The Theist
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February 1, 2025 at 05:15 AM
*करो जतन सखी साँई मिलनकी* गुड़िया गुड़वा सूप सुपलिया, तजि दें बुधि लरिकैयाँ खेलनकी । देवता पित्तर भुइयाँ भवानी, यह मारग चौरासी चलनकी । ऊँचा महल अजब रँग बँगला, साँईं की सेज वहाँ लगी फूलनकी । तन मन धन सब अपनि कर वहाँ, सुरत सम्हार परु पइयाँ सजनकी । कहै कबीर निर्भय होय हंसा, कुंजी बता दयो ताला खुलनकी ।

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