⛳सनातन धर्मरक्षक समिति⛳
February 18, 2025 at 02:45 AM
*┈┉सनातन धर्म की जय,हिंदू ही सनातनी है┉┈*
*लेख क्र.-सधस/२०८१/फाल्गुन/कृ./६.-१७०५१*
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⛳🚩🚩🛕 *जय श्रीराम* 🛕🚩🚩⛳
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🙏 *श्रीराम – जय राम – जय जय राम* 🙏
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🌞 *श्रीरामचरितमानस* 🌞
🕉️ *षष्ठ सोपान* 🕉️
☸️ *लङ्काकाण्ड*☸️
⛳ *चौपाई १ से ४, दोहा ८०*⛳
*रावनु रथी बिरथ रघुबीरा।*
*देखि बिभीषन भयउ अधीरा ॥*
*अधिक प्रीति मन भा संदेहा।*
*बंदि चरन कह सहित सनेहा ॥*
रावण को रथ पर और श्रीरघुवीर को बिना रथ के देखकर विभीषण अधीर हो गये। प्रेम अधिक होने से उनके मन में सन्देह हो गया [कि वे बिना रथ के रावण को कैसे जीत सकेंगे। श्रीरामजी के चरणों की वन्दना करके वे स्नेह पूर्वक कहने लगे ॥ १ ॥
*नाथ न रथ नहिं तन पद त्राना।*
*केहि बिधि जितब बीर बलवाना ।।*
*सुनहु सखा कह कृपानिधाना।*
*जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना ॥*
हे नाथ! आपके न रथ है, न तन की रक्षा करनेवाला कवच है और न जूते ही हैं। वह बलवान् वीर रावण किस प्रकार जीता जायगा ? कृपानिधान श्रीरामजी ने कहा- हे सखे ! सुनो, जिससे जय होती है, वह रथ दूसरा ही है॥ २ ॥
*सौरज धीरज तेहि रथ चाका।*
*सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका ॥*
*बल बिबेक दम परहित घोरे।*
*छमा कृपा समता रजु जोरे ॥*
शौर्य और धैर्य उस रथ के पहिये हैं। सत्य और शील (सदाचार) उसकी मजबूत ध्वजा और पताका हैं। बल, विवेक, दम (इन्द्रियों का वश में होना) और परोपकार- ये चार उसके घोड़े हैं, जो क्षमा, दया और समतारूपी डोरी से रथ में जोड़े हुए हैं॥ ३॥
*ईस भजनु सारथी सुजाना।*
*बिरति चर्म संतोष दान परसु बुधि सक्ति प्रचंडा।*
*बर बिग्यान कठिन कृपाना ॥*
*कोदंडा ॥*
ईश्वर का भजन ही [उस रथ को चलाने वाला] चतुर सारथि है। वैराग्य ढाल है और सन्तोष तलवार है। दान फरसा है, बुद्धि प्रचण्ड शक्ति है, श्रेष्ठ विज्ञान कठिन धनुष है ॥ ४ ॥
*अमल अचल मन त्रोन समाना।*
*सम जम नियम सिलीमुख नाना ॥*
*कवच अभेद बिप्र गुर पूजा।*
*एहि सम बिजय उपाय न दूजा ॥*
निर्मल (पापरहित) और अचल (स्थिर) मन तरकस के समान है। शम (मन का वश में होना), [अहिंसादि] यम और [शौचादि] नियम- ये बहुत-से बाण हैं। ब्राह्मणों और गुरु का पूजन अभेद्य कवच है। इसके समान विजय का दूसरा उपाय नहीं है ॥ ५ ॥
*सखा धर्ममय अस रथ जाकें।*
*जीतन कहँ न कतहुँ रिपु ताकें ॥*
*हे सखे ! ऐसा धर्ममय रथ जिसके हो उसके लिये जीतने को कहीं शत्रु ही नहीं है ॥ ६ ॥
*दोहा - ८० क, ख, ग*
*महा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो बीर।*
*जाकें अस रथ होइ दृढ़ सुनहु सखा मतिधीर ॥ ८० (क) ॥*
हे धीर बुद्धि वाले सखा! सुनो, जिसके पास ऐसा दृढ़ रथ हो, वह वीर संसार (जन्म-मृत्यु) रूपी महान् दुर्जय शत्रु को भी जीत सकता है [ रावण की तो बात ही क्या है] ॥ ८० (क) ॥
*सुनि प्रभु बचन बिभीषन हरषि गहे पद कंज।*
*एहि मिस मोहि उपदेसेहु राम कृपा सुख पुंज ॥ ८० (ख)॥*
प्रभु के वचन सुनकर विभीषणजी ने हर्षित होकर उनके चरण कमल पकड़ लिये [और कहा-] हे कृपा और सुख के समूह श्रीरामजी! आपने इसी बहाने मुझे [महान्] उपदेश दिया ॥ ८० (ख) ॥
*उत पचार दसकंधर इत अंगद हनुमान।*
*लरत निसाचर भालु कपि करि निज निज प्रभु आन ॥ ८० (ग) ॥*
उधर से रावण ललकार रहा है और इधर से अगंद और हनुमान्। राक्षस और रीछ-वानर अपने-अपने स्वामी की दुहाई देकर लड़ रहे हैं ॥ ८० (ग) ॥
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न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा ।
इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते ॥
*भगवान हनुमान जी की जय*
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