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Islamic Theology

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About Islamic Theology

*Islamic Theology Group का मकसद क्या है?* इस्लाम logical है, scientific है, social रिफॉर्म है, और सीधा रास्ता है। Islamic Theology team इस मकसद से काम कर रही है के कुरआन और हदीस की सही और authentic जानकारी लोगों तक आसान भाषा में पहुचा सकें। हमारा मकसद लोगों को तौहीद की दावत देना और हक़ की तरफ बुलाना है। हम मानते हैं कि सच्चा इमान ज़िन्दगी के प्रति गहरी ताज़ीम, माहौल की देखभाल, ज़िन्दगी के लिए मोहब्बत, समाज लिए पक्के इरादे पर आमादा करता है। कुरआन सिर्फ़ मुस्लिमों के लिए नहीं बल्कि सारी इंसानियत के लिए उतारा गया है, और इस्लाम सारी इंसानियत के लिए हिदायत है। अरबी भाषा का ज्ञान ना होने की वजह से भारत में कई तरह की गलत धारणाओं ने जन्म लिया, जिसका इस्लाम की सच्ची शिक्षा से कोई नाता नहीं। आज का दौर बहुत मुश्किल है, चारो तरफ fake news, झूठा मीडिया प्रचार, नफ़रत और confusion का माहौल है। जितना आसान झूठ फैलाना है उतना ही मुश्किल सच को सामने लाना है। इस मुश्किल दौर में Islamic Theology एक प्रयास है, इंसानियत का सच्चा पैग़ाम हिन्दी में लोगों तक पहुचाने का। कोई भी message जो नागैरत अंगेज़ है, जायज़ नहीं है और उसे हटा दिया जाएगा। यह ब्लॉग मुस्लिम, गैर मुस्लिम, बालिग़, पढ़े लिखे लोगों के लिए है जो इस्लाम के बारे में जानना चाहते हैं। ये ब्लॉग खास कर उन लोगों के लिए भी मुफीद है जो उर्दू और इंग्लिश समझने से क़ासिर हैं। आप भी इस काम में हमारे साथ जुड़ें और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक इस पैग़ाम को पहुचाने में मदद करें। नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके आप हमारे सब आर्टिकल पढ़ सकते है।👇 https://islamictheologies.blogspot.com/

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6/1/2025, 10:08:32 AM

*Islamic Quiz 100 - Correct Answer* ✅ Lawatat (Homo-Sexuality) Daleel : ۞ Tafseeli Wakaye Ke liye is link par click kare – https://ummat-e-nabi.com/history-of-dead-sea-by-holy-quraan

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5/31/2025, 2:56:26 PM

📮ज़ुल-हिज्जा के पहले 10 दिनों के लिए दुआओं की फ़हरिस्त 🔲 दोनों जहानों की बेहतरीन चीज़ों के लिए दुआ رَبَّنَا آتِنَا فِي الدُّنْيَا حَسَنَةً وَفِي الْآخِرَةِ حَسَنَةً وَقِنَا عَذَابَ النَّارِ ऐ हमारे रब! हमें दुनिया में भलाई अता फ़रमा, और आख़िरत में भी भलाई अता फ़रमा, और हमें आग के अज़ाब से बचा। {सूरत अल-बक़रा 2: आयत 201} 🔲 परेशानी के वक़्त की दुआ (ये याद रखते हुए कि इंसान हमेशा किसी न किसी परेशानी में मुब्तला रहता है, इसलिए इस दुआ को मुस्तक़िल पढ़ना बहुत फ़ायदे मंद है।) لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ الْعَلِيمُ الْحَلِيمُ، لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ رَبُّ الْعَرْشِ الْعَظِيمِ، لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ رَبُّ السَّمَاوَاتِ وَرَبُّ الْأَرْضِ، وَرَبُّ الْعَرْشِ الْكَرِيمِ अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं, जो इल्म वाला है, बुर्दबारी वाला है। अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं जो अज़ीम अर्श का रब है। अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं जो आसमानों, ज़मीन और इज़्ज़त वाले अर्श का रब है। {सहीह अल-बुख़ारी} 🔲 बीवी और औलाद के लिए दुआ رَبَّنَا هَبْ لَنَا مِنْ أَزْوَاجِنَا وَذُرِّيَّاتِنَا قُرَّةَ أَعْيُنٍ وَاجْعَلْنَا لِلْمُتَّقِينَ إِمَامًا ऐ हमारे रब! हमें हमारी बीवियों और औलाद से आंखों की ठंडक अता फ़रमा, और हमें परहेज़गारों का पेशवा बना। {सूरत अल-फुरकान 25: आयत 74} 🔲 मग़फ़िरत और ख़ूबसूरत अंजाम के लिए दुआ رَبَّنَا فَاغْفِرْ لَنَا ذُنُوبَنَا وَكَفِّرْ عَنَّا سَيِّئَاتِنَا وَتَوَفَّنَا مَعَ الْأَبْرَارِ ऐ हमारे रब! हमारे गुनाह माफ़ फ़रमा दे, हमारी बुराइयाँ हमसे दूर कर दे, और हमें नेक लोगों के साथ वफ़ात दे। {सूरत आल-इ-इमरान 3: आयत 193} 🔲 क़र्ज़, ज़ुल्म और ग़म से बचाव के लिए दुआ اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنَ الْهَمِّ وَالْحَزَنِ، وَالْعَجْزِ وَالْكَسَلِ، وَالْبُخْلِ، وَضَلَعِ الدَّيْنِ، وَقَهْرِ الرِّجَالِ ऐ अल्लाह! मैं तेरी पनाह चाहता हूँ ग़म और फ़िक्र से, आजिज़ी और सुस्ती से, बुख़्ल से, क़र्ज़ के बोझ से और लोगों के ग़ालिब आने से। {तिर्मिज़ी} 🔲 हिदायत और नुक़सान से हिफ़ाज़त के लिए दुआ اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِي، وَارْحَمْنِي، وَاهْدِنِي، وَعَافِنِي، وَارْزُقْنِي ऐ अल्लाह! मुझे बख़्श दे, मुझ पर रहम फ़रमा, मुझे हिदायत दे, मुझे आफ़ियत दे, और मुझे रिज़्क़ अता फ़रमा। {सहीह मुस्लिम} 🔲 बेहतरीन किरदार की हिदायत के लिए दुआ إِنَّ صَلَاتِي وَنُسُكِي وَمَحْيَايَ وَمَمَاتِي لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ، لَا شَرِيكَ لَهُ، وَبِذَلِكَ أُمِرْتُ، وَأَنَا مِنَ الْمُسْلِمِينَ اللَّهُمَّ اهْدِنِي لِأَحْسَنِ الْأَعْمَالِ وَأَحْسَنِ الْأَخْلَاقِ، لَا يَهْدِي لِأَحْسَنِهَا إِلَّا أَنْتَ، وَقِنِي سَيِّئَ الْأَعْمَالِ وَسَيِّئَ الْأَخْلَاقِ، لَا يَقِي سَيِّئَهَا إِلَّا أَنْتَ बेशक मेरी नमाज़, मेरी क़ुर्बानी, मेरी ज़िंदगी और मेरी मौत अल्लाह के लिए है जो तमाम जहानों का रब है। उसका कोई शरीक नहीं। और इसी बात का मुझे हुक्म दिया गया है और मैं मुसलमानों में से हूँ। ऐ अल्लाह! मुझे बेहतरीन आमाल और बेहतरीन अख़्लाक़ की हिदायत दे, उनकी हिदायत सिर्फ़ तू ही दे सकता है। और मुझे बुरे आमाल और बुरे अख़्लाक़ से बचा, उनसे सिर्फ़ तू ही बचा सकता है। {सुन्नन अन-नसाई} 🔲 सलामती और आफ़ियत के लिए दुआ اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ الْهُدَى، وَالتُّقَى، وَالْعَفَافَ، وَالْغِنَى ऐ अल्लाह! मैं तुझ से हिदायत, परहेज़गारी, पाकदामनी, और किफ़ायत तलब करता हूँ। {सहीह मुस्लिम} 🔲 जहन्नम से बचाव के लिए दुआ رَبَّنَا اصْرِفْ عَنَّا عَذَابَ جَهَنَّمَ، إِنَّ عَذَابَهَا كَانَ غَرَامًا، إِنَّهَا سَاءَتْ مُسْتَقَرًّا وَمُقَامًا ऐ हमारे रब! हम से जहन्नम का अज़ाब दूर फ़रमा। बेशक उसका अज़ाब हमेशा के लिए चिमटा रहने वाला है। यक़ीनन वो बहुत ही बुरा ठिकाना और रहने की जगह है। {सूरत अल-फ़ुरकान 25: आयात 65-66} 🔲 अपने गुनाहों का इक़रार करने वाली दुआ – हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम की दुआ अगर आपको मालूम हो जाए कि इस आयत के बाद कौन सी आयत आती है, तो आप यह दुआ पढ़ना कभी न छोड़ें! सुब्हान अल्लाह। अल्लाह हमारी दुआएं ऐसे ही क़बूल फ़रमाए जैसे उसने हमारे प्यारे नबी यूनुस अलैहिस्सलाम की दुआ को क़बूल फ़रमाया। لَا إِلَهَ إِلَّا أَنتَ سُبْحَانَكَ إِنِّي كُنتُ مِنَ الظَّالِمِينَ [तेरे सिवा कोई माबूद नहीं (ऐ अल्लाह), तू पाक है, बेशक मैं ही ज़ालिमों में से था] {सूरतुल अंबिया 21: आयत 87} अगली आयत – فَاسْتَجَبْنَا لَهُ وَنَجَّيْنَاهُ مِنَ الْغَمِّ ۚ وَكَذَٰلِكَ نُنجِي الْمُؤْمِنِينَ पस हमने उसकी दुआ क़बूल की और उसे ग़म से नजात दी, और हम मोमिनों को इसी तरह नजात देते हैं। {सूरतुल अंबिया 21: आयत 88} अल्लाह हमें उन मोमिनों में शामिल फ़रमाए जिन्हें वह नजात देता है! आमीन। रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: "क्या मैं तुम्हें एक ऐसी बात न बता दूँ कि अगर तुम में से किसी को कोई दुनियावी मुसीबत या आफ़त आ जाए और वह यह कलिमात कहे, तो अल्लाह उसे उस से नजात देगा? वह ज़ुन्नून (यूनुस) की दुआ है: 'لَا إِلَهَ إِلَّا أَنتَ سُبْحَانَكَ إِنِّي كُنتُ مِنَ الظَّالِمِينَ' (तेरे सिवा कोई माबूद नहीं, तू पाक है, बेशक मैं ही ज़ालिमों में से था)" एक और रिवायत में है: "कोई भी मुस्लिम शख़्स यह दुआ किसी भी चीज़ के बारे में नहीं माँगता, मगर अल्लाह उसकी दुआ क़बूल फ़रमाता है।" {सहीहुल जामिअस्सग़ीर व ज़ियादतहू, हदीस नंबर 2065} 🔲 ज़ालिम से हिफ़ाज़त या मुकम्मल बेबसी की हालत में दुआ – हज़रत नूह अलैहिस्सलाम की दुआ رَبِّ إِنِّي مَغْلُوبٌ فَانْتَصِرْ बेशक मैं मग़लूब हूँ, तू मेरी मदद फ़रमा। {सूरह क़मर 54: आयत 10} 🔲 अपने मामलात अल्लाह के सुपुर्द करने और बेहतरीन फ़ैसले की दुआ – हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की दुआ حَسْبُنَا اللَّهُ وَنِعْمَ الْوَكِيلُ अल्लाह हमारे लिए काफ़ी है, और वही बेहतरीन कारसाज़ है। {सूरह आले इमरान 3: आयत 173} 🔲 मुलाज़मत की पक्की जगह + निकाह के लिए दुआ – हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की दुआ मेरी सबसे पसंदीदा दुआओं में से एक। इसी दुआ के ज़रिए हज़रत मूसा अ़लैहि-स्सलाम को 8 से 10 साल की नौकरी और निकाह मिला। رَبِّ إِنِّي لِمَا أَنزَلْتَ إِلَيَّ مِنْ خَيْرٍ فَقِيرٌ ऐ मेरे रब! जो भी भलाई तू मेरी तरफ़ नाज़िल फ़रमाए, मैं उसका मोहताज हूँ। {सूरह क़सस 28: आयत 24} 🔲 अल्लाह की रहमत तलब करने की दुआ يَا حَيُّ يَا قَيُّومُ، بِرَحْمَتِكَ أَسْتَغِيثُ ऐ ज़िंदा, क़ायम रखने वाले! मैं तेरी रहमत के ज़रिए फ़रियाद करता हूँ। {तिर्मिज़ी} 🔲 अपने ग़म व दुख को अल्लाह के सुपुर्द करने की दुआ – हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम की दुआ إِنَّمَا أَشْكُو بَثِّي وَحُزْنِي إِلَى اللَّهِ मैं तो अपनी परेशानी और ग़म का शिकवा सिर्फ़ अल्लाह से करता हूँ। {सूरतु यूसुफ़ 12: आयत 86} وَأُفَوِّضُ أَمْرِي إِلَى اللَّهِ ۚ إِنَّ اللَّهَ بَصِيرٌ بِالْعِبَادِ और मैं अपना मामला अल्लाह के सुपुर्द करता हूँ। बेशक अल्लाह अपने बंदों को देखने वाला है। {सूरतु ग़ाफ़िर 40: आयत 44} 🔲 जहन्नम, क़ब्र, और दज्जाल के फ़ित्ने से हिफ़ाज़त की दुआ اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنْ عَذَابِ جَهَنَّمَ، وَمِنْ عَذَابِ الْقَبْرِ، وَمِنْ فِتْنَةِ الْمَحْيَا وَالْمَمَاتِ، وَمِنْ شَرِّ فِتْنَةِ الْمَسِيحِ الدَّجَّالِ ऐ अल्लाह! मैं तेरी पनाह माँगता हूँ जहन्नम के अज़ाब से, क़ब्र के अज़ाब से, ज़िंदगी और मौत के फ़ित्नों से, और मसीह दज्जाल के फ़ित्ने के शर से। {सहीह मुस्लिम} 🔲 दुआ की क़बूलियत के लिए दुआ رَبَّنَا وَتَقَبَّلْ دُعَاءِ ऐ हमारे रब! हमारी दुआ क़बूल फ़रमा। {सूरतु इब्राहीम 14: आयत 40}

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6/2/2025, 7:04:38 AM

*Islamic Quiz 102* Pyare Nabi (ﷺ) ne Sab se Zyada Kis ke Saath Husn-e-Sulook Karne ka Hukm diya hain? Options Are 👇

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6/1/2025, 10:09:30 AM

*Islamic Quiz 101* Kounse Do Gunaah hain Jiski Saza Duniya mein hi Mil jati Hain? Options Are 👇

❤️ 1
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5/31/2025, 8:34:32 AM

*Islamic Quiz 100* Wo Kounsa Gunaah tha Jiski wajah se Allah Rabbul Izzat ne Looth (A.S) ki Qoum ko Halaaq kiya? Options Are 👇

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6/2/2025, 7:03:53 AM

*Islamic Quiz 101 - Correct Answer* ✅ Zulm Aur Qata Rehmi Daleel : ۞ Hadees: Nabi-e-Kareem (ﷺ) ne farmaya: “Koi Gunaah Is Layeq nahi ke Allah Taala Uski Saza Duniya mein bhi Jaldi Dede aur Uske Saath Saath Aakhirat mein bhi Jama Rakhe Jaise ke Zulm O Zyadati aur Qata Rehmi.“ 📕 Sunan Abu Dawood, Hadees 4920

❤️ 2
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6/2/2025, 10:42:21 PM

इब्राहिम खलीलुल्लाह से इस्माइल ज़बीउल्ला तक जमीन और आसमान की हर चीज़ इस बात की गवाही दे रही थी के इस कायनात का खालिक बस एक ही रब है,असमान में गरदिश करने वाले चाँद सूरज सितारे वा सय्यारे भी गवाही दे रहे थे के हमें बस एक ही रब ने पैदा किया है,बे नमूना व बे सुतून खड़ा आसमां जिसमें कोई शिगाफ़ नही और लहलहाती ,हवाएं शोर मचा रहीं थीं कि अपने रब के साथ किसी को शरीक ना करो,जो सितारे इस क़ायनात के वाहिद रब की शहादत दे रहे थे, इन के बारे में तो कुछ और ही सरगोशियाँ होने लगी थी। जमीन के किसी गोशे में एक दरबार लगा था, जिस का बादशाह अपनी ख़ुदाई का घमंड़ लिये रियाया के हर फर्द पर जलाल बना हुआ था, बादशाह नमरूद ! इंतिहाई संग दिल ज़ालिम जाबिर व मुताक़ब्बिर बादशाह ! लेकिन ये क्या के आज उस के दरबार में नजूमी गमनाक और सर झुकाये बैठे हैं। नमरूद जरा परेशान हो गया, सवाल किया "ऐ नजूमियों!! किया बात आज तुम परेशान नज़र आते हो?" नजूमी भला किस तरह ज़ालिम बादशाह को उस की हलाकत की खबर सुनाते। चुनाचे डरते डरते कहने लगे "ऐ नमरूद आसमान में एक सितारा नमुदार हुआ है और आज से पहले ऐसा सितारा कभी नमूदार नही हुआ, ऐ नमरूद ये सितारा तेरी हुकूमत के जवाल की खबर देता है, तेरी रियाया में एक लड़का पैदा होगा जो तेरी हुकूमत का तख्ता पलट देगा।" ये सुन कर पहले नमरूद परेशान हुआ फिर हुक्म जारी कर दिया। " ऐ मर्दो तुम अपनी औरतों से अलग रहो और इस दिन के बाद जो भी बच्चा पैदा हो उसे क़त्ल कर दिया जाए (सूरह अनाम आयत न.74 तफ़्सीर इब्ने कसीर) हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की विलादत इन्ही दिनों में हुई लेकिन अल्लाह पाक ने आप अलैहिस्सलाम को जालिमों से महफूज रखा। इब्राहिम अलै.के वालिद आज़र ने नमरूद के डर से आप को एक गार में छुपा दिया था जहां आप जवान हुए आज़र के दो बेटे और थे हारान और नाहूर। लूत अलैहिस्सलाम हारान के बेटे और इब्राहिम अलैहिस्सलाम के भतीजे थे। आप जब जवान हुए तो आज़र उन्हें घर वापस ले आये और आपका निकाह सारा अलैहिस्सलाम से हुआ। इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने देखा उनका बाप आज़र पत्थर को तराश कर मूर्तियां बनाता है चुनाचे अपने बाप से सवाल करने लगे "अब्बा जान ये क्या है? वालिद ने कहा "ये हमारे खुदा हैं" हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने ताज़्ज़ुब से कहा "ये कैसे खुदा है जिनको आप पत्थर के टुकड़ों से तराश रहे हैं" पत्थरों को तराश तराश कर इनके दिल खुद पत्थर हो चुके थे फिर ये लोग कहाँ से उस बात को समझते। लेकिन इब्राहिम अलैहिस्सलाम को अल्लाह ने रुश्द व हिदायत से नवाजा था। आप इंतिहाई बुरदबार और सलीमुल फितरत इंसान थे अल्लाह ऐसे ही लोगो से मुहब्बत करता है तदबबुर और तफक्कुर (सोच समझ कर) काम लेते हैं चुनाचे इब्राहिम अलैहिस्सलाम उन खुदाओं से बेज़ार आसमान पर नज़रें जमाएं तदबबुर करने (सोचने) लगे थे। चाँद, सूरज, सितारों के आकार व साख्त और उन की रोशनी को देख कर कहने लगे "ये मेरे खुदा हैं लेकिन ज्यादा देर नही गुज़री उन का दिल मायूस हो चुका था और कहता जाता ये "कैसे खुदा हैं जो ग़ुरूब होने वाले मेरे खुदा नही हो सकते।" नफ़्स लववामा ने आवाज़ दी और नफ़्स मुतमईन्ना ने लब्बेक कह कर पुकार उठा। "मैंने सब से यकसु होकर अपनी जात को उस की तरफ मुतवज़्ज़ा कर लिया है ,जिसने आसमान और जमीन को पैदा किया है ,में हरगिज़ मुशरिकों में से नही हूं।" (सूरह अनाम आयत 79) लेकिन वालिद को दावत ए हक़ पर बुलाना सबसे बड़ा चैलेंज था चुनाचे एक दिन इब्राहिम अलैहिस्सलाम अपने वालिद से कहने लगे। अब्बा आप ऐसी चीज़ों को क्यों पूजते हैं जो ना सुने ना देखें और ना आपके कुछ काम आ सकें। (सूरह मरियम आयत 42) लेकिन हाय बदबख्ती के इन के बाप का जवाब इसके सिवा कुछ ना था के मै तुझे सन्ग्सार करदूंगा। बाप बेटे में जबरदस्त गुफ्तगू होने लगी जिस का तफसीली जिक्र सूरह मरियम 41 से 48 में किया गया है। बेटे ने बाप को बेहतरीन और उम्दा तरीके से दावत हक़ दी लेकिन बाप ने सिवाए संगसार करने की धमकी के कोई जबाब न दिया, आप की रहम दिली व मुहब्बत थी कि आप अपने वालिद को मगफिरत की दुआ की तसल्ली देते रहे लेकिन रब्बे जुल जलाल को एक मुशरिक की मगफिरत बिल्कुल ना गवारा थी और इब्राहिम को उन के लिए दुआ ए मगफिरत करने से मना कर दिया गया चुनाचे हदीस शरीफ में है कयामत के दिन हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम अपने वालिद आज़र से मिलेंगे तो आज़र के चहरे पर गर्द गुवार सियाही होगी हज़रत इब्राहीम अलै फरमायंगे " क्या मैने आप से नही कहा था आप मेरी नाफरमानी ना करे?" ,वो कहैंगे, "आज में ना फ़रमानी नही करूँगा" हज़रत इब्राहीम फ़रमाएंगे "या रब तूने मुझे से वादा किया था जिस दिन लोग (क़ब्रो से उठाए) जाएंगे उस तू मुझे रुसवा नही करेगा,इस से बड़ कर रुसवाई क्या होगी कि मेरा बाप रहमत से दूर है (जहन्नम में) जा रहा है। " अल्लाह फरमाएगा "मैने जन्नत काफ़िरो पर हराम कर दी है फिर फरमाया जाएगा ऐ इब्राहिम जरा अपने पैरों के नीचे देखो क्या है, वो देखेंगे तो ज़िब्ह किया हुआ जानवर खून में लुथड़ा हुआ पड़ा होगा, जिसकी टांगो से पकड़ कर दोजख में फेंक दिया जाएगा (सहीह बुखारी :3350) इब्राहिम अलैहिस्सलाम को जिस कौम की तरफ भेजा गया था,वो लोग साल में दो बार बहुत बड़ा जश्न मनाते थे जब सब लोग जश्न के लिए निकलने लगे तो इब्राहिम अलैहिस्सलाम बीमारी का बहाना बनाकर वही रुक गए। आप उनके बुतखाने में दाखिल हुए और तमाम बुतों को तोड़ डाला और एक बड़े बुत के हाथ कुल्हाड़ी दे दी,इसका जिक्र सूरह अम्बिया में तफ़्सील से मिलता है। चुनाचे आप की कौम जब वापस आई तो सब इब्राहिम अलैहिस्सलाम को इल्ज़ाम देने लगे उस वक़्त इब्राहिम ने बेहतरीन हिकमत से अपने लोगो को दावत ए हक़ देते हुए कहने लगे "भला इस बड़ी बुत से पूछ लो, अगर ये बोलते हैं? उन की इस बात को सुन कर सब अपने नफ़्सो की तरफ पलटे आखिर ये कैसे कर सकता है? लेकिन हाय बदबख्ती उन पत्थर तराश ने वालो के दिल पत्थर हो चुके थे ,सिवाय आपकी बीबी सारा अलैहिस्सलाम के और लूत अलैहिस्सलाम के जो आपके भतीजे थे आप पर कोई ईमान ना लाया। दावत ए ईमान देने वालो के साथ हमेशा यही होता है या तो ज़िन्दान (जेल) के नज़र कर दिया जाता है या आग के घड़ो की ग़िज़ा बना दिया जाता है। चुनाचे आपको आतिश दान की नज़र करने का फैसला कर दिया गया। आग का अलाव तैयार किया जाने लगा लेकिन इब्राहिम अलैहिस्सलाम का ईमान ज़रा भी ना डगमगाया। इस दौरान नमरूद ने इब्राहिम अलैहिस्सलाम से पूछा "ऐ इब्राहिम तेरा रब कौन है?" इब्राहिम अलैहिस्सलाम जबाब दिया "वही है जो मुर्दों को ज़िंदा करता है और सूरज को मशरिक़ से निकलता है बस अगर तू खुदा है तो सूरज को मग़रिब से निकाल।" नमरूद हैरान रह गया लेकिन अल्लाह जालिमो को हिदायत नही देता (अल क़ुरआन) उधर आग को जलाने का सामान हो चुका था आप को आग में फेंकने के लिए मन्जनीख (सुतून) तैयार की जा चुकी थी हैज़न नामी एक शख्स ने तैयार की थी जो इससे पहले कभी नही बनाई गई (सूरह अम्बिया 68) लोगो ने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को पकड़ कर बांध दिया मस्के कस दी। लेकिन हाय इब्राहीम तेरा ईमान तो बे मिसाल था इस वक़्त भी अपने रब से उम्मीद बांधे अपने रब को पुकार रहा था। (ऐ अल्लाह)तेरी सिवा कोई माबूद ए बर हक़ नही तू पाक है, ज़हांनों के मालिक,तेरी ही तारीफ है,तेरी ही बादशाही है ,और तेरा कोई शरीक नही। आसमान और जमीन लरज़ उठे थे फरिश्तों को इब्राहीम अलैहिस्सलाम के ईमान पर रश्क़ आ रहा था मंजीनिख आग के करीब ले जाने जा रही थी आग भी ऐसी जिसके शोले आसमान को जा पहुँचते ऐसे में बारिश का फरिश्ता नमूदार हुआ "ऐ इब्राहीम अलैहिस्सलाम आप कहे तो मैं पानी बरसाऊ ?" इब्राहीम ने पूछा "क्या तुम्हें अल्लाह ने भेजा है?" कहा "नही।" फिर जिब्राइल अलैहिस्सलाम नमूदार हुए "ए इब्राहीम आपकी कोई हाज़त है?" कहा "क्या आपको अल्लाह ने भेजा है?" कहा "नही।" इब्राहीम ने कहा जिसने मुझे पैदा क्या है जिसके सब मौहताज़ हैं में उस रब्बुल आलमीन का मौहताज़ हूं वो अलीम भी है और खबीर भी (अल अम्बिया 68 इब्ने कसीर) बस फिर होना क्या था। बे खतर कूद पड़ा आतिश ऐ नमरूद में इब्राहिम। हुक्म होता है یا نارکونی بردوسلام علی ابراہیم ऐ आग !इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर ठण्डी हो जा और सलामती वाली बन जा। इब्राहीम अलैहिस्सलाम तेरे रब ने तुझ से दोस्ती कर ली तुझे खलीलुल्लाह का लक़ब दे दिया गया तेरे आग में कुदने से क़ब्ल ही तुझ पर आग को ठंडा कर दिया गया। सलाम हो इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर। लेकिन आजमाइश का सिलसिला भी कहा खत्म होने वाला था आप आग से तो सही सलामत निकल आये लेकिन पत्थर दिल लोग फिर भी ईमान नही लाये। फिर आप वहाँ से अल्लाह के हुक्म से हिज़रत कर गए आप को खुदा ने 86 बर्ष तक कोई औलाद नही दी थी बूड़ापे से हड्डियां गलती जा रहीं थी आप ने हाज़रा अलैहिस्सलाम से निकाह किया था और अल्लाह से दुआ करते जाते। رب ھب لی من الصالحی ऐ मेरे रब मुझे सालेह लड़का अता कर इस दुआ को 86 साल कि उम्र में शरफे कबूलियत अता हुई। आप के यहाँ इस्माईल अलैहिस्सलाम पैदा हुए। इब्राहीम अलैहिस्सलाम की खुशी का ठिकाना न था आप शुक्र गुज़ारी में सज्दा रेज़ हो गए। लेकिन हाय आज़माईश!! खुदाबंद तआला को ये भी कहाँ मंज़ूर था कि इसके खलील के दिल में रब से ज्यादा बेटे की मुहब्बत बड़ जाए "हुकुम होता है जा अपनी बीबी और बच्चे को मक्का की वादी में छोड़ आ। खलीलुल्लाह ने एक लम्हा भी ना सोचा और खुदा के हुकुम पर राज़ी हो गए। बीबी ऐसी फरमाबरदार की उफ्फ ना कहा रब के हुकुम और शौहर की इतात में सर तस्लीम खम कर दिया। आज़माईश फिर भी कहाँ थमने वाली थी इस्माईल अलैहिस्सलाम जवान हो चुके थे उन की वालिदा ने तन तन्हा उन की परवरिश की थी और तरबियत भी ऐसी इब्राहीम खलीलुल्लाह के लख्ते जिगर इस्माइल जबीउल्लाह बनने वाले थे। इब्राहीम अपने बेटे को तलाश करते हुए मक्का आ गए और अपने बेटे से खूब मुहब्बत करने के बाद कहने लगे "ऐ मेरे बेटे मेने ख्वाब देखा है में तुझे ज़िब्ह कर रहा हूं।" वजाय इस के अपने वालिद से लड़ते और ये कहते के आप ने तो बचपन ही में मुझे और मेरी वालिदा को आप ओ गया(बंजर)मैदान में छोड़ दिया था, इस्माईल का जबाब तो रोंगटे खड़े करने वाला था, "ऐ अब्बा जान आप कर गुज़रिये जो आप को हुक्म दिया जाता है इंशाल्लाह आप मुझे साबिरो में से पाएंगे।" हाय!!!! "ये फैज़ान ए नज़र था या के मकतब की करामात थी सिखाये किस ने इस्माईल को आदाब ए फ़रज़न्द।" इस्माइल ज़िब्ह होने के लिए तैयार खड़े है, बाप बेटे क़ुरबानी के लिए चलते जा रहे हैं। लेकिन ये क्या, आंसुओ से तर गमज़दा दिल लें बोझल आवाज़ से कोई रोये जा रहा है और कहता जा रहा है "नही इब्राहीम!! ये तेरा लाडला है और तेरे बुड़ापे का सहारा है ऐसा मत करो। नही इस्माईल!! तू इस शख्स की बात मत मान जो तुझे बचपन में ही छोड़ गया था। " ये शैतान था जो वसवसे डालने आया था और इब्राहीम अलै की ज़िंदगी तो इस शैतान को मायूस करने में गुज़री थी। इब्लीस शैतान मायूस हो कर चला गया। फिर वो मंज़र, वो ख़ौफ़नाक मंज़र भी सामने आया जब इब्राहीम अपने बेटे को माथे के बल लेटा चुके थे। और दोनों ने रब का हुक्म मान लिया और बेटे को माथे के बल लेटा दिया छुरी गर्दन पर रखने जा रहे थे इब्राहीम अलैहिस्सलाम आंखे मूंदे गर्दन मुबारक पर छुरी चलाने वाले है। हाथ है, के हुक्म खुदावन्दी पर चलने को तैयार है गर्दन है, कि हुकुम खुदावन्दी पर कटने को तैयार है ,,,के आवाज़ आती है। قد صدقت الرءیا ऐ इब्राहीम तूने अपना ख्वाब सच कर दिखाया। इब्राहीम खलीलुल्लाह तो इस्माईल जबीउल्लाह का लक़ब पा चुके थे इब्राहीम तुझे तेरे रब ने खूब आज़माया और तू कामयाब हो गया। अल्लाह ने इन की कुर्बानियां को जाया ना किया इस क़ुरबानी को रहते दुनिया तक इस्लामी शीआर (निशानी) बना दिया। और ये दुनिया !!!! असल क़ुरबानी पर गौर करने से क़ासिर दुनिया फॉर्मलटी निभाने वाली दुनिया !! आरज़ी चीज़ों में उलझी दुनिया !!! अलगरज़ ये है कि असल क़ुरबानी तो बाप बेटे की गुफ्तगू थी। आज दुनिया को जानवर का ज़िब्ह करना याद रहा और वो ईमान से लबरेज रब तआला के हुक्म पर सर झुका देने वाली गुफ्तगू भूल गए जिस से आगाही इंसान को जमीन से सुरैया पर पहुँचा दे। अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से दुआ है वो हमें इब्राहीम अलैहिस्सलाम इस्माईल अलैहिस्सलाम सा जज़्बा इताअत व क़ुरबानी अता करे-आमीन

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Islamic Theology
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6/2/2025, 4:32:40 PM

अरफ़ा का रोज़ा जुमा के दिन आ जाए तो?? °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°° अरफ़ा, नौ ज़ुल-हिज्जा अगर जुमा को आ जाए तो क्या अकेला जुमा का रोज़ा रख सकते हैं? क्यों कि रसूलुल्लाह ﷺ ने अकेला जुमा का रोज़ा रखने से मना किया है, जैसा कि सय्यदना अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : "दिनों में से जुमा के दिन को रोज़े से ख़ास न करो।" (सहीह मुस्लिम : 1144) इसी तरह आप ﷺ ने फ़रमाया : "आप में से कोई भी जुमा के दिन रोज़ा न रखे, सिवाय इसके कि उस से एक दिन पहले और एक दिन बाद भी साथ रोज़ा रखता हो।" (सहीह बुख़ारी : 1985) याद रखें कि इस हदीस में जुमा के दिन की ख़ास फ़ज़ीलत समझ कर उस दिन का रोज़ा रखने से मना किया गया है, लेकिन यह मुमानअत (मनाही/प्रतिबंधित) उस सूरत में ख़त्म हो जाती है जब रोज़े का मक़सद जुमा का दिन ख़ास करना न हो, बल्कि बन्दा किसी दूसरी फ़ज़ीलत की वजह से रोज़ा रखे। क्यों कि मुमानअत की हदीस में ही है कि नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया : "सिवाय इस के कि तुम में से जो कोई पहले से रोज़े रख रहा हो।" (सहीह मुस्लिम : 1144) ✿ जैसा कि अल्लामा अबू अल-अब्बास क़ुर्तबी रहिमहुल्लाह (656 हिजरी) फ़रमाते हैं : "इस हदीस का मक़सद यह है कि जुमा के दिन को रोज़े के लिए ख़ास न किया जाए इस ए‘तिक़ाद के साथ कि उसका रोज़ा वाजिब है, या इस लिए कि लोग इस दिन की ता’ज़ीम में वही तरीक़ा इख़्तियार न कर लें जो यहूद ने अपने हफ़्ते के दिन के बारे में इख़्तियार किया था; यानी उनका तमाम कामों को छोड़ देना और सिर्फ़ उस दिन की ता’ज़ीम के लिए उसे ख़ास कर लेना।" (अल-मुफ़्हिम : 3/201) ✿ इसी तरह हाफ़िज़ इब्न क़ुदामा रहिमहुल्लाह (620 हिजरी) फ़रमाते हैं : "जुमा के दिन को अकेले रोज़ा रखने के लिए मख़सूस करना मक्रूह है, इल्ला ये कि वह रोज़ा किसी ऐसे मामूल के मुताबिक़ हो जिसे वह पहले से रखता हो, जैसे वह शख़्स जो एक दिन रोज़ा रखता है और एक दिन इफ़्तार करता है, और इत्तिफ़ाक़ से जुमा का दिन उसके रोज़े के दिन में आ जाए, या वह शख़्स जिसकी आदत महीने के पहले दिन, या आख़िरी दिन, या निस्फ़ (बीच) में रोज़ा रखने की हो, या इसी तरह के दूसरे मामूलात हों।" (अल-मुग़नी : 3/170) ✿ इमाम अहमद बिन हंबल रहिमहुल्लाह (241 हिजरी) फ़रमाते हैं: "अगर अरफ़ा, जुमा के दिन हो, और बन्दे ने पिछले दिन रोज़ा न रखा हो, तो भी वह जुमा के दिन (यानी यौमे अरफ़ा) का रोज़ा रखेगा।" (अत-तअलीक़ा अल-कबीरा लि अबी यअला : 2/122) ✿ इसी तरह इमाम अहमद रहिमहुल्लाह से पूछा गया, कि बन्दा एक दिन रोज़ा रखता हो और एक दिन छोड़ता हो, तो उसके छोड़ने का दिन जुमेरात हो, जुमा रोज़े का दिन हो और शनिवार फिर छोड़ने का दिन हो तो क्या यह अकेला जुमा का रोज़ा रखेगा? तो उन्होंने फ़रमाया : "उसने जान-बूझ कर जुमा को ख़ास कर के रोज़ा नहीं रखा, जबकि मक्रूह तब है जब जान-बूझ कर ख़ास कर के उसका रोज़ा रखें।" (अल-मुग़नी : 3/170) ✿ सऊदी फ़तवा कमेटी के उलमा से इस बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने फ़रमाया : "यौमे अरफ़ा का रोज़ा रखना मशरू है चाहे यह जुमा के दिन आ जाए, अगरचे उस से एक दिन पहले रोज़ा न रखा हो; क्यों कि नबी करीम ﷺ से इस दिन के रोज़े की तरग़ीब, इसकी फ़ज़ीलत और अज़ीम अज्र के बारे में अहादीस साबित हैं। रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : "यौमे अरफ़ा का रोज़ा दो साल के गुनाहों का कफ़्फ़ारा बन जाता है, एक गुज़िश्ता साल का और एक आने वाले साल का, और आशूरा के दिन का रोज़ा गुज़िश्ता एक साल के गुनाहों का कफ़्फ़ारा है।" (सहीह मुस्लिम : 1162) यह हदीस उस उ‘म्मूमी हदीस की तख़सीस करती है जिसमें फ़रमाया गया : "तुम में से कोई जुमा के दिन रोज़ा न रखे, इल्ला ये कि वह उस से एक दिन पहले या एक दिन बाद भी रोज़ा रखे।" (सहीह बुख़ारी : 1985, सहीह मुस्लिम : 1144) ✿ इस 'उमूमी मुमानअत को उस सूरत पर महमूल किया जाएगा जब कोई शख़्स महज़ जुमा के दिन के ए‘तिबार से रोज़ा रखे। अलबत्ता अगर कोई शख़्स किसी ऐसे सबब से रोज़ा रखे जिसकी शरीअत ने तरग़ीब दी हो, तो ऐसा रोज़ा रखना ममनू नहीं बल्कि मशरू है, अगरचे उसने जुमा को अकेले रोज़ा रखा हो। लेकिन अगर वह उस से एक दिन पहले भी रोज़ा रख ले तो यह अफ़ज़ल होगा; इसमें दोनों हदीसों पर अमल की एहतियात भी है और अज्र व सवाब में इज़ाफ़ा का बाइस भी है।" (फ़तावा अल-लज्ना अद-दा’इमा - अल-मजमूआ अल-ऊला : 10/395) ✅हासिल-ए-कलाम यह है कि अगर अरफ़ा का रोज़ा जुमा के दिन आ जाए तो इस दिन रोज़ा रखा जा सकता है, इस से पहले या बाद में कोई रोज़ा रखना ज़रूरी नहीं और न ही यह उसके रोज़े की मुमानअत में शामिल है। वल्लाहु अअलम। ...हाफ़िज़ मुहम्मद ताहिर हाफ़िज़ाहुल्लाह

Islamic Theology
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5/31/2025, 2:40:15 PM

*Quick Qur'an Quiz* PART - 198 Topic - Surah An-Nahl, Ayah - 81 to 90 Maximum Marks : 100 "Humne is Quran ko nasihat ke liye aasaan zariya bana diya hai, phir kya hai koi nasihat qabool karne wala." [Qur'an 54:17] Let's Start Your Test:👇🏻 https://islamictheologies.blogspot.com/2025/04/quran-quiz-198.html

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5/31/2025, 8:33:29 AM

*Islamic Quiz 99 - Correct Answer* ✅ Tamam Aalam ke liye Daleel : Allah Rabbul Izzat iske Talluk se Quraan me farmata hai – “Wama Arsalnaka Illa Rahmatan Lil Aalameen” (Tarjuma: Aye Nabi! Humne Aapko Tamam Insaniyat ke Liye rehmat banakar bheja) 📕 Al-Quran 21:107

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