Islamic Theology
Islamic Theology
February 4, 2025 at 04:36 AM
क़यामत और इंसान का इनकार जब सितारों की रौशनी समाप्त हो जाएगी, जब गगन को फाड़ डाला जाएगा, जब पहाड़ रुई की तरह धुन दिए जाएंगे, जब रसूलों की उपस्थिति का समय आ जायेगा तो फ़ैसले का दिन आजाएगा और इंसान को पता चल जाएगा कि वह घड़ी आ गयी है जिसका उससे वादा किया जा रहा था तबाही है उस दिन उन लोगों के लिए जो आख़िरत का इनकार करते हैं और बहुत सी क़ौमें इन संसार में भी आख़िरत के इनकार के कारण ही तबाह व बर्बाद हुई हैं क्योंकि यदि आख़िरत का तसव्वुर पैदा हो जाये तो इंसान इस संसार में कोई ऐसा काम नहीं करेगा जो उसके लिए उसके आने वाले दूसरे जीवन में तबाही का कारण बने। (सूरह 77 अल मुरसलात आयत 7 से 15) संसार में ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है जो ख़ुदा का सिरे से इनकार करते हों वह किसी न किसी शक्ल में ख़ुदा को मानने पर मजबूर हैं यहांतक कि जो लोग no God की अवधारणा रखते हैं वह भी क़ुदरत (nature) को ख़ुदा मानते हैं जो अल्लाह की एक सिफ़त क़ादिर से माखूज़ है। लेकिन रिसालत और आख़िरत का इनकार करने वालों की संख्या ज़्यादा है। हक़ीक़त में जो रिसालत को और विशेष अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की रिसालत को स्वीकार कर ले तो तौहीद और आख़िरत को समझने और उसपर ईमान लाने में किसी दिक्कत का सामना नहीं होगा।
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