे कभी अपनी आत्मा का ज्ञान नहीं हो सकता। यह वासनाएँ ही उसे निरंतर भटकाती रहती हैं जो ब्रह्मज्ञ है, जिसको ब्रह्म ज्ञान हो गया है उन्होंने इन तीनों प्रकार की वासनाओं को ही संसार बंधन का कारण माना है, संसार बंधन नहीं है न इनके भोग बंधन है बल्कि इसके प्रति जो वासना है आसक्ति है राग है वही बंधन है।। जिससे मनुष्य उसे छोड़ना नहीं चाहता संसार अथवा उसके विषयों ने मनुष्य को नहीं बाँधा है बल्कि वासना के कारण वह स्वयं से बंधा है इसलिए इन तीनों प्रकार की वासनाओं का त्याग करना ही मुक्ति है मुक्ति के लिए और कोई श्रम साधना तपस्या नहीं करनी पड़ती। शुद्ध बुद्धि ही आत्म स्वरूप के जानने में सक्षम होती है किंतु जब उस पर वासना का आवरण चढ़ जाता है तो उसका आत्मस्वरूप लुप्त होकर वासना युक्त आवरण की प्रतीत होने लगता है, जो वासना का यह आवरण दूर हो जाता है तो आत्मा पुनः अपने शुद्ध रूप में प्रकट हो जाता है इसलिए वासना का त्याग ही मुक्ति का कारण है। आत्मा को जानने की इच्छा आनात्म वस्तुओं की वासनाओं के कारण छिप गई है मनुष्य अनात्म वस्तुओं की ही वासना करता है जो नित्य नहीं है तथा मनुष्य को कभी सुख नहीं दे सकती यही वासना जन्म मृत्यु का कारण भी है इसलिए बुद्धिमान पुरुष को इनकी वासनाओं का त्याग करके निरंतर आत्मनिष्ठा में ही स्थित रहने से इन अनात्म वस्तुओं की वासना अपने आप छूट जाती है तथा आत्मा का स्वरूप स्पष्ट भासने लगता है। जिस प्रकार अंधकार को सीधा नहीं हटाया जा सकता दीपक जलाना ही उसे हटाने का एकमात्र विधि है। उसी प्रकार आत्मज्ञान के भाव में ही मनुष्य अनात्न वस्तुओं का वासना करता है। इन वासनाओं को सीधा दूर नहीं किया जा सकता पंचाग्नि तब करने भूखे रहने शरीर को सताने धन-संपत्ति छोड़ देने नग्न हो जाने आदि से वासनाएं छूटती नहीं। झोपड़ा छोड़ देने से महल नहीं मिल जाता बल्कि महल मिल जाने पर झोपड़ा अपने आप छूट जाता है इसी प्रकार आत्मज्ञान हो जाने पर सभी प्रकार की सांसारिक वासनाएं अपने आप छूट जाती हैं । उन्हें पर्यटन करके छोड़ना नहीं पड़ता जब तक उच्च की प्राप्ति नहीं हो जाति तब तक निम्न को छोड़ना संभव है युवा सुनाएं धर्मगुरुओं के उपदेशों से छूटने वाली नहीं है और आज तक ने किसी की छूटी है। धर्मगुरु सोम उपदेश देने की वासना से दृष्ट है जिससे उनके अहंकार को तुष्टि मिलती है, इसलिए इनका कोई प्रभाव नहीं होता वासना त्याग का ही एक उपाय है मनका अंतर्मुखी करके निरंतर आत्म चिंतन में लीन रहना चाहिए इसी से बाह्य वासनाएँ छूट जाती हैं।

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5/21/2025, 9:17:23 AM

।।श्रीहरि:।। 🕉️ *शांति के लिए चुनी हुई बातें* अब शांति के लिए चुनी हुई बातें बताता हूं। रोजाना सुबह उठकर भगवान को याद करें - *त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव।* त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देवदेव।। सुबह उठते ही इस श्लोक के *भाव के अनुसार, गद्गद होकर भगवान को प्रणाम करें।* फिर *पृथ्वी, गुरुजन, संत- महात्मा , गीता जी ,गंगा जी, घर के बड़े- बूढ़े आदि को याद करके उनको नमस्कार करें।* इससे अंतः करण निर्मल होता है और शांति मिलती है। इसके बाद माता, पिता, बड़ा भाई , भौजाई ,बड़ी बहन आदि बड़ों को नमस्कार करें। *नमस्कार का बड़ा भारी महात्म्य है।* रोजाना सुबह- शाम दोनों समय बड़ों के चरणों में नमस्कार करने से बड़ी शांति मिलती है, लड़ाई- झगड़ा मिटता है, वैर भाव मिटता है। घर में परस्पर प्रेम होने से लक्ष्मी बढ़ती है और शांति भी मिलती है। लोग उस घर में अपनी कन्या देना चाहते हैं। सीमा के भीतर असीम प्रकाश, पृष्ठ८० गीता प्रकाशन *परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज* नारायण! नारायण !नारायण! नारायण!

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5/21/2025, 5:52:28 AM
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5/20/2025, 4:03:58 AM

सारी राक्षशों की सेना को पल भर में मारकर और मेघनाथ के रथ को चकनाचूर करके अब श्री हनुमानजी मेघनाद के साथ द्वंद्व युद्ध कर रहे हैं । बाबा तुलसीदास उपमा देते हैं कि ऐसा लग रहा है जैसे दो मदमस्त विशाल हाथी लड़ रहे हों। श्री हनुमानजी जोर से मेघनाथ के सीने पर मुष्ठी प्रहार कर पेड़ पर चढ़ जाते हैं और उसको मरा हुआ समझते हैं, पर चूंकि मेघनाथ को वरदान प्राप्त है अतः वो मात्र मूर्छित होता है ।।राम राम जी।।

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5/21/2025, 5:52:31 AM

श्री हनुमानजी के मुष्ठी मुक्केके पश्चात भी मेघनाद को जीवित देखकर देखकर श्री हनुमानजी समझ गए कि ये वरदान प्राप्त निशाचर है, ऐसे नही मरेगा । उधर मेघनाथ ने श्री हनुमानजी पर तरह तरह की मायावी शक्तियों का प्रयोग किया, परन्तु प्रभु श्री राम के सेवक होने के कारण व माता सीता के आशीर्वाद के प्रताप से श्री हनुमानजी पर किसी मायावी शस्त्र का बिल्कुल असर नही हुआ ।।राम राम जी।।

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5/22/2025, 6:31:25 AM

श्री हनुमानजी से जब मेघनाथ सब तरह से हार गया (सेना सहित युद्ध, फिर द्वन्द्ध युद्ध ,फिर मायावी युद्ध)तब उसे लगा कि कहीं यह वानर जीत गया तो लंका में सम्मान खतरे में पड़ जायेगा कि इंद्रजीत कहलवाने वाला मेघनाथ एक वानर से हार गया। यह सोच कर प्रभु की प्रेरणा से उसने ब्रह्मास्त्र चलाने का निर्णय किया जो कि उसने कठोर तप से प्राप्त किया था और उसको वह प्रभु राम तथा लक्ष्मण पर चलाना था। हालांकि ब्रम्हा जी ने जब श्री हनुमानजी के ऊपर बाल रूप में सूर्य गटक जाने पर ब्रह्मास्त्र चलाया था तब उन्हें यह वरदान दिया था कि अब तुम पर यह ब्रह्मास्त्र कभी असर नही करेगा, परन्तु हनुमानजी ने सोचा कि यदि ब्रह्मास्त्र का सम्मान नहीं किया तो उसकी महिमा समाप्त हो जाएगी अतः लीला वश श्री हनुमानजी की भी इच्छा रावण को समझाने की रही थी तो उन्होंने मूर्छित होने का स्वांग करने का निर्णय लिया ।।राम राम जी।।

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5/22/2025, 6:31:22 AM
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5/20/2025, 10:25:57 AM

𝐉𝐚𝐢 𝐒𝐫𝐢 𝐒𝐢𝐲𝐚𝐑𝐚𝐦 𝐉𝐢🚩🚩 *प्रसंग --* *आगे चले बहुरि रघुराया।* *रिष्यमूक पर्वत नियराया।।* *भगवान अवश्य ऐसी कृपा करेंगे। क्योंकि कृपा करने के लिए ही भगवान -- आगे चले बहुरि रघुराया।* *श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि भगवान आगे चले। श्री राम जी वन में आगे-आगे चल रहे हैं। श्री लक्ष्मण जी और माता जानकी पीछे-पीछे, पर वर्णन आता है कि श्री राघवेन्द्र के कमल कोमल निरावरण चरण के पग तल में कंटक चुभे हैं। पर श्री किशोरीजी के और श्री लक्ष्मण जी के पैरों में कांटे नहीं हैं। ••••क्यों? मानो प्रभु ने कंटकों से कह दिया कि लगना है तो हमारे चरण में लग जाना, पर श्री किशोरीजी और श्री लक्ष्मण जी के चरणों में मत लगना। कहा -- क्यों? प्रभु बोले -- इसलिए क्योंकि वे हमारे पीछे पीछे आ रहे हैं। अगर उनके चरणों में लगोगे तो लोग यही कहेंगे कि भगवान के पीछे चलने वालों के भी चरणों में कांटे लगते हैं। फिर हमारे पीछे चलेगा कौन? और भगवान ने कहा -- हम आगे इसीलिए चलते हैं ताकि अपने पीछे चलने वालों के कांटे अपने चरण में स्वीकार कर लें, और उनका मार्ग निष्कंटक बना रहे। इसीलिए भगवान आगे आगे चलते हैं।* *श्री राम जी आगे चले और जो इनको आगे करके चले, वे कभी पीछे नहीं पड़े और इसीलिए बानर सब असमर्थ हुए सिंधु पार जाने में, और श्री हनुमान जी सिंधु पार कर गये, क्योंकि --* *जासु हृदय आगार* *बसहिं राम सर चाप धर।* *हनुमान जी के हृदय में आगे हैं श्री राम जी और इसीलिए श्री हनुमान जी कहते हैं कि हम तो लंका जा ही नहीं रहे हैं, ले जाये जा रहे हैं।* *आप ले जाये जा रहे हैं तो आगे जा कौन रहा है? आगे चले बहुरि रघुराया, जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर। भगवान ही आगे चल रहे हैं।* *अच्छा एक अद्भुत बात है। श्री हनुमान जी हृदय में आगे रखते हैं श्री राम जी को और पूंछ है उनके पीछे। वे पूंछ को आगे नहीं रखते हैं। हम आगे अपनी पूंछ को रखते हैं, भगवान को भी पीछे रखते हैं। कहते हैं-- सबसे आगे हमें पूछो, फिर चाहे किसी को पूछो चाहे मत पूछो। सारी समस्या ही पूंछ की है।* *लोग आज भी कहते हैं -- उनके यहां गये, चाय की कौन कहे, पानी तक के लिए नहीं पूछा। औरn लोग प्रशंसा भी करते हैं तो कहते हैं कि उनकी बड़ी पूंछ है। कुछ लोग कहते हैं-- इनकी तो यहाँ से लेकर वहाँ तक पूंछ है और जो लोग उदास होते हैं, वे घरों के बाहर बैठे रहते हैं वृद्ध। वे कहते हैं कि क्या बताएँ? ••• क्यों कोई परेशानी? बोले -- और तो कुछ नहीं, पर अब घर में हमारी पूंछ नहीं रही। *सब जगह पूंछ का झगड़ा और सब पूंछ के पीछे पड़े हैं और श्री हनुमान जी के पीछे पूंछ पड़ी है।

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5/20/2025, 4:03:54 AM
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