पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ जी
January 31, 2025 at 04:49 AM
गृहयुद्ध एकाएक नही होता। बंग्लादेश में 15 साल से छुटपुट घटनाएं शुरू हो गयी थीं कथित रूप से "लोकतंत्र" बचाने के नाम पर। भारत में भी जो ये संविधान बचाना है, लोकतंत्र खतरे में है, तानाशाही है, किसान, युवा, महिला, अल्पसंख्यक सब खतरे में हैं के नाम पर जो आंदोलन से लेकर बयानबाजी होती है... ये आपके अंदर ये बिठाने के लिए है कि किसी तरह आप इसे सच समझने लगें। EVM से धांधली होती है, सारे संस्थान(CBI, ED, चुनाव आयोग से लेकर सुप्रीम कोर्ट) बिके हुए हैं ये भी आपके दिमाग में डाला जाता है ताकि आपको लगे कि इस देश में न्याय नहीं मिल सकता, अब बस सड़क पर उतर कर न्याय लेना पड़ेगा। और ऐसा करकर उन्हें भारत में सिर्फ 1 करोड़ की जोम्बी भीड़ चाहिए। शाहीनबाग के समय वो सिर्फ दिल्ली के इलाकों तक सीमित रह सके। किसान के नाम पर पंजाब/हरियाणा तक सीमित हैं। लेकिन वो चाहते थे कि ये देश भर में फैले। अग्निवीर हो या NEET इसके माध्यम से उन्होंने युवाओं को भड़काने की कोशिश की। बेरोजगारी के नाम पर भी की लेकिन सफल नहीं हो सके। पहलवान से लेकर महंगाई के नाम पर वो महिलाओं को भड़काते हैं। जिहादियों/खलिस्तानियों पर एक्शन के नाम पर वो अल्पसंख्यकों को भड़काते हैं कि तुम पर अत्याचार हो रहा है। आरक्षण के नाम पर वो 70% आबादी को भड़काकर देश में आग लगवाना चाहते हैं। इन्हीं को वो गरीबी के नाम पर भी भड़काते हैं। रही सही कसर उनकी धमकियों में निकलती है जब वो अधिकारियों को धमकाते हैं कि सबकी लिस्ट है हमारे पास, सरकार में आने पर सबका हिसाब होगा। इसी तरह वो सरकार को भी धमकी देते हैं कि देश में केरोसीन और माचिस लेकर बैठे हैं। इस तरह ये बस लगे हुए हैं कि आज नहीं तो कल जनता इनकी बातों पर विश्वास करेगी। लेकिन इन सबके बावजूद वो सफल नहीं हो पाते क्योंकि सरकार मुस्तैद है। नोटबन्दी से लेकर छापे हों, NGO बन्द करने से लेकर संगठन बैन करने हों, NIA से लेकर अन्य एंजेंसियों की सक्रियता हो, सख्त कानून या फैसले लेकर सुप्रीमकोर्ट को भी इनके हिसाब से चलने से रोकना हो, सरकार हर तरह से इसे मैनेज कर पाती है। लेकिन 100% रोकना तो असम्भव है तो ये किसी न किसी रास्ते से कुछ न कुछ नया प्लान बना ही देते हैं लेकिन सरकार भी बारीकी से नजर रखकर इनके प्लान ध्वस्त कर देती है। और इसमें सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि है कि सरकार इसे प्यार से हैंडल करती है नाकि अकड़ दिखाकर या कुचलकर। क्योंकि लाशें ही तो ये चाहते हैं जिनकी चिता पर ये राजनैतिक रोटियां सेंक सकें। क्योंकि दुनिया में कोई भी आंदोलन शुरुआती समय में ऑर्गेनिक हो सकता है लेकिन अगले दिन से उसे वो लोग चला रहे होते हैं जिनके अपने इंटरेस्ट होते हैं। आज से नहीं बल्कि फ्रेंच क्रांति से मैं ये सब जान चुका हूँ जहां से ही ये वामपंथी कुत्तों का जन्म हुआ था जो राजा के बांई ओर बैठकर लेफ्ट कहलाये और चर्च वाले दाईं ओर बैठकर राइट कहलाये। और इनका जन्म ही इसलिए किया गया था कि कैसे किसी राज्य(देश) का तख्ता पलट किया जा सके और उसके बाद इतिहास में गरीबी, युवा, बेरोजगारी, तानाशाही दिखाकर सैकड़ों तख्तापलट हुए हैं। 🖋️━━━━✧👁️✧━━━ 🔗 Follow the पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ जी channel on WhatsApp: https://whatsapp.com/channel/0029VaaSx0uInlqJ2O8Y921P
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