
रंगोली (Rangoli) 🌈
February 27, 2025 at 02:36 PM
*॥ श्रीहरि: ॥*
दिनांक 27.2.2025.
वि. सं. 2081, क्रोधी नाम संवत्सर, फाल्गुन मास, कृष्ण पक्ष, चतुर्दशी, गुरुवार। (गीता दैनन्दिनी अनुसार)
1- परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज का प्रवचन—
दिनांक— 4.1.1989, प्रातः 8.30 बजे।
स्थान— कोलकाता।
2-गीता पाठ— अध्याय 10 श्लोक संख्या 11 से 20 तक।
*⚜️ हम शरीर के हो जाएं, शरीर हमारा हो जाए, यह असंभव बात है और हम भगवान् के हैं, भगवान् हमारे हैं, यह वास्तविक बात है। सत् तत्त्व के साथ हमारी एकता का अनुभव हो जाय— यही सत्संग है, ऐसा अनुभव नहीं हो, तब तक सत्संग हुआ नहीं। हम शरीर के हैं, शरीर हमारा है, यह असत् का संग है। असत् को पकड़े हुए सत् का अनुभव करना चाहते हैं, वह कैसे हो जाएगा। जैसा है, वैसा मान लेने का नाम ज्ञान है। आज ही ऐसा मान लें तो वैसा ही दिखने लग जाएगा, यह मान्यता, मान्यता रूप से नहीं रहेगी, ऐसा अनुभव हो जाएगा। यह बात अभी स्वीकार कर लें तो अभी निहाल हो जाएं।*
*⚜️ शरीर-संसार के साथ कितना ही संबंध मानते रहें, कितना ही घुल-मिल जाएं, शरीर के साथ एकता हो सकती ही नहीं और परमात्मा से अपने को कितना ही अलग मानते रहें, परमात्मा से अलग हो सकते ही नहीं।*
⚜️ *'कह रघुपति सुनु भामिनि बाता। मानउँ एक भगति कर नाता॥' मनुष्य से बड़ी भूल यह होती है कि जो परमात्मा वास्तव में अपने हैं, उनको अपना नहीं मानता और जो शरीर-संसार कभी अपना था नहीं, अपना हुआ नहीं, अपना होगा नहीं, अपना हो सकता ही नहीं, उसे अपना मानता है। भगवान् का और हमारा संबंध सदा से है, भगवान् कभी हमारे से अलग थे नहीं, अलग हुए नहीं, अलग हो सकते नहीं, अलग होना संभव ही नहीं है; भक्त लोग ऐसा मान लेते हैं तो भगवान् उनके सामने प्रकट हो जाते हैं। हम मानें चाहे नहीं मानें, बात यही सच्ची है, इसमें सन्देह नहीं है।*
*⚜️ ये सब मिले हुए हैं और बिछड़ जाएंगे, बिछड़ जाएंगे नहीं हर दम बिछड़ ही रहे हैं। मनुष्य देखते हैं कि अभी तो साथ है ही, अभी तो लाभ ले लें, बिछड़ेगा तब देखा जाएगा; यह बहुत स्थूल दृष्टि है। हम यहाँ के नहीं हैं, यहाँ आये हैं और समय होते ही यहाँ से चले जाना होगा। जिस दिन यह शरीर मिला, उसी दिन से इसका वियोग होना शुरू हो गया। हमें यह बात अच्छी लगती है, सच्ची लगती है, हमारे तो आंख खुले और प्रकाश हो जाय, दिखने लग जाय, ऐसा प्रकाश हुआ है।*
*⚜️ हम पैदा हुए जब शरीर ऐसा नहीं था, यह प्रत्येक वर्ष, महिने, दिन में नहीं, प्रत्येक मिनट, प्रत्येक सेकण्ड में बदल रहा है और बदल कर नाश की तरफ, मौत की तरफ जा रहा है। ये खास बात है, इसे समझ कर मान लेना चाहिए। 'मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।'— यही बात सच्ची है। इस बात को आज-अभी मान लें तो आपका जीवन बदल जाए। बड़ी विलक्षणता आ जाएगी, अलौकिकता आ जाएगी। कितनी सच्ची, सुगम और ठोस बात है। मीराबाई का शरीर नहीं मिला, शरीर भगवान् के श्री विग्रह में समा गया।*
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