दैनिक सुविचार 🌺🏵️😊🙋♂️
February 18, 2025 at 01:52 AM
18.2.2025
अपने घर के सदस्यों को आप 'अपना' कहते हैं और मानते भी हैं। *"वे आपके घर के सदस्य आपको सुख भी देते हैं और दुख भी।" "बाहर के लोग अथवा दूर के लोग भी आपको सुख और दुख देते हैं।"* यह एक सामान्य नियम है, कि *"घर परिवार के सदस्य या संबंधी लोग आपको सुख अधिक और दुख कम देते हैं।"* परन्तु कभी-कभी इसके विपरीत भी देखा जाता है, अर्थात *"घर के सदस्यों में से कोई कोई व्यक्ति दुख अधिक देते हैं, और बाहर के मित्र आदि लोग आपको सुख अधिक देते हैं।"*
यदि आप ईमानदारी से इस बात पर विचार करेंगे और सत्य को स्वीकार करेंगे, तो आपको यह बात समझ में आ जाएगी, कि *"कभी-कभी घर के या संबंधी लोग अधिक दुख देते हैं।"* क्यों? इसका कारण क्या है? इसका कारण है *"स्वार्थ और अविद्या।"* संसार में कोई भी व्यक्ति जब किसी दूसरे व्यक्ति को दुख देता है, तो उसके यही दो कारण प्रमुख होते हैं, *"स्वार्थ और अविद्या।"*
परंतु जो घर के सदस्य हैं, या निकट रिश्तेदार संबंधी आदि हैं, वे अपने स्वार्थ और अविद्या के कारण तो आपको दुख देते ही हैं। परन्तु इसका तीसरा एक और कारण यह भी है, कि *"वे आपसे कुछ संबंध रखते हैं। इस संबंध के कारण वे आप पर अपना अधिकार मानते हैं। रिश्तेदारी के बहाने से वे आप तक बहुत आसानी से पहुंच सकते या पहुंच जाते हैं। उनके साथ संबंध होने के कारण आप उनका अधिक विरोध भी नहीं कर पाते। इसलिए उनकी पहुंच आप तक आसान होने से, तथा अपने स्वार्थ और अविद्या के कारण आपको समय-समय पर अन्यों की अपेक्षा वे आपको और अधिक दुख देते रहते हैं। "क्योंकि आपका उनके साथ रिश्ता है," इसलिए समाज के लोग भी उनकी आप तक पहुंच का अधिक विरोध नहीं करते।"* और वे भी इस बात को मान लेते हैं, कि *"ये तो आपके घर के लोग या रिश्तेदार हैं, ये तो आपकी मदद ही करते होंगे। ये आपको क्या दुख देंगे?" "इस बात का गलत लाभ उठाते हुए वे रिश्तेदार आपको अधिक नुकसान कर जाते हैं। वे लोग हानि भी अधिक करते हैं, धोखा भी देते हैं, और सभ्यता पूर्वक माफी भी नहीं मांगते। यदि कभी माफी मांगें भी, तो माफी मांगने का नाटक करते हैं, अपनी गलती को हृदय से स्वीकार नहीं करते, उसे दूर नहीं करते।"*
*"अपरिचित लोगों से यदि कभी कोई छोटी सी गलती हो भी जाए, रेल बस या बाज़ार आदि में थोड़ा सा धक्का लग भी जाए, तो वे तत्काल हाथ जोड़कर सभ्यता पूर्वक माफी भी मांग लेते हैं।" "वे लोग आपको इतनी हानि नहीं करते। उनसे जो भी हानि हो जाती है, प्रायः अनजाने में होती है, वे जानबूझकर हानि नहीं करते।" "घर के सदस्य और रिश्तेदार लोग तो जानबूझकर भी आपकी हानियां करते हैं। इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है।" "इसलिए सदा सबसे सावधान रहें।"* कहने का सार यह है कि *"परिचित हो या अपरिचित, कोई भी व्यक्ति कभी भी आपकी या किसी की भी हानि कर सकता है।" "जो जितना अधिक निकट संबंधी है, उससे उतना ही अधिक सावधान रहें।"*
*"मैं यह नहीं कहना चाहता, कि आप उनकी हर बात या हर व्यवहार में संशय करें।"* मैं तो यह कहना चाहता हूं कि *"उनके व्यवहारों का ठीक-ठीक अध्ययन करके उनकी नीयत को अच्छी तरह से समझें। जिन रिश्तेदारों की नीयत अच्छी हो, उन पर विश्वास करें, भरोसा रखें, और उनके साथ मिलजुलकर प्रेम से, सुख से जीवन जिएं। और जिनकी नीयत खराब हो, उनसे सदा सावधान रहें, चाहे वे आपके घर के सदस्य ही क्यों न हों?" "इसी प्रकार से बाहर के लोगों से भी सावधान रहें। उनकी नीयत को भी पहचानें। तभी आप उनसे सुरक्षित रहेंगे और अधिक सुखमय जीवन जी सकेंगे।"*
---- *"स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक - दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात."*
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