𝗝𝘂𝗱𝗴𝗺𝗲𝗻𝘁 𝗗𝗮𝘆1
February 18, 2025 at 02:30 AM
पहले दर्ज किए गए साक्ष्यों (Evidence) का उपयोग धारा 365(1) के अनुसार, यदि किसी मजिस्ट्रेट ने किसी मामले में पूर्ण या आंशिक रूप से साक्ष्य (Evidence) दर्ज कर लिया हो और फिर किसी कारणवश वह मामले की सुनवाई से अलग हो जाए, तो नए मजिस्ट्रेट को यह अधिकार है कि वह पूर्व में दर्ज किए गए साक्ष्यों का उपयोग कर सकता है। उसे नए सिरे से मामले की सुनवाई शुरू करने की आवश्यकता नहीं होगी।
उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि एक धोखाधड़ी (Fraud) के मामले में एक मजिस्ट्रेट ने पाँच गवाहों की गवाही (Testimony) दर्ज कर ली, लेकिन फिर उसका स्थानांतरण (Transfer) हो गया। इस स्थिति में, नया मजिस्ट्रेट उन गवाहों की दोबारा गवाही दर्ज करने की बजाय पहले दर्ज किए गए साक्ष्यों को स्वीकार कर सकता है और सुनवाई को आगे बढ़ा सकता है।
गवाहों (Witnesses) को फिर से बुलाने का अधिकार
हालांकि नया मजिस्ट्रेट पहले दर्ज किए गए साक्ष्यों पर कार्य कर सकता है, लेकिन अगर उसे लगे कि किसी गवाह की फिर से जाँच (Re-examination) करना जरूरी है, तो वह उस गवाह को दोबारा बुला सकता है। प्रावधान (Proviso) के अनुसार, यदि नए मजिस्ट्रेट को यह संदेह हो कि किसी गवाह की गवाही अस्पष्ट (Unclear) या अधूरी है, तो वह उसे पुनः बुलाकर पूछताछ कर सकता है। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि न्यायिक प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की गलतफहमी (Misunderstanding) या पक्षपात (Bias) न हो। उदाहरण के लिए, किसी हत्या (Murder) के मामले में, यदि एक गवाह की पहले दर्ज की गई गवाही अधूरी है और नया मजिस्ट्रेट समझता है कि उसे और अधिक जानकारी की जरूरत है, तो वह उस गवाह को दोबारा बुलाकर जिरह (Cross-examination) कर सकता है।
https://whatsapp.com/channel/0029VaD8eyYFsn0csh5bUb28