Jeevan Ki Anmol Nidhi
                                
                            
                            
                    
                                
                                
                                February 27, 2025 at 03:24 AM
                               
                            
                        
                            "मौन की महत्ता"
एक बोध कथा ~
एक मछलीमार कांटा डाले तालाब के किनारे बैठा था। काफी समय बाद भी कोई मछली कांटे में नहीं फँसी, ना ही कोई हलचल हुई तो वह सोचने लगा... कहीं ऐसा तो नहीं कि मैने कांटा गलत जगह डाला है, यहाँ कोई मछली ही न हो !
    उसने तालाब में झाँका तो देखा कि उसके कांटे के आसपास तो बहुत-सी मछलियाँ थीं। उसे बहुत आश्चर्य हुआ कि इतनी मछलियाँ होने के बाद भी कोई मछली फँसी क्यों नहीं !
    एक राहगीर ने जब यह नजारा देखा तो उससे कहा- "लगता है भैया, यहाँ पर मछली मारने बहुत दिनों बाद आए हो! अब इस तालाब की मछलियाँ कांटे में नहीं फँसती।"
    मछलीमार ने हैरत से पूछा- "क्यों, ऐसा क्या है यहाँ ?
    राहगीर बोला- "पिछले दिनों तालाब के किनारे एक बहुत बड़े संत ठहरे थे। उन्होने यहाँ मौन की महत्ता पर प्रवचन दिया था। उनकी वाणी में इतना तेज था कि जब वे प्रवचन देते तो सारी मछलियाँ भी बड़े ध्यान से सुनतीं। यह उनके प्रवचनों का ही असर है कि उसके बाद जब भी कोई इन्हें फँसाने के लिए कांटा डालकर बैठता है तो ये मौन धारण कर लेती हैं। जब मछली मुँह खोलेगी ही नहीं तो कांटे में फँसेगी कैसे ? इसलिए बेहतर यहीं होगा कि आप कहीं और जाकर कांटा डालो।"
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    परमात्मा ने हर इंसान को दो आँख, दो कान, दो नासिका, हर इन्द्रिय दो ही प्रदान किया है। पर जिह्वा एक ही दी.. क्या कारण रहा होगा ?
क्योंकि यह एक ही अनेकों भयंकर परिस्थितियाँ पैदा करने के लिये पर्याप्त है।
    संत ने कितनी सही बात कही कि जब मुँह खोलोगे ही नहीं तो फँसोगे कैसे ?
    अगर इन्द्रिय पर संयम करना चाहते हैं तो.. इस जिह्वा पर नियंत्रण कर लेवें बाकी सब इन्द्रियां स्वयं नियंत्रित रहेंगी। यह बात हमें भी अपने जीवन में उतार लेनी चाहिए।
   *एक चुप सौ सुख*
🙏🙏
*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है!!*
° मानव ही सबसे बड़ी जाति °
° मानवता ही सबसे बड़ा धर्म °
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संकलन कर्ता-
        Dev Chandel
CEO & Founder GoojDex 
*हमारा आदर्श : सत्यम्-सरलम्-स्पष्टम्*
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