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Dr.Arvind Pandey

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Assistant professor Political Science स्तंभकार मीडिया प्रभारी, बी.आर.डी. बी.डी.पी.जी.कालेज, आश्रम बरहज, देवरिया

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2/20/2025, 5:15:39 AM

*आशाएँ अपेक्षाएँ रखने की अपेक्षा स्वयं अनुशासित रहना सीखें* ●~●~●~●~●~●~●~●~●~●~●~●~● *एक बार मेढ़कों को अपने समाज की अनुशासन हीनता पर बहुत खेद हुआ और वे शंकर भगवान के पास एक राजा भेजने की प्रार्थना लेकर पहुँचे। प्रार्थना स्वीकृत हो गई और शिवाजी ने नन्दी को राजा बनाकर भेज दिया। मेंढक इधर उधर निःशंक भाव से कूदते फाँदते से नन्दी के पैरों से दब कर कुचलने लगे। मेढ़कों को ऐसा राजा पसन्द नहीं आया फिर वे शिवलोक पहुँचे और पुराना हटाकर नया राजा भेजने का अनुरोध करने लगे।* *यह प्रार्थना स्वीकार कर ली गई। नन्दी वापस बुला लिया गया। अब की बार अपने गले का सर्प शासक बनाकर भेजा। उसे जब भी भूख लगती वह मेढ़कों को पकड़ कर खा जाता। इस नई विपत्ति से मेढक बहुत दुखी हुए और भगवान के पास जाकर शिकायत करने लगे।* *शिवाजी ने गम्भीर होकर कहा पहले मैंने अपना वाहन नन्दी भेजा फिर सर्प भेजा इस तरह शासक बदलने से कोई लाभ होने वाला नहीं है। शासन से बड़ी बड़ी आशाएँ अपेक्षाएँ रखने की अपेक्षा स्वयं अनुशासित रहना सीखते तो ज्यादा अच्छा। यह सुनकर बेचारे अपने प्रबंध में जुट गये।* *हम भी शासन का मुँह अधिक ताकते हैं आत्मावलम्बन पर निर्भर नहीं रहते।*

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2/19/2025, 9:47:16 AM

*लखनऊ :* राज्य कर के डिप्टी कमिश्नर दो लाख की रिश्वत लेते गिरफ्तार, विजिलेंस ने राज्य कर के डिप्टी कमिश्नर धनेंद्र को किया गिरफ्तार, एक कंपनी को 20 लाख की जीएसटी रिफंड देने के बदले मांगे थे दो लाख रुपए, संबंधित कंपनी के प्रतिनिधि ने की थी विजिलेंस हेल्पलाइन पर शिकायत।

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2/25/2025, 9:00:04 PM
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2/20/2025, 6:48:06 AM

ध्यान से इन्हें 👆 सुनिए और उसके बाद मुझे अपनी प्रतिक्रिया से अवगत भी कराएं। (part1)

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2/18/2025, 8:19:20 AM

*18 फऱवरी / जयंती – श्री रामकृष्ण परमहंस* श्री रामकृष्ण परमहंस का जन्म फागुन शुक्ल 2, विक्रमी सम्वत् 1893 (18 फरवरी, 1836) को कोलकाता के समीप ग्राम कामारपुकुर में हुआ था। पिता श्री खुदीराम चट्टोपाध्याय एवं माता श्रीमती चन्द्रादेवी ने अपने पुत्र का नाम गदाधर रखा था. सब उन्हें स्नेहवश ‘गदाई’ भी कहते थे। बचपन से ही उन्हें साधु-सन्तों का साथ तथा धर्मग्रन्थों का अध्ययन अच्छा लगता था। इसी कारण छोटी अवस्था में ही उन्हें रामायण, महाभारत आदि पौराणिक कथायें याद हो गयीं थीं। बड़े होने के साथ ही प्रकृति के प्रति इनका अनुराग बहुत बढ़ने लगा। प्रायः प्राकृतिक दृश्यों को देखकर भाव समाधि में डूब जाते थे। एक बार वे मुरमुरे खाते हुए जा रहे थे कि आकाश में काले बादलों के बीच उड़ते श्वेत बगुलों को देखकर इनकी समाधि लग गयी। ये वहीं निश्चेष्ट होकर गिर पड़े। काफी प्रयास के बाद इनकी समाधि टूटी। पिता के देहान्त के बाद बड़े भाई रामकुमार इन्हें कोलकाता ले आये और हुगली नदी के तट पर स्थित रानी रासमणि द्वारा निर्मित माँ काली के मन्दिर में पुजारी नियुक्ति करा दिया। मन्दिर में आकर उनकी दशा और विचित्र हो गयी। प्रायः वे घण्टों काली माँ की प्रतिमा के आगे बैठकर रोते रहते थे। एक बार तो वे माँ के दर्शन के लिये इतने उत्तेजित हो गये कि कटार के प्रहार से अपना जीवन ही समाप्त करने लगे; पर तभी माँ काली ने उन्हें दर्शन दिये. मन्दिर में वे कोई भेदभाव नहीं चलने देते थे; पर वहाँ भी सांसारिक बातों में डूबे रहने वालों से वे नाराज हो जाते थे। एक बार तो मन्दिर की निर्मात्री रानी रासमणि को ही उन्होंने चाँटा मार दिया। क्योंकि वह माँ की मूर्ति के आगे बैठकर भी अपनी रियासत के बारे में ही सोच रहीं थीं। यह देखकर कुछ लोगों ने रानी को इनके विरुद्ध भड़काया; पर रानी इनकी मन:स्थिति समझतीं थीं, अतः वह शान्त रहीं। इनके भाई ने सोचा कि विवाह से इनकी दशा सुधर जायेगी; पर कोई इन्हें अपनी कन्या देने को तैयार नहीं होता था। अन्ततः इन्होंने अपने भाई को रामचन्द्र मुखोपाध्याय की पुत्री सारदा के बारे में बताया। उससे ही इनका विवाह हुआ; पर इन्होंने अपनी पत्नी को सदैव माँ के रूप में ही प्रतिष्ठित रखा। मन्दिर में आने वाले भक्त माँ सारदा के प्रति भी अतीव श्रद्धा रखते थे। धन से वे बहुत दूर रहते थे। एक बार किसी ने परीक्षा लेने के लिये दरी के नीचे कुछ पैसे रख दिये; पर लेटते ही वे चिल्ला पड़े। मन्दिर के पास गाय चरा रहे ग्वाले ने एक बार गाय को छड़ी मार दी। उसके चिन्ह रामकृष्ण की पीठ पर भी उभर आये। यह एकात्मभाव देखकर लोग इन्हें परमहंस कहने लगे। मन्दिर में आने वाले युवकों में से नरेन्द्र को वे बहुत प्रेम करते थे। यही आगे चलकर विवेकानन्द के रूप में प्रसिद्ध हुये। सितम्बर 1893 में शिकागो धर्म सम्मेलन में जाकर उन्होंने हिन्दू धर्म की जयकार विश्व भर में गुँजायी। उन्होंने ही ‘रामकृष्ण मिशन’ की स्थापना की। इसके माध्यम से देश भर में सैकड़ों विद्यालय, चिकित्सालय तथा समाज सेवा के प्रकल्प चलाये जाते हैं। एक समय ऐसा था, जब पूरे बंगाल में ईसाइयत के प्रभाव से लोगों की आस्था हिन्दुत्व से डिगने लगी थी; पर रामकृष्ण परमहंस तथा उनके शिष्यों के प्रयास से फिर से लोग हिन्दू धर्म की ओर आकृष्ट हुए। 16 अगस्त, 1886 को श्री रामकृष्ण ने महासमाधि ले ली.।

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2/24/2025, 3:40:56 AM

*"क्यों करते हो गुरुर अपने चार दिन के ठाठ पर,* *मुठ्ठी भी खाली रहेंगी जब पहुँचोगे घाट पर..."* माइकल जैक्सन 150 साल जीना चाहता था! किसी सेे हाथ मिलाने से पहले दस्ताने पहनता था! लोगों के बीच में जाने से पहले मुंह पर मास्क लगाता था ! अपनी देखरेख करने के लिए उसने अपने घर पर 12 डॉक्टर्स नियुक्त किए हुए थे ! जो उसके सर के बाल से लेकर पांव के नाखून तक की जांच प्रतिदिन किया करते थे! उसका खाना लैबोरेट्री में चेक होने के बाद उसे खिलाया जाता था! स्वयं को व्यायाम करवाने के लिए उसने 15 लोगों को रखा हुआ था! माइकल जैकसन अश्वेत था, उसने 1987 में प्लास्टिक सर्जरी करवाकर अपनी त्वचा को गोरा बनवा लिया था! अपने काले मां-बाप और काले दोस्तों को भी छोड़ दिया। गोरा होने के बाद उसने गोरे मां-बाप को किराए पर लिया! और अपने दोस्त भी गोरे बनाए शादी भी गोरी औरतों के साथ की! नवम्बर 15 को माइकल ने अपनी नर्स डेबी रो से विवाह किया, जिसने प्रिंस माइकल जैक्सन जूनियर (1997) तथा पेरिस माइकल केथरीन (3 अपैल 1998) को जन्म दिया। वो डेढ़ सौ साल तक जीने के लक्ष्य को लेकर चल रहा था! हमेशा ऑक्सीजन वाले बेड पर सोता था उसने अपने लिए अंगदान करने वाले डोनर भी तैयार कर रखे थे! जिन्हें वह खर्चा देता था, ताकि समय आने पर उसे किडनी, फेफड़े, आंखें या किसी भी शरीर के अन्य अंग की जरूरत पड़ने पर वह आकर दे दें, उसको लगता था वह पैसे और अपने रसूख की बदौलत मौत को भी चकमा दे सकता है, लेकिन वह गलत साबित हुआ। 25 जून 2009 को उसके दिल की धड़कन रुकने लगी, उसके घर पर 12 डॉक्टर की मौजूदगी में हालत काबू में नहीं आए, सारे शहर के डाक्टर उसके घर पर जमा हो गए, वह भी उसे नहीं बचा पाए। उसने 25 साल तक डॉक्टर की सलाह के विपरीत, कुछ नहीं खाया! अंत समय में उसकी हालत बहुत खराब हो गई थी , 50 साल तक आते-आते वह पतन के करीब ही पहुंच गया था. 29अगस्त1958 को जन्मा. 25 जून 2009 को वह इस दुनिया से चला गया ! जिसने अपने लिए डेढ़ सौ साल जीने का इंतजाम कर रखा था! उसका इंतजाम धरा का धरा रह गया! जब उसकी बॉडी का पोस्टमार्टम हुआ तो डॉक्टर ने बताया कि, उसका शरीर हड्डियों का ढांचा बन चुका था! उसका सिर गंजा था, उसकी पसलियां कंधे हड्डियां टूट चुके थे, उसके शरीर पर अनगिनत सुई के निशान थे, प्लास्टिक सर्जरी के कारण होने वाले दर्द से छुटकारा पाने के लिए एंटीबायोटिक वाले दर्जनों इंजेक्शन उसे दिन में लेने पड़ते थे! माइकल जैक्सन की अंतिम यात्रा को 2.5 अरब लोगो ने लाइव देखा था। यह अब तक की सबसे ज़्यादा देखे जाने वाली लाइव ब्रॉडकास्ट हैं। माइकल जैक्सन की मृत्यु के दिन यानी 25 जून 2009 को 3:15 PM पर, Wikipedia,Twitter और AOL’s instant messenger यह सभी क्रैश हो गए थे। उसकी मौत की खबर का पता चलते ही गूगल पर 8 लाख लोगों ने माइकल जैकसन को सर्च किया! ज्यादा सर्च होने के कारण गूगल पर सबसे बड़ा ट्रैफिक जाम हुआ था! और गूगल क्रैश हो गया, ढाई घंटे तक गूगल काम नहीं कर पाया! मौत को चकमा देने की सोचने वाले हमेशा मौत से चकमा खा ही जाते हैं! सार यही है, बनावटी दुनिया के बनावटी लोग कुदरती मौत की बजाय बनावटी मौत ही मरते हैं! "क्यों करते हो गुरुर अपने चार दिन के ठाठ पर , मुठ्ठी भी खाली रहेंगी जब पहुँचोगे घाट पर"... धनवान होना गलत नहीं है , बल्कि....... "सिर्फ धनवान होना गलत है" आइए ज़िंदगी को पकड़ें, इससे पहले कि, जिंदगी हमको पकड़ ले❗️ खुल कर जियो दोस्तों, मौत तो अटल सत्य है, उस को तो आना ही है ।....... *_मृत्यु अटल है।_*

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2/18/2025, 8:19:30 AM
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2/17/2025, 3:15:02 PM

*_निंदा रस से बच कर रहें_* 🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻 *हमारा प्रिय शगल है दूसरों की निंदा करना। सदैव दूसरों में दोष ढूंढते रहना मानवीय स्वभाव का एक बड़ा अवगुण है। दूसरों में दोष निकालना और खुद को श्रेष्ठ बताना कुछ लोगों का स्वभाव होता है। इस तरह के लोग हमें कहीं भी आसानी से मिल जाएंगे।* *परनिंदा में प्रारंभ में काफी आनंद मिलता है लेकिन बाद में निंदा करने से मन में अशांति व्याप्त होती है और हम हमारा जीवन दुःखों से भर लेते हैं। प्रत्येक मनुष्य का अपना अलग दृष्टिकोण एवं स्वभाव होता है। दूसरों के विषय में कोई अपनी कुछ भी धारणा बना सकता है। हर मनुष्य का अपनी जीभ पर अधिकार है और निंदा करने से किसी को रोकना संभव नहीं है।* *लोग अलग-अलग कारणों से निंदा रस का पान करते हैं। कुछ सिर्फ अपना समय काटने के लिए किसी की निंदा में लगे रहते हैं तो कुछ खुद को किसी से बेहतर साबित करने के लिए निंदा को अपना नित्य का नियम बना लेते हैं। निंदकों को संतुष्ट करना संभव नहीं है।* *जिनका स्वभाव है निंदा करना, वे किसी भी परिस्थिति में निंदा प्रवृत्ति का त्याग नहीं कर सकते हैं। इसलिए समझदार इंसान वही है जो उथले लोगों द्वारा की गई विपरीत टिप्पणियों की उपेक्षा कर अपने काम में तल्लीन रहता है। किस-किस के मुंह पर अंकुश लगाया जाए, कितनों का समाधान किया जाए!* *प्रतिवाद में व्यर्थ समय गंवाने से बेहतर है अपने मनोबल को और भी अधिक बढ़ाकर जीवन में प्रगति के पथ पर आगे बढ़ते रहें। ऐसा करने से एक दिन आपकी स्थिति काफी मजबूत हो जाएगी और आपके निंदकों को सिवाय निराशा के कुछ भी हाथ नहीं लगेगा।* *संसार में प्रत्येक जीव की रचना ईश्वर ने किसी उद्देश्य से की है। हमें ईश्वर की किसी भी रचना का मखौल उड़ाने का अधिकार नहीं है। इसलिए किसी की निंदा करना साक्षात परमात्मा की निंदा करने के समान है। किसी की आलोचना से आप खुद के अहंकार को कुछ समय के लिए तो संतुष्ट कर सकते हैं किन्तु किसी की काबिलियत, नेकी, अच्छाई और सच्चाई की संपदा को नष्ट नहीं कर सकते। जो सूर्य की तरह प्रखर है, उस पर निंदा के कितने ही काले बादल छा जाएं किन्तु उसकी प्रखरता, तेजस्विता और ऊष्णता में कमी नहीं आ सकती।* *✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य*

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2/12/2025, 1:41:43 PM

*ले लिया संकल्प कि - "गलत रास्ते पर नहीं जाऊंगा"* ●~●~●~●~●~●~●~●~●~● एक बूढ़े व्यक्ति से एक युवा व्यक्ति मिलता है और पूछता है: "क्या आप मुझे याद करते हैं?" बूढ़ा व्यक्ति जवाब देता है, "नहीं, मुझे याद नहीं।" तब युवा व्यक्ति बताता है कि वह उसका छात्र था। गुरुजी पूछते हैं - "तुम अब क्या करते हो, जीवन में क्या कर रहे हो?" युवा व्यक्ति जवाब देता है- "मैं एक शिक्षक बन गया हूँ।" गुरुजी कहते हैं: "अच्छा, मेरी तरह?" युवा व्यक्ति कहता है: "हाँ, वास्तव में मैं शिक्षक इसलिए बना क्योंकि आपने मुझे प्रेरित किया था।" गुरुजी उत्सुक होकर पूछते हैं कि "तुमने कब तय किया कि शिक्षक बनना है?" युवा व्यक्ति एक कहानी सुनाता है:- "एक दिन, मेरा एक मित्र एक नई घड़ी पहनकर आया। मुझे वह घड़ी पसंद आई, और मैंने उसे चुरा लिया। थोड़ी देर बाद, मेरे मित्र ने गौर किया कि उसकी घड़ी गायब है और उसने तुरंत आपसे शिकायत की। तब आपने पूरी कक्षा से कहा:- ‘आज कक्षा के दौरान इस छात्र की घड़ी चोरी हो गई है। जिसने भी चुराई हो, कृपया लौटा दें।’ "मैंने घड़ी वापस नहीं की क्योंकि मैं पकड़ा जाना नहीं चाहता था।" तब आपने दरवाजा बंद कर दिया और कहा:- ‘सभी खड़े हो जाओ और एक घेरा बना लो। मैं सबकी जेब की तलाशी लूँगा, लेकिन इस शर्त पर कि सभी अपनी आँखें बंद रखेंगे।’ "हमने वैसा ही किया जैसा आपने कहा। आपने एक-एक करके सभी की जेबें टटोलनी शुरू कीं। जब आपने मेरी जेब में हाथ डाला, तो आपको घड़ी मिल गई। लेकिन आपने तलाशी जारी रखी, ताकि किसी को यह न पता चले कि घड़ी किसकी जेब से मिली थी। जब तलाशी पूरी हो गई, आपने कहा: ‘अपनी आँखें खोलो। घड़ी मिल गई है।’ "उस दिन आपने मुझे शर्मिंदा नहीं किया। न ही आपने कभी इस बारे में बात की, न मुझे अलग से बुलाकर कोई उपदेश दिया। मुझे आपका संदेश स्पष्ट रूप से मिल गया था। उस दिन मेरी ज़िंदगी बदल गई। मैंने निश्चय किया कि मैं कभी गलत रास्ते पर नहीं जाऊँगा। आपने मेरी इज्जत बचाई और मुझे सही राह दिखाई। इसीलिए मैं शिक्षक बना, क्योंकि आपसे मैंने सीखा कि एक सच्चा शिक्षक क्या होता है।"* युवा व्यक्ति पूछता है: "क्या आपको यह घटना याद है, गुरुजी?" बूढ़े शिक्षक मुस्कुराते हुए उत्तर देते हैं: "मुझे वह घटना जरूर याद है, जब मैंने घड़ी खोजी थी। लेकिन मुझे तुम याद नहीं हो। क्योंकि जब मैं तुम्हारी जेब टटोल रहा था, तब मैंने भी अपनी आँखें बंद कर रखी थीं।" "यही सच्ची शिक्षा का सार है।" यदि सुधारने के लिए अपमान करना पड़े, तो आप सिखाने की कला नहीं जानते।" 😊

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2/13/2025, 1:39:10 AM
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