🙏🌳जाभाणी आदर्श संस्था 🌳
February 11, 2025 at 07:39 PM
जांभाणी काव्य परम्परा में,
प्रस्तर पूजन का प्रखर प्रतिरोध....
साखी,
(संकलित सूक्तकथ्य)
पथर घडै़ सिलावटा,
सिलवट घड्या करीव ।
कुदरति की गति छाडि कर,
पथर धोकैं कीव ॥
पथर ही का देहरा,
मांहि ज पथर मांहि ।
रिब का डेरा रूह विच,
तांसू अंतर नांहि ॥
"अंग-चेतन"
सुरजंनदास
(१६४०-१७४८ विक्रमाब्द)
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