Dr.Arvind Pandey
February 3, 2025 at 02:20 PM
राधे - राधे
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*पराश्रित होने पर मनुष्य को अपना सम्मान खोना पड़ता है। वह दूसरों की दया पर निर्भर रहता है। अतः इससे उसकी मानसिक परतंत्रता प्रारंभ हो जाती है। यह सब से बुरी गुलामी होती है। दूसरों की दया, कृपा, पक्ष पाने के लिए उसे अपनी आत्मा के विरुद्ध जाना पड़ता है, अपनी आत्मा को दबाना पड़ता है। अतः दान लेना हमारे लिए शर्म की बात होनी चाहिए। जो दूसरों की भिक्षा प्राप्त करके जीवन में सुख और सफलता चाहते हैं उन्हें सिवाय कष्ट, निराशा, पश्चाताप और निरादर के और कुछ नहीं मिलता। अपनी मेहनत से कमाई रूखी रोटी भी दान के मालपुओं से अधिक उत्तम है।*