awgpofficial Shantikunj
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February 27, 2025 at 11:11 PM
*‼ अध्यात्म की आधारशिला-मन की स्वच्छता (भाग २) ‼* *‼ शांतिकुंज ऋषि चिंतन ‼* ➖➖➖➖‼️➖➖➖➖ 🌞 *28 Febuary, 2025 Friday* 🌞 🌸 *२८ फरवरी, २०२५ शुक्रवार* 🌸 *!! फाल्गुन माह, कृष्ण पक्ष, प्रतिपदा तिथि, संवत २०८१ !!* ‼ *सूर्योदय 6:48 AM, सूर्यास्त 6:11 PM* ‼ ➖➖➖➖‼️➖➖➖➖ 🔷 *काश! मनुष्य ने मन की स्वच्छता का महत्व समझ पाया होता तो उसका जीवन कितने आनन्द और उल्लास के साथ व्यतीत हुआ होता। दूसरों की श्रेष्ठता को देखने वाली, उसमें अच्छाइयाँ तलाश करने वाली यदि अपनी प्रेम-दृष्टि जग पड़े तो बुरे लोगों में भी बहुत कुछ आनन्ददायक, बहुत कुछ अच्छा, कुछ अनुकरणीय हमें दीख पड़े। दत्तात्रेय ऋषि ने जब अपनी दोष-दृष्टि त्यागकर श्रेष्ठता ढूँढ़ने वाली वृत्ति जागृत कर ली तो उन्हें चील, कौए, कुत्ते, मकड़ी, मछली, जैसे तुच्छ प्राणी भी गुणों के भण्डागार दीख पड़े और वे ऐसे ही तुच्छ जीवों को अपना गुरु बनाते गये उनसे बहुत कुछ सीखते गये।* 🔸 *हम चाहें तो चोरों से भी सावधानी, सतर्कता, साहस, लगन, ढूँढ़-खोज जैसे अनेक गुण सीख सकते हैं। वे इस दृष्टि से कहीं अधिक आगे होते हैं। पाप की उपेक्षा कर पुण्य को और अशुभ की उपेक्षा कर शुभ को तलाश करने का स्वभाव यदि बन जाय तो इस सांसर में हमें सर्वत्र ईश्वर ही ईश्वर चमकता नजर आवे। उसकी इस पुण्य कृति में सर्वत्र आनन्द ही आनन्द झरता दीखने लगे। सारी दुनियाँ हमारे लिए उपकार, सहयोग, स्नेह और सद्भावना का उपकार लिए खड़ी है, पर हम उसे देख कहाँ पाते हैं, मन की मलीनता तो हमें केवल दुर्गन्ध सूँघने और गन्दगी ढूँढ़ने के लिए ही विवश किए रहती है।* *अमृतवाणी:- अध्यात्म का नाम है आदर्शवादिता | Adhytam Ka Nam Hai Adarshvadita* https://youtu.be/XPIB04J7P-M?si=HL-c-5aAy_y4489Y 🔹 *ईमानदारी और मेहनत से जो कमाई की जाती है उसी से आदमी फलता-फूलता है, यह बात यदि मन में बैठ जाय तो हम सादगी और किफायत का जीवन व्यतीत करते हुए सन्तोष पूर्वक अपना निर्वाह करेंगे। धर्म उपाॢजत कमाई का अनीति से अछूता अन्न हमारी नस-नाड़ियों में रक्त बनकर घूमेगा तो हमारा आत्म-सम्मान और आत्म-गौरव क्यों न आकाश को चूमने लगेगा? क्यों न हम हिमालय जैसा ऊँ चा मस्तक रख सकेंगे? और क्यों हमें हमारी महानता का— उत्कृष्टता का अनुभव होने से अन्तः करण में सन्तोष एवं गर्व भरा न दिखेगा?* > 👉 *शांतिकुंज हरिद्वार के (अधिकारिक) Official WhatsApp Channel को Follow करें* ➡️ https://whatsapp.com/channel/0029VaBQpZm6hENhqlhg453J 🔹 *प्यार आत्मीयता, ममता की आँखों से जब हम दूसरों को देखेंगे तो वे हमें अपने ही दिखाई पड़ेंगे। अपने छोटे से कुटुम्ब को देख-देखकर हमेंं आनन्द होता है। फिर यदि हम दूसरों को—बाहर वालों को भी उसी आँख से देखें तो वे भी अपने ही प्रतीत होंगे। अपने कुटुम्बियों के जब हम अनेक दोष-दुर्गुण हम बर्दाश्त करते हैं, उन्हें भूलते -छिपाते और क्षमा करते हैं, तो बाहर वालों के प्रति वैसा क्यों नही किया जा सकता। उदारता, सेवा, सहयोग, स्नेह, नेकी और भलाई की प्रवृत्ति को यदि हम विकसित कर लें, तो देवता योनि प्राप्त होने का आनन्द हमें इसी मनुष्य जन्म में मिल सकता है। हमारी भलमनसाहत और सज्जनता का कोई थोड़ा दुरूपयोग कर ले, उससे अनुचित लाभ उठा ले , इतने पर भी उस ठगने वाले के स्वयं अपने मन पर भी आपकी सज्जनता की छाप पड़ी रहेगी और वह कभी न कभी उसके लिए पश्चाताप करता हुआ सुधार की ओर चलेगा।* 🔸 *अनेक सन्तों और सज्जनों के ऐसे उदाहरण हैं जिनने दुष्टता को अपनी सज्जनता से जीता है। फिर चालाक आदमी भी तो दूसरे अधिक चालाकों द्वारा ठग लिए जाते हैं, वे भी कहाँ सदा बिना ठगे बने रहते हैं। फिर यदि हमें अपनी भलमनसाहत के कारण कभी कुछ ठगा जान पड़ा तो इसमें कौन-सी बहुत बड़ी बात हो गई जिसके लिए पछताया जाय। छोटा बच्चा जिसे हम अपना मानते हैं जन्म से लेकर वयस्क होने तक हमें ठगता ही तो रहता है, उस पर जब हम नही झुँझलाते तो श्रम-धर्म से परिपूर्ण हृदय हो जाने पर दूसरों पर भी क्यों झुँझलाहट आवेगी।* *.... क्रमशः जारी* *✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य* *🙏🏽 Please Like, Share, Comment and Subscribe Thanks 🙏🏽*
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