धर्म, संस्कृति, रहस्य, ज्ञान, दर्शन ✍️🎯🙏
February 26, 2025 at 06:33 AM
#तंत्र_साधना_और_ अध्यात्म शास्त्रवचनों में एवं संस्कृत के श्लोकों से भरे पडे ग्रंथो मे साधना को इच्छुक साधको के लिए विधि व आवरण पूजा ग्रंथों मे होती है । मात्र शास्त्रों मे संकलित वर्णन होते है, जिनमे उपयोग के योग्य केवल मंत्र ओर पूजन विधियाँ होती है ।पूजन विधि को पुर्ण करना तन्त्र साधना नही है । ना ही मंत्रों की शक्ति उनके शब्दों मे निहित होती है। पूजा कितनी भी एकाग्रता और विधि विधान से की जाये पर उससे सिद्धियां नही मिलती । वह इसलिए नही मिलती कि ये साधको से लिये नही केवल गृहस्थों के लिए बनायी गयी है । इसी प्रकार मंत्र चाहे जितने शुद्ध रूप से लिखा हो जब तक उसके नाद अर्थात उच्चारण और ध्वनि कम्पन्न का रहस्य ज्ञात नही है तब तक मंत्र जप से कोई सिद्धि प्राप्त नही हो सकती है । हां सामान्य लोगो के लिए यह जाप कल्याण कारी हो सकता है । किन्तु परिश्रम की तुलना मे नगण्य ही होगा । मंत्र की शक्ति, नाद, मे निहित है यह शब्दों मे कहीं होती ही नही है । तंत्र- साधना एक गोपनीय मार्ग है ये अति गोपनीय कहे तो अतिशयोक्ति नही होगी इसकी सिद्धियों को प्राचीन ग्रंथो मे उपलब्ध वर्णनों के आधार प्राप्त नही किया जा सकता । कारण यह है कि गोपनीय रहस्यों से बारे मे इन मे कुछ नही होता । यह गुरू शिष्य परम्परा मे प्राप्त होता है । आज कल जितने भी तांत्रिक योगी बने हुए है वे या तो कथा वाचक है या पाखण्डी इन्होंने कभी कोई सिद्धि प्राप्त नही की । ये मात्र शास्त्रीय वर्णनों एवं संस्कृत को श्लोकों का वर्णन करके स्वयं को सिद्ध तांत्रिक, साधक, एवं योगी कह रहे है। फल यह होता है कि अथक परिश्रम करने को बाद भी जब कुछ हासिल नही होता तो साधक तन्त्र विधा को मिथ्या मानकर निराश हो जाता है । तन्त्र से रहस्यों को गोपनीयता के कारण जनसाधारण को लिए रूप को कथाओं मे अभिव्यक्त किया जाता रहा है तन्त्र- विधा और अध्यात्म के नाम से मुर्ख बनाने वाले इन कथाओं का वर्णन को नाम पर लोगों को मुर्ख बना रहे है। अतः जो भी वास्तव में तंत्र- विधाओं की साधना करना चाहता है तो उसे वास्तविक रहस्यों को जानना चाहिए, #_साधना_और_कर्णपिशाचनी_कर्णपिशाचनी_ वाममार्ग की औघडनाथ पन्थ की शक्ति है । इसे देवी कहना उपयुक्‍त नही है; क्योकि इसका भाव समीकरण देवी जैसा नही है । यह एक तामसी शक्ति है । इसकी सिद्धि इस प्रकार करनी चाहिए । इसमे किसी सौम्य या पवित्र भाव की छाया नही पडते ही यह गायब हो जाती है । यह पवित्र भाव, साफ सुथरे स्थान पर सिद्ध नही होती । मंदिर, पूजास्थल, नदी का मनोरम किनारा, सुगंधित फूलों का बाग, स्वच्छ स्थान पर इसे सिद्ध नही किया जा सकता । इस शक्ति को पिशाचनी का नाम दिया गया है; क्योंकि यह एक अति तामसी शक्ति है । इसे कर्ण के विशेषण से युक्त इसलिए किया गया है । कि साधक जब मन मे कोई प्रश्न करता है, तो उसके मन मे ही उत्तर प्राप्त होता है, परन्तु उसे अनुभूत होता है कि यह शक्ति उसके कान मे फुसफुसा रही है । इसलिए इसे कर्णपिशाचनी कहा जाता है। कर्णपिशाचनी का रूप एक तन्दुरूस्त ,सुडौल, सम्पूर्ण रूप से साँचे मे ढली रूप सी की नग्नावृत्ति का है । इसकी सिद्धि कामभाव और रतिभाव से की जाती है, अर्थात यह सुन्दरी साधक को भोग भाव से प्रसन्न होती है । कर्णपिशाचनी की सिद्धि का दावा करने वाले अनेक तांत्रिक, योगिराज, और विभिन्न उपाधियों को धारण करने वाले महान सिद्ध पुरुषों से रूप मे व्याख्या कर रहे लोग भारी भ्रम फैला रहै है और कहते है:-१:- कर्णपिशाचनी पूछे गये गोपनीय प्रश्नों का उत्तर कान मे बताती है २:- कर्णपिशाचनी मनोवाँछित वस्तु तुरन्त लाकर देती है ३:- कर्णपिशाचनी साधक के साथ रति क्रीड़ा करके उसकी कामवासना की भी पूर्ति करती है । इसमे केवल पहली बात सच है दुसरी बात सच नही है । इसमे जादुगरों द्वारा अपनायी गयी तकनीक का प्रयोग करके देखने वालो को भ्रमित रखा जाता है। कारण है कि कर्णपिशाचनी एक मानसिक शक्ति है। साधक के द्वारा पूछे गये प्रश्नों का उत्तर मानसिक रूप से प्राप्त होता है, परन्तु कोई भी मानसिक शक्ति स्थूल भौतिक स्वरूप को तब तक विचलित नह कर सकती, जब तक कुण्डलिनी जाग्रत नहो और कर्णपिशाचनी की सिद्धि का कुण्डलिनी से कोई सम्बन्ध नही है। और तीसरी बात सच है परन्तु यह अधोरपंन्थ की मानसिक रति है। इस तकनीक का प्रयोग कर्णपिशाचनी की शक्ति को सशक्त करने के लिए किया जाता है यह विशेष प्रकार की रति है जिसमे चरम सुख या स्खलन जैसी क्रिया नही होती यदि यह हुई तो साधक की शक्ति जाती रहती है और उसे नये सिरे से कर्णपिशाचनी को सिद्ध करना पडता है ! श्री विद्या और श्री चक्र के विषय में आजकल बहुत सारे लोग श्री विद्या के सिद्ध साधक अपने को बताते हैं और कोई तो श्री यंत्र को लक्ष्मी प्रदान करने वाला यंत्र बता कर लोगों को विक्रय भी कर रहे हैं सबसे बड़ी बात है कि अगर श्री यंत्र लक्ष्मी या धन को प्रदान करता तो भारत में बहुत गरीबी हैं और उन गरीबों के घर में एक श्री यंत्र रखवा दिया जाता तो उनकी गरीबी शायद दूर हो जाती है। छोटे गरीब के यहां छोटा श्री यंत्र बड़े गरीब के यहां बड़ा श्री यंत्र एक बहुत बड़ा श्री यंत्र भारत के खजाने में भी रख दिया जाता ताकि धन की समस्या का सामना ना करना पड़े ऐसा भी ये ढोंगी लोग कहते हैं कि इस विद्या का में भारत में सिद्ध साधक हूं, परंतु सच तो यह है कि श्री चक्र यह श्री यंत्र का धन से कोई संबंध नहीं है वह तो एक अति गोपनीय चक्र है कुछ लोग उसे धातु से निर्मित करते हैं कुछ लोग स्फुटिक से तो कोई लोग तांबा सोना अन्य धातु से भी उसका निर्माण करते हैं परंतु इसका और ही रहस्य है। श्री यंत्र बिंदु त्रिकोण अष्टकोण अंतर्दशार बहिर्दशार चतुर्दशार अष्टदल षोडशदल उसके बाहर तीन वृत्त और त्रिरेखात्मक भूपुर बना हुआ है इस यंत्र में त्रितालिस त्रिकोण और अठ्ठाईस मर्मस्थान और चौबीस संधियां होती हैं तीन रेखाओं के मिलने के स्थान को मर्म और दो रेखाओं के मिलने के स्थान को संधि कहते हैं। श्री यंत्र के चार ऊर्ध्वकोण होते हैं जिनको श्रीकंण्ठ अथवा शिवत्व या शिव त्रिकोण कहते हैं श्रीयंत्र नौ चक्रों से बना है जिनमें चार शिव चक्र है और पांच शक्तिचक्र हैं इन नौ शिव शक्ति चक्रों से मैं से त्रिकोण अष्टकोण दशारद्वय (दो दशार) और चतुर्दशार ये पांच शक्तिचक्र कहलाते हैं बिंदु चक अष्टदल कमल षोडशदल कमल चतुरस्र यह चार शिवचक्र कहे जाते हैं बिंदु चक्र त्रिकोण के साथ अष्टदल कमल अष्टकोण के साथ षोडशदल कमल अंतर्दशार और बहिर्दशार साथ भुपूर चतुर्दशार के साथ श्लिष्ट है अकएव उपरिपरिगणित शिव और शक्ति चक्रों का परस्पर अविनाभाव संबंध है अर्थात एक दूसरे के बिना यह नहीं होते इसी प्रकार त्रिकोण शक्तिरूप और त्रिकोण के भीतर का बिंदु परशिव है अतः बिंदु चक्र के बिंदु और त्रिकोण का अर्थात महाकामेश्वर और महाकामेश्वरी है। वास्तव में सत्य क्या है कि प्राचीन युग में किसी धातु या स्वर्ण से श्री यंत्र का निर्माण नहीं होता था कुछ गुफाओं में कुछ जगह श्री यंत्र पत्थरों पर शिला ऊपर भूमि पर उकेरे हुए मिलते हैं, उनका कुछ और रहस्य है वास्तव में श्री यंत्र मानव शरीर का ही प्रतिरूप है अगर लोपामुद्रा या कामराज उपासित विद्या का रहस्य यह है कि हम ब्रह्मांड में तारो नक्षत्र मे बनते त्रिकोण के अनुसार शरीर रूपी श्री चक्र को इसकी ऊर्जा को इन बिंदुओं पर जोड़ लेते हैं या जागृत कर लेते हैं तो वही श्री चक्र साधना है। यहां तक की जो लोग परकाया प्रवेश की विद्या जानते हैं वे इसी श्री चक्र यानी श्री महाविद्या के ज्ञाता होते हैं श्री विद्या उपासक शंकर होता है जिसने अनेक जन्मों में अनेक विद्याओं की उपासना की है वही चरमजन्म में श्रीविद्या का उपासक बनता है बहुत से कलिकाल कलुषित की भावना है की मैं ही श्रीविद्या का उपासक हूं। बालात्रिपुरा की उपासना पश्चिमाम्नाय से भी होती है, महाषोडशी के दो भेद हैं एक #शिवोपासिता यानि शैव धर्म द्वारा उपासित, दुसरी रमादि महाषोडशी #विष्णउपासिता यानि वैष्णवधर्म द्वारा उपासित श्रीविद्या महात्रिपुरसुंदरी की त्रिकुटात्मिका पंचदशीविद्या उपासना भेद से बहुत प्रकार की है उनमें से कामराज उपासित पंचदशी लोपामुद्रा उपासित पंचदशी और नन्धु उपासित पंचदशी मुख्य हैं इनको कादि विद्या हादि विद्या सादि विद्या के नाम से प्रचार सर्वाधिक है। पंचदशी मंत्र में तीन करार #क और दो हकार #ह शिववर्ण है ये बीजाक्षर शिव के है इसके अतिरिक्त शेष बीजाक्षर शक्तिवर्ण के हैं अर्थात शक्ति के हैं जो मंत्र में तीन ह्रींकार आते हैं, वह शिवशक्तयात्मक है, अर्थात शिव शक्ति दोनों के हैं, जो साधक इस प्रकार मंत्रोंक्षरों के विभाग को नहीं जानता उनको सिद्धि प्राप्त नहीं होती। सर्वप्रथम कामेशी ललिता बाला इत्यादि में कामेशी पद से कामेश्वरी आदि षोडश नित्यी कला जिनको परातंत्र में नित्या कहते हैं। कामेश्वरी आदि अतिरहस्य योगिनी या जिनको परातंत्र में #सर्वेचक्रेश्वरी कहता है, और स्वम महात्रिपुर सुंदरी जिनका परातंत्र में #ब्रहमेश्वरी पद से सूचित करता है, यह तीन प्रकार की विद्या समझी जाती हैं अतः कामेशी अथवा कामेश्वरी नाम में तीन भेद हैं, #कामेश्वरीनित्या कामेश्वरी #अतिरहस्ययोगिनी और कामेश्वरी #महात्रिपुरसुंदरी परशिव जिसकी योगी लोग कामना करते हैं और ईश्वरी, अर्थात #कामेश्वर शिव की स्त्री कामेश्वर और कामेश्वरी कह जाते है इस विद्या की उपासना करने से साधक के सभी दोष समाप्त हो जाते हैं लिखने को तो बहुत कुछ है, परंतु समय अभाव के कारण नहीं हो सकता और इसका एक कारण और भी है, की यह एक रहस्यमई विद्या है, इसके सभी रहस्य सोशल मीडिया पर उजागर करने से रहस्य दोष भी उत्पन्न होता है।
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