The Theist
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February 26, 2025 at 05:30 PM
*आहारनिद्राभयमैथुनंच सामान्यमेतत् पशुभिर्नराणाम्* *थर्मोहितेषामधिको विशेषो धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः* चाणक्य इस श्लोक के माध्यम से बताते हैं कि मनुष्य किस प्रकार पशुओं से अलग है और कौन सी प्रवृति मनुष्य को श्रेष्ठ बनाती है । संसार के सभी जीवों की तरह मनुष्य भी उदर-पोषण, भय, निद्रा, संभोग और संतानोत्पति का काम करता है । इस दृष्टि से देखा जाए तो मनुष्य में और पशुओं में शारीरिक बनावट को छोड़ दें तो कुछ ज्यादा अंदर नहीं दिखता । लेकिन आचरण मनुष्य को पशुओं से अलग और श्रेष्ठ बनाता है । मनुष्य के आचरण में धर्माचरण अत्यंत महत्वपूर्ण है, यानी धर्म का ज्ञान और उसके मार्ग पर चलने की प्रवृति मनुष्य को पशुओं से अलग करती है । जो धर्म-कर्म और नौतिक गुणों से युक्त है, वास्तव में वहीं मनुष्य कहलाने का अधिकारी है. इसके विपरीत व्यक्ति में अगर धर्म-कर्म, नैतिकता न हो तो वह पशु के समान ही है । इसलिए नैतिक गुणों से युक्त व्यक्ति ही बुद्धिमान है ।

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