पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ जी
February 4, 2025 at 08:46 AM
एक पुराना मगर अब भी प्रासंगिक लेख
संसार के सबसे भयानक नरसंहारों में सबसे बड़े नरसंहार ईसाइयों और इस्लामियों द्वारा हम पैगन या मूर्तिपूजकों के हैं। इसके बाद ईसाइयों और मुसलमानों द्वारा ही यहूदियों के नरसंहार आते हैं। विश्व के ईसाईकरण और इस्लामीकरण का इतिहास भयानक रक्तपात से सना हुआ है। सारा यूरोप, अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, अफ़्रीक़ा, भारत इनके शिकार करने के क्षेत्र रहे हैं। इस लेख का आधार स्पेनिश लेखक सैबेस्टियन वीलर रोड्रिग्ज़ का 15 जनवरी 2008 का लेख है जो भारत के सन्दर्भ में भी बहुत सटीक है।
"मैं बार्सिलोना में सड़क पर जा रहा था। अचानक मुझे एक भयानक सत्य का अहसास हुआ कि यूरोप की ऑश्वित्ज़ में मृत्यु हो गई है। { ऑश्वित्ज़ दक्षिण-पश्चिम पोलैंड में नात्सियों द्वारा यहूदियों को यातना दे कर मार डालने के लिये बनाये गए कैम्प थे। जहाँ द्वितीय विश्वयुद्ध के समय 60 लाख यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया गया। } हमने साठ लाख यहूदियों की हत्या कर दी और उन्हें 2 करोड़ मुसलमानों के साथ बदल दिया। हमने एक पूरी संस्कृति, विचार, रचनात्मकता, प्रतिभा को जला दिया। हमने उन लोगों को नष्ट किया जो वस्तुतः महान और अद्भुत लोग हैं। जिन्होंने संसार को उन्नत बनाया इसके बाद सहिष्णुता का ढोंग करते हुए हमने नस्लवाद के रोग के इलाज का दिखावा किया और अपने फाटकों को 2 करोड़ मुस्लिमों के लिये खोल दिया।
जो हमारे यहाँ मूर्खता, अज्ञानता, धार्मिक उग्रवाद और असहिष्णुता, अपराध की बढ़वार ले कर आये। ये काम करने में अनिच्छुक हैं और अपने परिवार का स्वाभिमान से पोषण नहीं करना चाहते। उन्होंने हमारी ट्रेनों को उड़ा दिया और अब हमारे सुंदर स्पेनिश शहर तीसरी दुनिया के गंदगी और अपराध में डूबे शहर बन चुके हैं। वह अपार्टमेंट जो सरकार की ओर से उन्हें नि:शुल्क दिए गए हैं बंद कर दिए जाने चाहिए। वे अपने सरल पड़ौसियों की हत्या और विनाश की योजना बनाते हैं। हमारे बच्चों के लिए मृत्यु की कामना करते हैं। योरोप ने कितनी भयानक ग़लती कर ली। इस्लाम की विश्व भर में आबादी लगभग एक सौ बीस करोड़ है अर्थात मुसलमान दुनिया की आबादी का 20% है। उन्हें अब तक निम्नलिखित नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।
साहित्य के लिए एक मात्र 1978 में नगीब महफूज़ को, शांति के लिये 1978 में अनवर सादात को, 1990 में इलियास जेम्स कोरी को, 1994 में यासर अराफ़ात को, 1999 में अहमद जीवाई को, औषधि शास्त्र के लिए 1960 में पीटर ब्रायन को, 1998 में फ़रीद मुराद को, इस तरह कुल हुए 7
विश्व भर में यहूदियों की कुल जनसँख्या 1 करोड़ 40 लाख है और यह वैश्विक जनसँख्या का 0.02% होता है। इन्हें साहित्य के लिए 10, शांति के लिए 8, भौतिक शास्त्र के लिए 53, अर्थशास्त्र के लिए 13, औषधि शास्त्र के लिए 45 यानी कुल 129 नोबल पुरुस्कार प्राप्त हुए हैं।
यहूदी; सैन्य प्रशिक्षण शिविरों में बच्चों के भेजे की धुलाई करके खुद को उड़ाने, यहूदियों और अन्य गैर मुसलमानों को मारने का प्रशिक्षण नहीं देते। यहूदी विमानों का अपहरण नहीं करते, न ही ओलंपिक में एथलीटों को मारते हैं। न जर्मन रेस्तरां में खुद को उड़ाते हैं । एक भी यहूदी चर्च को नष्ट करता हुआ नहीं पाया गया है। संसार में एक भी यहूदी लोगों को मारने के पक्ष में नहीं है। यहूदियों गुलामों का व्यापार नहीं करते, न ही उनके नेता काफिरों के लिए जिहाद और मूर्तिपूजकों के लिए मौत का आह्वान करते हैं। यह तो हुई स्पेनिश लेखक के लेख की बात अब हम भारत का सन्दर्भ लेते हैं।
हमने सदैव से ही बाहर से आने वाले किसी भी समूह का बिना इसका ध्यान किये कि वो समूह हमारी धरती पर किस लिए आया है, स्वागत किया है। इस्लाम के प्रारम्भिक जत्थे स्थल मार्ग से हमारी ओर बग़दाद के इस्लामी साम्राज्य के ध्वस्त होने के बाद आये थे। क़ज़ज़ाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, आज़रबाइज़ान, ईरान, ईराक़, अफ़ग़ानिस्तान इत्यादि क्षेत्रों में इस्लामी आक्रमणकारियों ने समूची हिंदू, बौद्ध आबादी को नष्ट करने का कार्य किया। इस क्रम में मंदिरों, बौद्ध विहारों को तोड़ा गया। इस से कुपित हिंदू/बौद्ध सेनापति चंगेज खान के पौत्र हलाकू खान बग़दाद पर चढ़ दौड़े। उनकी प्रचंड मार से मुस्लिम समाज भाग कर शांत क्षेत्र यानी भारत की केंद्रीय भूमि की ओर आया।
दुर्भाग्य मंदिरों, बौद्ध विहारों के ध्वंस के कारण कूटे-पीटे गए इस्लामियों को मंदिरों, बौद्ध विहारों के मूल देश भारत भर में ही स्थान दे दिया गया। सामान्य राजनैतिक चतुराई तो कहती है कि किसी भी भिन्न सांस्कृतिक समूह पर दृष्टि रखो। ध्यान रखो कि वो क्या कर रहा है ? उसका चिन्तन, खान-पान, शिक्षा क्या है मगर मुंडे-मुंडे मतिर्भिन्ना मानने वाले समाज ने इसका ध्यान नहीं किया। परिणामस्वरूप काफ़िर वाजिबुल क़त्ल, बुतपरस्ती कुफ़्र है और कुफ्र को मिटाना प्रत्येक मुसलमान का कर्तव्य है, मानने वाले गिरोह भारत भर में फ़ैल गये।
स्वयं को स्थापित, सबल करने के बाद इन्होंने बाहर से मदद जुटाई और शरण देने वाला राष्ट्र, शरण मांगने वालों के लम्बे समय तक अनाचार, व्यभिचार, जज़िया, बलात्कार, ग़ुलाम बनाये जाने का शिकार हुआ। इसी धरती पर इस्लाम ने जला-जला के, पीट-पीट के, आरे से चीर के, दीवार में ज़िंदा चुनवा कर, टुकड़े-टुकड़े कर के, भूखा रख के, जघन्य बलात्कार करके, अपमानित कर के करोड़ों लोग शताब्दियों तक लगातार मारे हैं। ऐसा भयानक चिंतन प्रारंभ में ही थाम लिया जाना चाहिए था। इसके तीखे दांत तोड़ दिये जाने चाहिए थे, नाख़ून काट लिये जाने चाहिए थे मगर ऐसा नहीं हुआ। हम यह वैश्विक ध्रुव सत्य "शस्त्रेण रक्षिते राष्ट्रे शास्त्र चिंताम प्रवर्तते" कब समझेंगे ?
तुफ़ैल चतुर्वेदी
Tufail Chaturvedi
🖋️━━━━✧👁️✧━━━ 🔗
Follow the पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ जी channel on WhatsApp: https://whatsapp.com/channel/0029VaaSx0uInlqJ2O8Y921P
👍
🙏
❤️
😢
😮
💯
🚩
🔥
🪷
🫡
123