
Akarsh"Pathik"
February 22, 2025 at 10:23 PM
हार के उस मोड़ पर…
फिर से ठोकर लगी, फिर से गिर पड़ा,
सपनों का क़ाफ़िला कहीं दूर जा छुपा।
हाथ में बस धूल थी, आँखों में पानी,
दिल ने कहा – "क्या सच में थी मेरी नादानी?"
रातों की मेहनत, उन सपनों के रंग,
सब धुंधले से लगे, दर्द के संग।
मंज़िल करीब थी, फिर भी छूट गई,
किस्मत से जैसे कोई रूठ गई।
पर हार ही आखिरी सच नहीं होती,
हर चोट कुछ सिखा के जाती है
गिर के उठना ही असली जीत है,
जो चलती रहे, वही श्रेष्ठ होती हैं।
तो आँखें पोंछ, फिर से खड़ा हो,
जो अधूरा है, उसे पूरा कर।
इक दिन वही सफर मिसाल बनेगा,
तेरा हौसला इक नया कमाल करेगा।
–आकर्ष पथिक
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