
Abu Muhammad ابو محمد
February 25, 2025 at 12:10 PM
*"क़ुरान से सवाल जवाब"*
"""""""""""""""''''''"''''"""""""''''''''''''''''''
*अल्लाह ने हमें क्यों पैदा किया ?*
अल्लाह तआला ने फ़रमाया:
*"وَمَا خَلَقْتُ ٱلْجِنَّ وَٱلْإِنسَ إِلَّا لِيَعْبُدُونِ"*
*"और मैंने जिन्नों और इंसानों को सिर्फ इसलिए पैदा किया कि वे मेरी इबादत करें।"*
(सूरह अज़-ज़ारियात 51:56)
*तो क्या सारे लोग अल्लाह की इबादत करते हैं ?*
नहीं, इबादत तो छोड़िये दुनिया की अक्सरियत अपने रब को पहचानती तक नहीं हैं।
*तो फिर यह अक्सरियत क्या करती है ?*
लोगों की अक्सरियत शिर्क करती है। किसी ने अपने हाथों से अपने माबूद बना लिए हैं, तो किसी ने अपने नबी को ही खुदा बना लिया है।
*शिर्क क्या है ?*
अल्लाह तआला ने फरमाया:
*"إِنَّ ٱلشِّرْكَ لَظُلْمٌ عَظِيمٌ"*
*"निःसंदेह शिर्क (अल्लाह के साथ किसी को शरीक ठहराना) बहुत बड़ा जुल्म है।"*
(सूरह लुक़मान 31:13)
*तो क्या शिर्क करने वाला जन्नत में नहीं जा सकेगा ?*
अल्लाह तआला ने फरमाया:
*"إِنَّهُۥ مَن يُشْرِكْ بِٱللَّهِ فَقَدْ حَرَّمَ ٱللَّهُ عَلَيْهِ ٱلْجَنَّةَ وَمَأْوَىٰهُ ٱلنَّارُ ۖ وَمَا لِلظَّٰلِمِينَ مِنْ أَنصَارٍ"*
*"निःसंदेह जिसने अल्लाह के साथ किसी को शरीक ठहराया, तो अल्लाह ने उस पर जन्नत हराम कर दी है और उसका ठिकाना जहन्नम है, और ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं होगा।"*
(सूरह अल-मायिदा 5:72)
*जब शिर्क सबसे बड़ा गुनाह है, और जन्नत शिर्क करने वाले पर हराम है, तो उन्हें यह बात कैसे मालुम हो, वह तो पैदा ही गुमराही में हुए हैं, इसमें उनकी क्या ग़लती है ?*
इसके लिए अल्लाह ने क़ुरान नाजिल किया.
*"شَهْرُ رَمَضَانَ ٱلَّذِىٓ أُنزِلَ فِيهِ ٱلْقُرْءَانُ هُدًۭى لِّلنَّاسِ وَبَيِّنَٰتٍۢ مِّنَ ٱلْهُدَىٰ وَٱلْفُرْقَانِ"*
*"रमज़ान का महीना वह है जिसमें क़ुरआन नाज़िल किया गया, जो लोगों के लिए हिदायत है और हिदायत तथा सत्य और असत्य में अंतर करने वाली स्पष्ट निशानियाँ हैं।"*
(सूरह अल-बक़रह 2:185)
तमाम इंसानों की हिदायत के लिए ही अल्लाह ने क़ुरान को नाजिल किया है।
और गुमराही से निकालने का अल्लाह का यह सिस्टम शुरु से ही रहा है, क़ुरान से पहले भी किताबें नाजिल हुई और आप सल्लल्लाहो अलैहिवसल्लम से पहले भी कई नबी आ चुके थे।
और इसी के साथ नबी करीम सल्लल्लाहो अलैहिवसल्लम के बारे में अल्लाह ने फ़रमाया...
*"وَمَآ أَرْسَلْنَٰكَ إِلَّا رَحْمَةًۭ لِّلْعَٰلَمِينَ"*
*"और (ऐ नबी!) हमने आपको तमाम जहानों के लिए रहमत बनाकर भेजा है।"*
(सूरह अल-अंबिया 21:107)
और फिर तमाम इंसानों को सचेत सावधान करने के लिए अपने प्यारे रसूल से फ़रमाया..
अल्लाह तआला ने अपने रसूल ﷺ से फरमाया:
*"يَـٰٓأَيُّهَا ٱلرَّسُولُ بَلِّغْ مَآ أُنزِلَ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ ۖ وَإِن لَّمْ تَفْعَلْ فَمَا بَلَّغْتَ رِسَالَتَهُۥ ۚ وَٱللَّهُ يَعْصِمُكَ مِنَ ٱلنَّاسِ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَهْدِى ٱلْقَوْمَ ٱلْكَٰفِرِينَ"*
*"ऐ रसूल! जो कुछ तुम्हारे रब की तरफ़ से तुम पर नाज़िल किया गया है, उसे पहुँचा दो। और अगर तुमने ऐसा न किया, तो तुमने रिसालत का काम पूरा नहीं किया। और अल्लाह तुम्हें लोगों (की साज़िशों) से महफूज़ रखेगा। बेशक, अल्लाह काफ़िर क़ौम को हिदायत नहीं देता।"*
(सूरह अल-मायिदा 5:67)
इस आयत में अल्लाह ने अपने प्यारे रसूल को वार्निंग दी है, और बेखोफ होकर दावत देने का हुक्म दिया है और हिफाजत की जिम्मेदारी ली है।
*लेकिन अब रसूल और नबी तो नहीं है और ना ही आयेगें, तो अब इन लोगों को कौन राह दिखायें जो गुमराही के माहौल में पैदा हो रहे हैं ?*
इसके लिए प्यारे रसूल अपनी हयात में ही हर उस इंसान को यह जिम्मेदारी देकर गये हैं जो आपका इत्तेबाह का दावा करता है, और आपसे अल्लाह ने फ़रमाया है कि आप कह दीजिये ऐसे तमाम लोगों से..
*"قُلْ هَٰذِهِۦ سَبِيلِىٓ أَدْعُوٓا۟ إِلَى ٱللَّهِ ۚ عَلَىٰ بَصِيرَةٍ أَنَا۠ وَمَنِ ٱتَّبَعَنِى ۖ وَسُبْحَٰنَ ٱللَّهِ وَمَآ أَنَا۠ مِنَ ٱلْمُشْرِكِينَ"*
*"कह दो: यह मेरा रास्ता है। मैं अल्लाह की तरफ बुलाता हूँ, पूरी समझ-बूझ के साथ, मैं भी और वे भी जो मेरी इत्तेबाह करते हैं। और अल्लाह पाक है, और मैं मुश्रिकों में से नहीं हूँ।"*
(सूरह يوسف 12:108)
क़ुरान की इस आयत के जरिये आप सल्लल्लाहो अलैहिवसल्लम ने अपने इत्तेबाह और पैरवी करने वालों के लिए दावत की शर्त लगा दी है।
इसके बाद अल्लाह ने ऐसे लोगों को खुद जिम्मेदारी दी और फ़रमाया..
अल्लाह तआला ने फरमाया:
*"كُنتُمْ خَيْرَ أُمَّةٍ أُخْرِجَتْ لِلنَّاسِ تَأْمُرُونَ بِٱلْمَعْرُوفِ وَتَنْهَوْنَ عَنِ ٱلْمُنكَرِ وَتُؤْمِنُونَ بِٱللَّهِ"*
*"तुम बेहतरीन उम्मत हो, जिसे लोगों के लिए निकाला गया है। तुम नेकी का हुक्म देते हो, बुराई से रोकते हो और अल्लाह पर ईमान रखते हो।"*
(सूरह आले इमरान 3:110)
और ऊपर बता चुका हूं सबसे बड़ी बुराई शिर्क हैं।
*लेकिन अगर कोई यह पैगाम पहुंचाने का काम न करें तो.....???*
फ़रमाया अल्लाह ने..
*"إِنَّ ٱلَّذِينَ يَكْتُمُونَ مَآ أَنزَلْنَا مِنَ ٱلْبَيِّنَٰتِ وَٱلْهُدَىٰ مِنۢ بَعْدِ مَا بَيَّنَّٰهُ لِلنَّاسِ فِى ٱلْكِتَٰبِ أُو۟لَٰٓئِكَ يَلْعَنُهُمُ ٱللَّهُ وَيَلْعَنُهُمُ ٱللَّٰعِنُونَ"*
*"बेशक, जो लोग छुपाते हैं हमारी नाज़िल की हुई रौशन दलीलों और हिदायत को, उसके बाद कि हम उसे लोगों के लिए किताब में साफ़ बयान कर चुके, तो यही वे लोग हैं जिन पर अल्लाह लानत करता है और तमाम लानत करने वाले लानत करते हैं।"*
(सूरह अल-बक़रह 2:159)
बनी इस्राइल का वह आबिद जिसने सैकड़ों साल की उम्र पाई और उसने अपनी पूरी उम्र अल्लाह की जरा भी नाफरमानी नहीं की लेकिन उसकी जिन्दगी में दावत देने का अमल नहीं था, नतीजा अल्लाह ने अपने अजाब की शुरुआत ही वहीं से करवाई जिस जगह वह आबिद रहता था।
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहिवसल्लम ने ईमान के तीन दर्जे बतलाये, जिसमें सबसे निचला और आखिरी दर्जा बतलाया बुराई को दिल से बुरा समझना, इससे नीचे कोई ईमान नहीं है।
और हमारे सामने सबसे बड़ी बुराई शिर्क होती है ओर हम देखते हैं, और हमें कोई बेचैनी नहीं होती ???
❤️
👍
2