
The Theist
February 26, 2025 at 08:03 AM
जनम तेरा बातों ही बीत गयो ।
तूने कबहुँ न राम कहयो ।।
तूने कबहुँ न कृष्ण कहयो ।।
पाचँ बरस का भोला-भाला, अब तो बीस भयो ।
मकर पचीसी माया कारण, देस बिदेस गयो ।
जनम तेरा बातों ही बीत गयो ।।
तीस बरस की अब मति उपजी, लोभ बढ़े नित नयो ।
माया जोरी लाख करोरी, अजहुँ न तृप्त भयो ।
जनम तेरा बातों ही बीत गयो ।।
वृद्ध भयो तब आलस उपजी, कफ नित कंठ रहयो ।
संगत कबहुँ न तूने कीनी, बिरथा जनम लियो ।
जनम तेरा बातों ही बीत गयो ।।
ये संसार मतलब का लोभी, झूठा ठाठ रचियो ।
कहत कबीर समझ मन मूरख, तू क्यूँ भूल गयो ।
जनम तेरा बातों ही बीत गयो ।।