Abu Muhammad ابو محمد
Abu Muhammad ابو محمد
February 21, 2025 at 01:29 AM
*"बंटवारा क्यों ?"* """"""'"'''''''''''''''''''''''''''''''' इस दुनिया में सूर्य, चांद, सितारे, नदी, झरने, समुंदर, पेड़-पौधे, पहाड़ और पृथ्वी – ये सब किसी एक के लिए नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए हैं। ये प्रकृति की सौगातें हैं, जो बिना किसी भेदभाव के सभी को समान रूप से मिलती हैं। सूरज की किरणें अमीर-गरीब में भेद नहीं करतीं, हवा हर किसी के लिए बहती है, पानी किसी जाति या धर्म को देखकर अपनी राह नहीं बदलता। लेकिन अफसोस, इंसानों ने इन नेमतों को भी बांटने की कोशिश की है। जैसे-जैसे सभ्यता आगे बढ़ी, इंसानों ने सीमाएँ बना लीं—देशों की, धर्मों की, जातियों की और विचारों की। *जो चीज़ें सभी के लिए थीं, उन पर स्वामित्व जताने लगे।* यह देखना दुखद है कि जिसे बनाने वाला खुद बिना भेदभाव के सबका रब है, उसे भी इंसानों ने अपने-अपने खांचे में भाषा के आधार पर बांट दिया, देशी और विदेशी का ठप्पा लगाकर बांट दिया है। *रब सिख और मुसलमानों का है, तो परमेश्वर हिन्दुओं का है, और GOD ईसाईयों का है।* लेकिन सच्चाई यह है कि रब सिर्फ एक कौम का नहीं, बल्कि पूरी कायनात का है, वह महान रब हर इंसान को इंसानों की गुलामी से निकालकर खुद से जोड़ना पसंद करता है, और तुम उसी रब को भाषाओं में कैद कर रहे हो, जिसकी सत्ता पूरी कायनात और समूचे ब्रह्मांड में फैली हुई है। आज हम रंगों को भी धर्मों से जोड़ने लगे हैं। सफेद शांति का प्रतीक है, लेकिन किसी एक समुदाय से जोड़ दिया गया। हरा प्रकृति का रंग है, लेकिन उसे भी धर्म से जोड़ा जाता है। केसरिया त्याग और बलिदान का प्रतीक है, फिर भी इसे किसी एक वर्ग की पहचान बना दिया गया। फूलों की भी कोई सरहद नहीं होती, लेकिन हम उन्हें भी अपने-अपने खेमों में बांटने लगे हैं, गुलाब किसी के खाते में डाल दिया तो कमल और गेंदा किसी के खाते में डाल दिया। भाषाएं जो संवाद का जरिया थीं, वे भी अब पहचान और राजनीति का औजार बन गई हैं। और आज इसी के आधार पर अपनी सत्ता की कुर्सी के पायों को मजबूती देना चाहते हैं। क्या हमने कभी सोचा है कि जब बारिश होती है, तो वह किसी विशेष जाति या धर्म के घरों पर ही नहीं गिरती? जब पेड़ हवा में झूमते हैं, तो क्या वे देखकर ऑक्सीजन छोड़ते हैं कि इसे कौन ले सकता है और कौन नहीं? जब पृथ्वी हमें अपने सीने पर जगह देती है, तो क्या वह पूछती है कि तुम किस मजहब से हो? नहीं! फिर हम इंसान क्यों एक-दूसरे को इन सीमाओं में बांधते हैं? समाज की तरक्की इसी में है कि हम इन बंटवारों को खत्म करें। दुनिया को वैसे ही देखने की कोशिश करें, जैसी वह है—एकता और समानता की दुनिया। *अगर हम यह समझ लें कि हमारा असली धर्म एक स्वाभाविक धर्म है प्राकृतिक धर्म है और रब सबका है, तो शायद नफरत की दीवारें गिर जाएं और एक बेहतर समाज की नींव रखी जा सके।* *प्राकृतिक धर्म क्या है ??* *जो सूर्य का धर्म है जो पेड़ पोंधे चांद और सितारों का धर्म है वहीं वास्तविक धर्म है और वही धर्म हमारा धर्म है। और पूरी कायनात पर रब के जो नियम लागू है वह यह है कि दूसरों का भला करो उन्हें फायदा पहुंचाओ और रब के आदेशों पर खुद जमे रहो।* *इसी नियम पर पूरी कायनात चल रही है।*
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