Dr.Arvind Pandey
Dr.Arvind Pandey
January 31, 2025 at 03:36 AM
*आन्तरिक निकटता चाहिए* 🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻 ●~●~●~●~●~●~●~●~●~● *दूसरों की तरह हमारे भी दो शरीर हैं, एक हाड़-मांस का, दूसरा विचारणा एवं भावना का।* हाड़-मांस से परिचय रखने वाले करोड़ों हैं। लाखों ऐसे भी हैं जिन्हें किसी प्रयोजन के लिए हमारे साथ कभी सम्पर्क करना पड़ा है। *अपनी उपार्जित तपश्चर्या को हम निरन्तर एक सहृदय व्यक्ति की तरह बाँटते रहते हैं।* विभिन्न प्रकार की कठिनाइयों एवं उलझनों में उलझे हुए व्यक्ति किसी दलदल में से निकलने के लिए हमारी सहायता प्राप्त करने आते रहते हैं। *अपनी सामर्थ्य के अनुसार उनका भार हलका करने में कोई कंजूसी नहीं करते।* इस संदर्भ में अनेक व्यक्ति हमारे साथ संपर्क बनाते और प्रयोजन पूरा होने पर उसे समाप्त कर देते हैं। *कितने ही व्यक्ति साहित्य से प्रभावित होकर पूछताछ एवं शंका समाधान करने के लिए, कितने ही आध्यात्मिक साधनाओं के गूढ़ रहस्य जानने के लिए, कई अन्यान्य प्रयोजनों से आते हैं।* इनकी सामयिक सेवा कर देने से हमारा कर्त्तव्य पूरा हो जाता है। उनके बारे में न हम अधिक सोचते हैं और न उनकी कोई शिकायत या चिंता करते हैं। *हमारे मन में भावनाएँ उनके लिए उफनती हैं जिनकी पहुँच हमारे अंतःकरण एवं भावना स्तर तक है।* भावना शरीर ही वास्तविक शरीर होता है। *हम शरीर से जो कुछ हैं, भावना की दृष्टि से कहीं अधिक हैं।* हम शरीर से किसी की जो भलाई कर सकते हैं उसकी अपेक्षा अपनी भावनाओं, विचारणाओं का अनुदान देकर कहीं अधिक लाभ पहुँचाते हैं। पर अनुदान ग्रहण वे ही कर पाते हैं जो भावनात्मक दृष्टि से हमारे समीप हैं। *जिन्हें हमारे विचारों से प्रेम है, जिन्हें हमारी विचारणा, भावना एवं अंतःप्रेरणा का स्पर्श करने में अभिरुचि है उन्हीं के बारे में यह कहना चाहिए कि वे तत्त्वतः हमारे निकटवर्ती एवं स्वजन संबंधी हैं। उन्हीं के बारे में हमें कुछ विशेष सोचना है, उन्हीं के लिए हमें कुछ विशेष करना है।* *✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य*

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