The Theist
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February 21, 2025 at 01:07 AM
संत कबीर साहब के सहज भाव के बारे में कुछ दोहे: सहज मिले सो दूध सम, मांगा मिले सो पानी । कहें कबीर सो रक्त सम, जामें खींचा तानी । जो कोई आवे सहज में, सोई मीठा जान । कड़वा लागे नीम सा, जा में खींचातान ।। अर्थ - कबीरसाहेब यहां कहते है कि जो कोई सहज भाव से आता है, वो मीठा होता है। जिसमे खींचातान होती है, वह नीम जैसा कड़वा होता है। सहज सहज सब कोई कहे, सहज न जाने कोय। पाँचो राखे पसरतो, सहज कहावे सोय।। अर्थ - पाँचो राखे पसरतो का अर्थ है, पाँचो इंद्रियों को वश में करना। पाँचो इंद्रियों को वश में करके हमे अंतर्मुखी बनना है, proactive बनना है, reactive नही। इसलिए एक जगह कबीर साहेब कहते है। सहज सहज सब कोई कहे, सहज न जाने कोय। जा सहजे विषया तजे, सहज कहावे सोय।। अर्थ - जा सहजे विषया तजे का अर्थ है विषय और विकारों को सहज भाव से त्यागना। *सहज सहज सब कोई कहे, सहज न जाने कोय*। *जा सहजे साहिब मिले, सहज कहावे सोय* ।। 🌼

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