⛳सनातन धर्मरक्षक समिति⛳
February 23, 2025 at 02:47 AM
*┈┉सनातन धर्म की जय,हिंदू ही सनातनी है┉┈*
*लेख क्र.-सधस/२०८१/फाल्गुन/कृ./१०.-१७१०१*
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⛳🚩🚩🛕 *जय श्रीराम* 🛕🚩🚩⛳
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🙏 *श्रीराम – जय राम – जय जय राम* 🙏
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🌞 *श्रीरामचरितमानस* 🌞
🕉️ *षष्ठ सोपान* 🕉️
☸️ *लङ्काकाण्ड*☸️
⛳ *चौपाई १ से ५,छ्न्द,दोहा_८५*
*इहाँ बिभीषन सब सुधि पाई। सपदि जाइ रघुपतिहि सुनाई ॥ नाथ करइ रावन एक जागा। सिद्ध भएँ नहिं मरिहि अभागा ॥*
यहाँ विभीषण जी ने सब खबर पायी और तुरंत जाकर श्री रघुनाथ जी को कह सुनायी कि हे नाथ! रावण एक यज्ञ कर रहा है। उसके सिद्ध होने पर वह अभागा सहज ही नहीं मरेगा ॥ १ ॥
*पठवहु नाथ बेगि भट बंदर। करहिं बिधंस आव दसकंधर ॥ प्रात होत प्रभु सुभट पठाए । हनुमदादि अंगद सब धाए ॥*
हे नाथ! तुरंत वानर योद्धाओं को भेजिये; जो यज्ञ का विध्वंस करें, जिससे रावण युद्ध में आवे। प्रातःकाल होते ही प्रभु ने वीर योद्धाओं को भेजा। हनुमान् और अंगद आदि सब [प्रधान वीर] दौड़े ॥ २ ॥
*कौतुक कूदि चढ़े कपि लंका। पैठे रावन भवन असंका ॥ जग्य करत जबहीं सो देखा। सकल कपिन्ह भा क्रोध बिसेषा ॥*
वानर खेल से ही कूदकर लंका पर जा चढ़े और निर्भय रावण के महल में जा घुसे। ज्यों ही उसको यज्ञ करते देखा, त्यों ही सब वानरों को बहुत क्रोध हुआ ॥ ३ ॥
*रन ते निलज भाजि गृह आवा। इहाँ आइ बक ध्यान लगावा ॥ अस कहि अंगद मारा लाता। चितव न सठ स्वारथ मन राता ॥*
[उन्होंने कहा- अरे ओ निर्लज्ज ! रणभूमि से घर भाग आया और यहाँ आकर बगुले का-सा ध्यान लगाकर बैठा है? ऐसा कहकर अंगद ने लात मारी। पर उसने इनकी ओर देखा भी नहीं, उस दुष्टका मन स्वार्थ में अनुरक्त था ॥ ४॥
🚩 *छ्न्द* 🚩
*छं० - नहिं चितव जब करि कोप कपि गहि दसन लातन्ह मारहीं। धरि केस नारि निकारि बाहेर तेऽतिदीन पुकारहीं ॥ तब उठेउ कुद्ध कृतांत सम गहि चरन बानर डारई। एहि बीच कपिन्ह बिधंस कृत मख देखि मन महुँ हारई ॥*
जब उसने नहीं देखा, तब वानर क्रोध करके उसे दाँतों से पकड़कर [काटने और] लातों से मारने लगे। स्त्रियों को बाल पकड़कर घर से बाहर घसीट लाये, वे अत्यन्त ही दीन होकर पुकारने लगीं। तब रावण काल के समान क्रोधित होकर उठा और वानरों को पैर पकड़कर पटकने लगा। इसी बीच में वानरों ने यज्ञ विध्वंस कर डाला, यह देखकर वह मन में हारने लगा (निराश होने लगा)।
🟡 *दोहा* 🟡
*दो० - जग्य बिधंसि कुसल कपि आए रघुपति पास। चलेउ निसाचर क्रुद्ध होइ त्यागि जिवन कै आस ॥ ८५ ॥*
यज्ञ विध्वंस करके सब चतुर वानर रघुनाथ जी के पास आ गये। तब रावण जीने की आशा छोड़कर क्रोधित होकर चला ॥ ८५ ॥
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यस्य सर्वे समारम्भाः कामसङ्कल्पवर्जिताः ।
ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहुः पण्डितं बुधाः ॥
*भगवान सूर्यदेव जी की जय*
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