⛳सनातन धर्मरक्षक समिति⛳
February 24, 2025 at 02:44 AM
*┈┉सनातन धर्म की जय,हिंदू ही सनातनी है┉┈*
*लेख क्र.-सधस/२०८१/फाल्गुन/कृ./११.-१७१११*
*┈┉══════❀((""ॐ""))❀══════┉┈*
⛳🚩🚩🛕 *जय श्रीराम* 🛕🚩🚩⛳
**************************************
🙏 *श्रीराम – जय राम – जय जय राम* 🙏
************************
🌞 *श्रीरामचरितमानस* 🌞
🕉️ *षष्ठ सोपान* 🕉️
☸️ *लङ्काकाण्ड*☸️
⛳ *चौपाई १ से ५,छ्न्द,दोहा_८६*
*चलत होहिं अति असुभ भयंकर । बैठहिं गीध उड़ाइ सिरन्ह पर ॥ भयउ कालबस काहु न माना। कहेसि बजावहु जुद्ध निसाना ॥*
चलते समय अत्यन्त भयङ्कर अमङ्गल (अपशकुन) होने लगे। गीध उड़-उड़कर उसके सिरों पर बैठने लगे। किन्तु वह काल के वश था, इससे किसी भी अपशकुन को नहीं मानता था। उसने कहा-युद्ध का डंका बजाओ ॥ १ ॥
*चली तमीचर अनी अपारा। बहु गज रथ पदाति असवारा ॥ प्रभु सन्मुख धाए खल कैसें। सलभ समूह अनल कहँ जैसें ॥*
निशाचरों की अपार सेना चली। उसमें बहुत-से हाथी, रथ, घुड़सवार और पैदल हैं। वे दुष्ट प्रभु के सामने कैसे दौड़े, जैसे पतंगों के समूह अग्नि की ओर [जलने के लिये] दौड़ते हैं॥ २ ॥
*इहाँ देवतन्ह अस्तुति कीन्ही। दारुन बिपति हमहि एहिं दीन्ही ॥ अब जनि राम खेलावहु एही। अतिसय दुखित होति बैदेही ॥*
इधर देवताओं ने स्तुति की कि हे श्री राम जी! इसने हमको दारुण दुःख दिये हैं। अब आप इसे [अधिक] न खेलाइये। जानकी जी बहुत ही दुखी हो रही हैं॥ ३ ॥
*देव बचन सुनि प्रभु मुसुकाना। उठि रघुबीर सुधारे बाना ॥ जटा जूट दृढ़ बाँधें माथे। सोहहिं सुमन बीच बिच गाथे ॥*
देवताओं के वचन सुनकर प्रभु मुसकराये। फिर श्री रघुवीर ने उठकर बाण सुधारे। मस्तक पर जटाओं के जूड़े को कसकर बाँधे हुए हैं, उसके बीच-बीच में पुष्प गूँथे हुए शोभित हो रहे हैं॥ ४ ॥
*अरुन नयन बारिद तनु स्यामा । अखिल लोक लोचनाभिरामा ॥ कटितट परिकर कस्यो निषंगा। कर कोदंड कठिन सारंगा ॥*
लाल नेत्र और मेघ के समान श्याम शरीर वाले और सम्पूर्ण लोकों के नेत्रों को आनन्द देने वाले हैं। प्रभु ने कमर में फेंटा तथा तरकस कस लिया और हाथ में कठोर शार्ङ्गधनुष ले लिया ॥ ५॥
🚩 *छ्न्द* 🚩
*छं० - सारंग कर सुंदर निषंग सिलीमुखाकर कटि कस्यो। भुजदंड पीन मनोहरायत उर धरासुर पद लस्यो ॥ कह दास तुलसी जबहिं प्रभु सर चाप कर फेरन लगे। ब्रह्मांड दिग्गज कमठ अहि महि सिंधु भूधर डगमगे ॥*
प्रभु ने हाथ में शार्ङ्गधनुष लेकर कमर में बाणों की खान (अक्षय) सुन्दर तरकस कस लिया। उनके भुजदण्ड पुष्ट हैं और मनोहर चौड़ी छाती पर ब्राह्मण (भृगु जी) के चरण का चिह्न शोभित है। तुलसीदास जी कहते हैं, ज्यों ही प्रभु धनुष बाण हाथ में लेकर फिराने लगे, त्यों ही ब्रह्माण्ड, दिशाओं के हाथी, कच्छप, शेष जी, पृथ्वी, समुद्र और पर्वत सभी डगमगा उठे।
🟡 *दोहा_८६* 🟡
*दो० - सोभा देखि हरषि सुर बरषहिं सुमन अपार । जय जय जय करुनानिधि छबि बल गुन आगार ॥ ८६ ॥*
[भगवान् की] शोभा देखकर देवता हर्षित होकर फूलों की अपार वर्षा करने लगे। और शोभा, शक्ति और गुणों के धाम करुणानिधान प्रभु की जय हो, जय हो, जय हो [ऐसा पुकारने लगे ] ॥ ८६ ॥
🙏 *श्रीराम – जय राम – जय जय राम* 🙏🚩⛳
*समिति के सभी संदेश नियमित पढ़ने हेतु निम्न व्हाट्सएप चैनल को फॉलो किजिए ॥🙏🚩⛳
https://whatsapp.com/channel/0029VaHUKkCHLHQSkqRYRH2a
▬▬▬▬▬▬๑⁂❋⁂๑▬▬▬▬▬▬
*जनजागृति हेतु लेख प्रसारण अवश्य करें*
त्यक्त्वा कर्मफलासङ्गं नित्यतृप्तो निराश्रयः ।
कर्मण्यभिप्रवृत्तोऽपि नैव किञ्चित्करोति सः ॥
*महाकाल भगवान जी की जय*
*⛳⚜सनातन धर्मरक्षक समिति⚜⛳*
🙏
2