
सुलेखसंवाद
February 13, 2025 at 06:36 PM
हिन्दी पद्यानुवाद मूलतः तमिल भाषा में रचित कालजयी बहुआयामी काव्य ग्रन्थ-
संत तिरुवल्लुवर ने तिरुक्कुरल की रचना करके मानव जगत को अनमोल उपहार दिया है। दो हजार वर्ष पूर्व तमिळ में लिखी इस रचना का लाभ व्यापक जगत को एवं हिन्दी के जानकारों को मिल सके इसी हेतु यह पद्यानुवाद आप तक पहुँचा रहा हूं। मनुष्य, मानवता एवं मानव जीवन संबंधी हर पहलू विद्यमान है तिरुक्कुरल में। मनुष्य का सद्गुण एवं मानव धर्म, व्यवस्थित शासन के अभिन्न अंग, आर्थिक सम्पन्नता से सुसज्जित समाज, मानवीय व्यवहार एवं मित्रता, दुर्गुणों से मुक्ति, श्रृंगार के लालित्य से ओतप्रोत दाम्पत्य जीवन, व्यवस्थित परिवार, ये सब समाहित हैं तिरुक्कुरल में। संक्षेप में, आप का कार्य क्षेत्र चाहे जो हो, आप जीवन में चाहे जिस पड़ाव पर हों, तिरुक्कुरल आपके लिए है।
इसे हिंदी जगत में लाने का श्रेय जाता है-
डॉ. पवन कुमार सिंह को जो वर्त्तमान में भारतीय प्रबन्धन संस्थान तिरुचिरापल्ली के निदेशक हैं। इसके पहले वे प्रबन्ध विकास संस्थान गुड़गाँव के निदेशक, भारतीय प्रबन्धन संस्थान इन्दौर के प्रभारी निदेशक, व भारतीय प्रबन्धन संस्थान सम्बलपुर के प्रथम अकादमिक कमीटी के अध्यक्ष के पदों पर कार्य कर चुके हैं। उनके साथ रमाकान्त सिंह ने इसे हिंदी में लाने में एक सहायक भूमिका अदा की है जो 1950 के दशक के स्नातक हैं। हिन्दी, अंग्रेजी, अर्थशास्त्र, व इतिहास के विषयों का उन्होंने अध्ययन किया। भारतीय रेल की सेवा उन्होंने मंडल स्तर पर संरक्षक व नियंत्रक की भूमिका में तीन दशकों तक की। इस दौरान वे लगातार लेखन करते रहे। विभिन्न पत्रिकाओं में उनके लेख छपे व कविताएँ भी छपीं। सेवानिवृत्ति के बाद पूर्णरुपेण साहित्य की सेवा में लगे हैं।

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