
Akarsh"Pathik"
February 3, 2025 at 06:07 PM
बड़े तमाशे से गुजरी जिंदगी हमारी,
हर मोड़ पर कोई नई कहानी हमारी।
कभी हँसे, कभी रोए इस सफर में,
हर खुशी भी जैसे अधूरी हमारी।
जज़्बात मरते गए और हम पत्थर होते गए,
ख्वाब बिखरते गए, और हम खामोश होते गए।
जो अपना कहता था, वही पराया निकला,
हर अपने के घाव हमें बेहोश करते गए।
फिर भी कहीं न कहीं कोई चिंगारी बाकी है,
जो राख में दबी, पर जलने को राजी है।
शायद किसी मोड़ पर फिर सुबह होगी,
शायद फिर दिल में कोई ख्वाहिश जिंदा होगी।
– आकर्ष पथिक
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