
Shrinathji nitya darshan
February 19, 2025 at 03:06 PM
व्रज - फाल्गुन कृष्ण सप्तमी
Thursday, 20 February 2025
श्री नवनीतप्रियाजी
सभी वैष्णवों को निकुंजनायक श्रीजी व श्री लाड़लेलाल प्रभु के पाटोत्सव की ख़ूबख़ूब बधाई
नवनीतप्रियं नौमि श्रीविट्ठलेशमुदावहम् l
राजच्छाआर्धलनखरं रिंगमाणं व्रजंगने ll
भावार्थ - व्रज में नंदभवन के आँगन में किलोल करते, बघनखा से शोभित एवं श्रीविट्ठलनाथजी (श्रीगुसांईजी) को आनंद देते प्रभु, जिन्हें माखन प्रिय है ऐसे श्री नवनीतप्रियाजी को मैं नमन करता हूँ.
प्राकट्य एवं सेवा – यह स्वरुप श्री यमुनाजी में से महावन के क्षत्राणी की जल की गागर में बिराज कर उनके घर पधारे. इन क्षत्राणी ने आपको श्री महाप्रभुजी के पास पधराये. श्री महाप्रभुजी ने ये स्वरुप आगरा के गजनधावन नाम के वैष्णव को ये स्वरुप सेवा हेतु पधराया जिन्होंने जीवनपर्यंत प्रेमपूर्वक प्रभु की सेवा की और अपनी वृद्धावस्था में पुनः यह स्वरुप श्री गुसांईजी के घर पधराये.
गजनधावन जीवनपर्यंत प्रभु के संग श्री गुसांईके यहाँ ही रहे. उनके बिना प्रभु श्री नवनीतप्रियाजी राजभोग नहीं अरोगते थे.
भक्त एवं भगवान् दोनों एक दुसरे के बिना रह नहीं पाते थे.
स्वरुपभावना – श्रीजी मन्दिर के भीतर ही आज श्री नवनीतप्रियाजी बिराजते हैं और आप श्रीजी के संग व्रज से पधारे अतः आज फाल्गुन कृष्ण सप्तमी के दिन ही आपका पाटोत्सव भी माना गया है.
सारस्वत कल्प में गोकुल में पूर्ण पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण नंद-यशोदाजी के यहाँ पुत्र रूप में प्रकट हुए यहीं स्वरुप श्री नवनीतप्रियाजी का है. आपका स्वरुप छः मास की आयु की बाललीला का स्वरुप है जो नन्दभवन के आँगन में घुटनों पर चलते खेलते हैं और नन्दभवन के आँगन में व्रजरज आपके श्रीअंग में लगती है जिससे आपका स्वरुप श्वेत-गौर है.
आपको ताज़ा माखन-नवनीत खूब प्रिय है जिससे दायें हाथ में माखन का कौर पकड़कर, खाते-खाते आँगन में खेलते हैं. इससे इनका नाम नवनीतप्रियाजी पड़ा.
इस वय में आपने पूतनावध, शकटभंजनलीला एवं तृणावर्तवध लीला की थी.
यह स्वरुप अत्यन्त छोटा व गौरवर्ण का है. एक चरणारविन्द आगे मुड़ा हुआ व दूसरा पीछे की ओर है. दायाँ श्रीहस्त में माखन का लड्डू व बायाँ श्रीहस्त भूमि पर सीधा रखा है.
अष्टछाप के महानुभाव गोविंदस्वामी ने श्री नवनीतप्रियाजी का वर्णन इस पद के माध्यम से किया है.
क्रीड़त मनिमय आँगन रंग l
पीत ताप को बन्यो झगुला, कुल्हे लाल सुरंग ll 1 ll
कटि किंकिनी घोष विस्मित सखी धाय चलत संग l
गोसुत पुच्छ भ्रमावत कर ग्रही पंकराग सोहे अंग ll 2 ll
गजमोतिन लर लटकत भ्रोंहपें सुन्दर लहर तरंग l
‘गोविन्द’ प्रभुके अंग अंग पर वारों कोटिक अनंग ll 3 ll

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