पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ जी
January 26, 2025 at 05:54 AM
कभी सोचा है, असद उद दीन ओवैसी बैरिस्टर ही क्यों बने होंगे ? भारत में संसदीय आरक्षण के अंतर्गत लोकसभा की 85 सीटें अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित हैं, ध्यान रहे कि अनुसूचित जातियों में सिर्फ हिंदुओं, बौद्धों एवं सिखों को स्थान मिला हुआ है, भारतीय जनता पार्टी एवं उसके कुछ सहयोगियों को छोड़कर अन्य सभी दल मुस्लिमों और ईसाइयों को अनुसूचित जातियों में हिस्सा दिलाने की मुहिम छेड़े हुए हैं. एक अनुमान के मुताबिक़ अनुसूचित जातियों के लिए अभी आरक्षित सीटों में से 34 सीटें मुस्लिम वोटों के प्रभाव क्षेत्र में हैं, अर्थात मुस्लिम यहाँ सबसे प्रभावी संख्याबल का निर्माण करते हैं. सनद रहे कि एक बार अगर आरक्षित सीटों में इस्लामवादियों को एंट्री मिल गई तो यह सीटें हिंदुओं/बौद्धों/सिखों के अनुसूचित जाति से सम्बंधित उम्मीदवारों के लिए जीत पाना लगभग असंभव हो जायेगा. कह सकते हैं कि भविष्य में अनेक 'जिन्ना' इन सीटों पर जीतेंगे और भारत की संसदीय व्यवस्था को शरिया के आधार पर निर्देशित करेंगे. भारत विभाजन के समय ऐसी ही चूकों से हम सिलहट, खुलना और चटगाँव गवाँ चुके हैं. आज उन क्षेत्रों में कोई भी अनुसूचित जाति के हिंदुओं का नामलेवा भी नहीं बचा है. अनुसूचित जातियों की राजनीति करने वाले दलों के नेता इस संभावित आत्मघात के सबसे बड़े सूत्रधार रहे हैं और भविष्य के 'जिन्नाओं' के हाथ में हिन्दू/बौद्ध/सिख दलितों के भविष्य को सौंपने की राजनीति में लिप्त हैं. वहीं भारतीय जनता पार्टी इस विषय पर कठोर निर्णय लेने में सक्षम है जिसकी बानगी हम असम में देख सकते हैं. नागरिकता संसोधन विधेयक की सहायता से भाजपा ने असम में 18 विधानसभा क्षेत्रों में स्थानीय नागरिकों को अनुसूचित जनजाति समूहों में विस्तार देकर इन सीटों को 'जिन्नाओं' के हाथ में न जाने देने की अपनी प्रतिबद्धता को स्पष्ट किया है. जो असम में भाजपा कर रही है वही आगामी दशकों में भारत के अन्य राज्यों में करने की जरूरत पड़ने वाली है. दलितों की राजनीति करने वाले तो "जिन्ना" के भारतीय पैरोकार मात्र हैं. जरा सोचिए ! ------------------------------------------------------------------- महत्व की टिप्पणी : कभी सोचा है, असद उद दीन ओवैसी बैरिस्टर ही क्यों बने होंगे ? क्या आप को पता है कि आज स्वतंत्र भारत में बैरिस्टर होना महत्व नहीं रखता, वह ब्रिटिश राज में ही महत्व का था ? भारत स्वतंत्र हुए 70 साल हुए, और असदउद्दीन ओवैसी केवल 49 साल के हैं (13 मे 1969 यह जन्म दिन मिलता है) बैरिस्टर हुए तब की तारीख दी नहीं है लेकिन यह मानना गलत नहीं होगा कि पचीस वर्ष के तो होंगे ही । यह साल आता है 1994, याने स्वतन्त्रता के बाद 47 साल। तब क्यों हुए बैरिस्टर लंदन जा कर जब बैरिस्टर होना महत्व का नहीं रहा था ? और भारत लौटकर कर कौनसी वकालत कर रहे हैं? वो पढ़ाई सस्ती नहीं होती, भले ही ये अमीर घर से हैं । यहाँ याद करना चाहिए कि उन्हें जो पक्ष विरासत में मिला है वह पक्ष MIM के स्थापन करनेवाले थे कासिम रिजवी जिनके गुर्गे रजाकार कहलाते थे । हैदराबाद स्टेट को भारत में विलीन न होने देने के निर्णय पीछे उनका ही ज़ोर था, और भारत स्वतंत्र होते ही सरदार पटेल ने रियासतों का विलिनीकरण जो शुरु किया तो MIM ने लड़ लेने के तेवर दिखाये। MIM के रजाकारों ने हिंदुओं पर जो अत्याचार किए वो ताजा इतिहास है, भले ही कॉंग्रेस ने इसे सिलेबस में न आने दिया हो। इन सब बातों का असद उद दीन ओवैसी से क्या संबंध यह आप के मन में प्रश्न आ रहा है तो इसका उत्तर यह है कि जब सरदार पटेल ने सेना भेजकर हैदराबाद विलीन करवा लिया तो कासिम रिजवी पाकिस्तान चले गए लेकिन पार्टी अब्दुल वहीद ओवैसी को सौंप गए, जो असद उद दीन ओवैसी के दादाजी थे। उनके बाद उनके बेटे सुल्तान उद दीन ओवैसी और उनके बाद असद उद दीन और अकबर उद दीन ओवैसी। भारत के बँटवारे में अलगाववादी मुसलमानों के आइकन (icon) रहे थे जिन्नाह। या ये कहिए, "बैरिस्टर" मोहम्मद अली जिन्नाह (क्या बात है, सुन्नी शिया दोनों आ जाते हैं मोहम्मद और अली में) । ओवैसी के अरमान छुपे नहीं है, उसका एक इंटरव्यू देखा था कभी तब सोचा नहीं कि सेव कर रखूँ, अब इतने हैं कि थकान होती है - उस इंटरव्यू में उसने कहा था "इन्शाल्लाह, मैं इस मुल्क की तारीख (इतिहास) बदल दूँगा।" जिन्नाह ने मुसलमानों के लिए हिंदुस्तान को तोड़कर उसके दोनों बाजू में पाकिस्तान बनवाया, एक ही बाजू नहीं । यह दोनों बाजुओं का भी अर्थ समझ लीजिये । गजवा ए हिंद में हिंदुस्तान के मुसलमानों को भी खड़े होना अपेक्षित है हथियार उठाकर । ===================================== जिन्नाह बैरिस्टर थे । यह बात यहाँ के मुसलमानों में सांकेतिक महत्व रखती है। अब सोचिए ओवैसी बैरिस्टर क्यों बने। उन्होने अपनी महत्वाकांक्षा तो छुपाई नहीं है - "इन्शाल्लाह, मैं इस मुल्क की तारीख बदल दूँगा।" ===================================== पाकिस्तान बनाने में बाबासाहेब के विचार स्पष्ट थे, और वे जब हिन्दू धर्म छोड़ने को थे तब उनको मुसलमान होने के ऑफर तो थे ही । लेकिन आज बाबासाहेब का बस नाम लेनेवाले SC नेताओं ने उनकी Thoughts On Pakistan पढ़ी है या नहीं यह शंका है । वैसे उनका पूरा साहित्य कई भाषाओं में अनुवादित भी हैं और मुसलमान को लेकर उन्होने कभी अपने विचारों को sugar coat नहीं किया । जोगेन्द्र नाथ मण्डल का क्या हुआ यह नेट पर आसानी से मिल जाएगा। आज पाकिस्तान और बंगला देश में SC की स्थिति वरुण जी ने अपने पोस्ट में लिखी ही है । हिंदुओं को समझदारी से काम लेना आवश्यक है, क्षणिक निजी स्वार्थ के ऊपर उठाकर । आज क्षणिक स्वार्थ से ऊपर उठेंगे तो कल आप का श्राद्ध करनेवाले मौजूद होंगे, वरना जीते जी आत्मश्राद्ध कर सकते हैं या नहीं यह पूछिए नोटा नोटा की गर्जना करनेवालों से। और उनसे भी कहिएगा कि वे भी अपना श्राद्ध कर लें क्योंकि बचेंगे वे भी तो नहीं । मोदी जी का SC से संवाद जिन्हें खटक रहा है वे इस बात को गौर से पढे। वो आदमी आप की आनेवाली पीढ़ियों के लिए यह सब कर रहा है, उसका है कौन जिसके लिए वो करे ? वे जानते हैं कि बकासुर से भीम ही लड़ सकता है, वरना जिनके घर पांडव उतरे थे वह ब्राह्मण तो अपने वंश के दिये को बकासुर का आहार बनने भेज ही रहा था रो रो कर । काँग्रेस मोदी को समझती है, उसके साथ जुड़ी सभी देश विघातक ताक़तें मोदी को समझती हैं और इसीलिए वे मोदी को हिन्दू ही कहते हैं । दुख की बात है कि हिन्दू ही मोदी को हिन्दू माननेसे इंकार कर रहे हैं । 🖋️━━━━✧👁️✧━━━ 🔗 Join :- 👇टेलीग्राम चैनल https://t.me/pushpenra1
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