The Theist
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February 21, 2025 at 01:36 PM
*हेरत हेरत हे सखी, रह्या कबीर हिराई।* *बूँद समानी समुंद मैं, सो कत हेरी जाइ॥* साधना की चरमावस्था में जीवात्मा का अहंभाव नष्ट हो जाता है। अद्वैत की अनुभूति जाग जाने के कारण आत्मा का पृथक्ता बोध समाप्त हो जाता है। अंश आत्मा अंशी परमात्मा में लीन होकर अपना अस्तित्व मिटा देती है । यदि कोई आत्मा के पृथक् अस्तित्व को खोजना चाहे तो उसके लिए यह असाध्य कार्य होगा ।

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