𝗝𝘂𝗱𝗴𝗺𝗲𝗻𝘁 𝗗𝗮𝘆1
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February 21, 2025 at 10:41 AM
अधिवक्ता संशोधन बिल 2025 उत्तर प्रदेश कांग्रेस लीगल कमेटी ने अधिवक्ता संशोधन बिल 2025 के विरोध मे प्रदर्शन करते हुए कार्य बहिष्कार किया. प्रदर्शन करने वाले अधिवक्ताओं ने केंद्र सरकार से अपील करते हुए कहा कि केंद्र सरकार अधिवक्ता अधिनियम 1961 में संशोधन करने की तैयारी कर रही है .जिसे किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, क्योंकि यह संशोधन वकीलों के हितों पर सीधे प्रहार करने वाला संशोधन साबित होगा. उत्तर प्रदेश कांग्रेस लीगल कमेटी के अधिवक्ताओ ने बताया कि बार और बेंच मिलकर न्यायालय पूर्ण होता है, लेकिन सरकार न्यायालय में हस्तक्षेप करने के लिए बार को टारगेट कर रही है. इसीलिए सरकार अधिवक्ता अधिनियम 1961 में संशोधन करने की तैयारी कर रही है, यह संशोधन वकीलों की स्वतंत्रता पर सीधे प्रहार है जिसे किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. इसके खिलाफ हम आगे बढ़कर अपनी लड़ाई को लड़ेंगे, जब तक सरकार अपने फैसले को वापस नहीं लेती है. उत्तर प्रदेश कांग्रेस लीगल कमेटी के प्रदेश सचिव चन्दन सिंह ने कहा कि नए अधिवक्ता कई साल प्रेक्टिस करने के बाद कोई केस लेते हैं, अगर वो अपना केस किसी कारण से हार जाएंगे. तो हमारे खिलाफ हमारा क्लाइंट अगर कोई शिकायत कर देता है तो वकील पर ही जांच बैठ जाएंगी. उन्होंने कहा कि इस संशोधन के बाद से नए अधिवक्ता केस लेने से बचेंगे, और आने वाले समय में युवाओं का वकालत से मोहभंग भी हो सकता है. हमारी सरकार से अपील है कि कोई भी निर्णय लेने से पहले वकीलों के हितों का भी ध्यान रखें. *वकील संशोधन अधिनियम 2025 का विरोध क्यों जरूरी है?* 1. *वकीलों की आवाज़ को दबाने का प्रयास* - इस अधिनियम के तहत वकीलों को कोर्ट के कामकाज से हड़ताल या बहिष्कार करने पर रोक लगाई गई है (धारा 35A)। - यह प्रावधान वकीलों के *संवैधानिक अधिकार* (अनुच्छेद 19 - अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अनुच्छेद 21 - जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) का हनन करता है। - वकीलों को अपनी मांगों और समस्याओं को उठाने के लिए हड़ताल या बहिष्कार एक महत्वपूर्ण हथियार होता है। इसे छीन लेना उनकी आवाज़ को दबाने जैसा है। 2. *अनुचित जुर्माने का प्रावधान* - इस अधिनियम में वकीलों पर 3 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाने का प्रावधान है (धारा 35)। - यह जुर्माना वकीलों के पेशेवर आचरण को लेकर है, लेकिन इसे लागू करने का तरीका पक्षपातपूर्ण हो सकता है। - इससे वकीलों पर अनावश्यक दबाव बनेगा और उनकी स्वतंत्रता प्रभावित होगी। 3. *झूठी शिकायतों पर जुर्माना, लेकिन वकीलों के लिए कोई सुरक्षा नहीं* - अगर कोई शिकायत झूठी या फ़िजूल पाई जाती है, तो शिकायतकर्ता पर 50,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है (धारा 35)। - हालांकि, अगर वकील के खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज की जाती है, तो उसके लिए कोई सुरक्षा नहीं है। यह एकतरफा और अन्यायपूर्ण है। 4. *वकीलों को तुरंत निलंबित करने का अधिकार* - बार काउंसिल ऑफ इंडिया को यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी वकील को तुरंत निलंबित कर सकती है (धारा 36)। - यह प्रावधान वकीलों के खिलाफ दुरुपयोग को बढ़ावा दे सकता है। बिना उचित जांच के किसी को निलंबित करना अन्यायपूर्ण है। 5. *न्याय प्रणाली में वकीलों की भूमिका को कमजोर करना* - वकील न्याय प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उनके बिना न्याय प्रक्रिया अधूरी है। - इस अधिनियम के तहत वकीलों को अनुशासनात्मक कार्यवाही का डर दिखाकर उनकी स्वतंत्रता को कमजोर किया जा रहा है। यह न्याय प्रणाली के लिए खतरनाक है Chandan kumar Singh प्रदेश सचिव उत्तर प्रदेश कांग्रेस लीगल कमेटी 9140976573 https://whatsapp.com/channel/0029VaD8eyYFsn0csh5bUb28
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