⛳सनातन धर्मरक्षक समिति⛳
February 22, 2025 at 02:48 AM
*┈┉सनातन धर्म की जय,हिंदू ही सनातनी है┉┈*
*लेख क्र.-सधस/२०८१/फाल्गुन/कृ./९.-१७०९१*
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⛳🚩🚩🛕 *जय श्रीराम* 🛕🚩🚩⛳
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🙏 *श्रीराम – जय राम – जय जय राम* 🙏
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🌞 *श्रीरामचरितमानस* 🌞
🕉️ *षष्ठ सोपान* 🕉️
☸️ *लङ्काकाण्ड*☸️
⛳ *चौपाई १ से ५,छ्न्द,दोहा_८४*
*जानु टेकि कपि भूमि न गिरा। उठा मुठिका एक ताहि कपि मारा। परेउ सँभारि बहुत रिस भरा ॥ सैल जनु बज्र प्रहारा ॥*
हनुमान् जी घुटने टेककर रह गये, पृथ्वी पर गिरे नहीं। और फिर क्रोध से भरे हुए सँभाल कर उठे। हनुमान् जी ने रावण को एक घूँसा मारा। वह ऐसा गिर पड़ा जैसे वज्र की मार से पर्वत गिरा हो ॥ १ ॥
*मुरुछा गै बहोरि सो जागा । कपि बल बिपुल सराहन लागा ॥ धिग धिग मम पौरुष धिग मोही। जौं तैं जिअत रहेसि सुरद्रोही ॥*
मूर्च्छा भंग होने पर फिर वह जगा और हनुमान् जी के बड़े भारी बल को सराहने लगा। [हनुमान् जी ने कहा- मेरे पौरुष को धिक्कार है, धिक्कार है और मुझे भी धिक्कार है, जो हे देवद्रोही ! तू अब भी जीता रह गया ॥ २।।
*अस कहि लछिमन कहुँ कपि ल्यायो। देखि दसानन बिसमय पायो ॥ कह रघुबीर समुझु जियँ भ्राता । तुम्ह कृतांत भच्छक सुर त्राता ॥*
ऐसा कहकर और लक्ष्मण जी को उठाकर हनुमान् जी श्री रघुनाथ जी के पास ले आये। यह देखकर रावण को आश्चर्य हुआ। श्री रघुवीर ने [लक्ष्मण जी से] कहा- हे भाई! हृदय में समझो, तुम काल के भी भक्षक और देवताओं के रक्षक हो ॥ ३ ॥
*सुनत बचन उठि बैठ कृपाला। गई गगन सो सकति कराला ॥ पुनि कोदंड बान गहि धाए। रिपु सन्मुख अति आतुर आए ॥*
ये वचन सुनते ही कृपालु लक्ष्मण जी उठ बैठे। वह कराल शक्ति आकाश को चली गयी। लक्ष्मण जी फिर धनुष-बाण लेकर दौड़े और बड़ी शीघ्रता से शत्रु के सामने आ पहुँचे ॥ ४ ॥
🚩 *छ्न्द* 🚩
*छं० – आतुर बहोरि बिभंजि स्यंदन सूत हति ब्याकुल कियो । गिर्यो धरनि दसकंधर बिकलतर बान सत बेध्यो हियो ।। सारथी दूसर घालि रथ तेहि तुरत लंका लै गयो । रघुबीर बंधु प्रताप पुंज बहोरि प्रभु चरनन्हि नयो ॥*
फिर उन्होंने बड़ी ही शीघ्रता से रावण के रथ को चूर-चूर कर और सारथि को मारकर उसे (रावण को) व्याकुल कर दिया। सौ बाणों से उसका हृदय बेध दिया, जिससे रावण अत्यन्त व्याकुल होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। तब दूसरा सारथि उसे रथ में डालकर तुरंत ही लंका को ले गया। प्रताप के समूह श्री रघुवीर के भाई लक्ष्मण जी ने फिर आकर प्रभु के चरणों में प्रणाम किया।
🟡 *दोहा* 🟡
*दो० - उहाँ दसानन जागि करि करै लाग कछु जग्य। राम बिरोध बिजय चह सठ हठ बस अति अग्य ॥ ८४ ॥*
वहाँ (लंका में) रावण मूर्च्छा से जागकर कुछ यज्ञ करने लगा। वह मूर्ख और अत्यन्त अज्ञानी हठवश श्री रघुनाथ जी से विरोध करके विजय चाहता है ॥ ८४॥
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कर्मण्यकर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः ।
स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत् ॥
*शनिदेव भगवान जी की जय*
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