Dr.Arvind Pandey
February 2, 2025 at 03:51 AM
*_प्रकृति और मानव मन की उमंग का पर्व-वसंत पंचमी_*
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*वसंत प्रकृति एवं मानव मन के संयोग का सुंदर पर्व है। प्रकृति अपने समस्त श्रृंगार के साथ वसंत का अभिनंदन करती है।* सुरभित आम के बौर और कोयल की कूक से वसंत के आगमन का संदेश प्रसारित होता है। इस संदेश से मानव मन भी पुलकित एवं उल्लसित हो उठता है। *वसंत मन में नव उमंग व हृदय में सजल भाव को जगाता है। नई आशाओं एवं कामनाओं को जन्म देता है। संभवतः इन्हीं सब कामनाओं को परिष्कृत और उदात्त करने के लिए सरस्वती पूजन की परंपरा प्रचलित हुई है।* सचमुच ही वसंत उमंग, उत्साह और उल्लास तुथा बुद्धि, विद्या एवं ज्ञान के समन्वय का पर्व है।
*ऋतुराज वसंत के आगमन के साथ ही प्रकृति का सुंदर स्वरूप निखर उठता है।* पतझड़ के पश्चात पेड़ पौधे नई-नई कोपलों, फूलों से आच्छादित हो जाते हैं। *धरती सरसों के फूलों की वासंती चादर ओढ़कर श्रृंगार करती है।* विभिन्न प्रकार के पुष्पों की मनमोहक छटा के साथ पलाश के रंग तथा कोयल की कूक सर्वत्र छा जाती है। *वसंत पुष्पों के माध्यम से प्रसन्नता व आनंद का उपहार सौंपता है।* वसंत के आगमन के साथ ही प्रकृति सजीव, जीवंत एवं चैतन्यमय हो उठती है। *वसंती बयार में प्रकृति का रूप 'नवगति-नवलय-तालछंद नव' से समन्वित हो जाता है। प्रकृति कुसुम-कलिकाओं की सुगंध से गमक उठती है। आम के बौर वातावरण को सुरभित कर देते हैं।* प्रकृति के इस परिवेश में मानव भी उसके साथ थिरक उठता है, तदाकार हो जाता है। *प्रकृति और मानव का यह आनंद वसंतोत्सव के रूप में प्रकट होता है।*
*_विद्या और ज्ञान का त्यौहार है बसंत पंचमी_*
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*इस पुण्य पर्व पर सरस्वती पूजन का विधान है। वसंत के नवपरिवेश में मानवीय इच्छा, आशाएँ एवं कामनाएँ अँगड़ाई लेती हैं।* प्रकृतिप्रदत्त इन भावों को परिष्कृत व उदात्त बनाने के लिए ज्ञान की देवी सरस्वती का पूजन किया जाता है, ताकि इन भावों को नूतन दिशा मिल सके। *मानव उत्साह और उल्लास के साथ ही आत्मज्योति को प्रज्वलित कर सके। वह तमस से प्रकाश की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर बढ़कर अमरत्व का दिव्य उपहार प्राप्त कर सके।* इसीलिए इस अवसर पर सरस्वती पूजन किया जाता है। *ज्योतिषशास्त्र के अनुसार वसंत ऋतु में ग्रहों का योग भी मांगलिक प्रकाश में अनुगमन करता है व ग्रहों की ग्रीष्म स्थिति के प्रारंभिक काल के परिचित स्वरूप का आभास कराता है, इसलिए भी सरस्वती पूजन का विधान है।*
*सरस्वती सरिता एवं कला की वाग्देवी के रूप में सांस्कृतिक आस्था का चिरकाल से संबल रही है। सरस्वती एक ओर जहाँ विलुप्त नदी के रूप में जन-संस्कृति का प्रतीक है, तो दूसरी ओर देशभूमियों में व्याप्त भारती की सांस्कृतिक चेतना का विकास है। सरस्वती पूजन कला-संस्कृति के रूप में सदियों से जनमानस की आध्यात्मिक जिज्ञासा की प्यास बुझाती रही है। यह अनेकता में एकता समेटे हुए चिर प्रेरणास्त्रोत होकर विवेकशील जीवन का आदर्श भी बनी रही है। असंख्य कवि-कलाकारों ने देवी सरस्वती की साकार प्रतिमा को सत्यं शिवं सुंदरम् भाव से भरा है।*
*✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य*