
सुलेखसंवाद
February 18, 2025 at 11:04 PM
यदि किसी जल स्रोत में फेकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया अधिक संख्या में मौजूद होते हैं, तो इसका मतलब है कि पानी में किसी न किसी स्रोत से मल पदार्थ मिला है। हालांकि जरूरी नहीं कि वे बीमारी के कारक हों, लेकिन फेकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया बीमारी फैलाने वाले जीवों की मौजूदगी का संकेत दे सकते हैं, जो फेकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया के समान वातावरण में रहते हैं।
फेकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया के उच्च स्तर वाले पानी में तैरने से मुंह, नाक, कान या त्वचा में कट के माध्यम से शरीर में प्रवेश करने वाले रोगजनकों से बीमारी (बुखार, मतली या पेट में ऐंठन) विकसित होने की संभावना बढ़ जाती है। उच्च फेकल कोलीफॉर्म मात्रा वाले पानी में होने वाली बीमारियों में टाइफाइड बुखार, हेपेटाइटिस, गैस्ट्रोएंटेराइटिस, पेचिश और कान के संक्रमण शामिल हैं। अन्य बैक्टीरिया की तरह, फेकल कोलीफॉर्म को आमतौर पर पानी उबालकर या क्लोरीन के साथ पानी का उपचार करके मारा जा सकता है। दूषित पानी के संपर्क में आने के बाद साबुन से अच्छी तरह से धोना भी संक्रमण को रोकने में मदद कर सकता है।
अनुपचारित मल पदार्थ पानी में अतिरिक्त कार्बनिक पदार्थ जोड़ता है जो सड़ जाता है, जिससे पानी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। यह कम ऑक्सीजन मछलियों और अन्य जलीय जीवों को मार सकता है।
खैर मेरा उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है लेकिन इतनी भीड़ में जान हथेली पर लेकर पुण्य कमाने की भावना विवेक और बुद्धि के साथ प्रकृति से भी अन्याय है। पुण्य कमाने गए लोगों की संयम और पवित्रता भी ऐसे में प्रश्नांकित है। ऐसा नहीं कह रहा हूँ की किसी ने जानबूझकर किया हो लेकिन इतनी हिम्मत और ईमानदारी रखिए की सुविधा विहीन परिस्थिति में समूह के समूह ऐसा करने को मजबूर हुए होंगे। विज्ञान धर्म का विरोधी नहीं है अपितु विवेकसाम्य निर्णय लेने का सामर्थ्य है उसकी व्याख्या को धर्म की भावना पर तरजीह देना कितना उचित है इसका मूल्यांकन स्वयं से सवाल करने से होगा।

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