Vijay Pal
                                
                            
                            
                    
                                
                                
                                February 12, 2025 at 07:15 AM
                               
                            
                        
                            _“मन चंगा तो कठौती में गंगा”_ 
*गुरु रविदास जी का संघर्ष और संदेश* 
_“ऐसा चाहूँ राज मैं, जहाँ मिले सबन को अन्न।_
_छोट बड़े सब संग बसे, रैदास रहे प्रसन्न।।”_
क्या आज *गुरु रविदास जयंती* पर उनका नाम मात्र याद कर लेना ही पर्याप्त है, या फिर उनके संघर्ष और संदेश को अपनी ज़िंदगी में उतारने का भी संकल्प लेंगे? 
गुरु रविदास जी केवल एक आध्यात्मिक शिक्षक नहीं थे, बल्कि सामाजिक क्रांति के अग्रदूत भी थे। उन्होंने एक ऐसे समाज की कल्पना की, जहाँ कोई ऊँच-नीच न हो, कोई भेदभाव न हो, और हर व्यक्ति को आध्यात्मिक व सामाजिक समानता प्राप्त हो। लेकिन यह सफर आसान नहीं था।
*15वीं शताब्दी का भारत जातिवाद, अंधविश्वास और धार्मिक पाखंड के जाल में जकड़ा हुआ था।* धर्म को ज्ञान और मुक्ति का साधन नहीं, बल्कि ऊँच-नीच और सामाजिक नियंत्रण का औजार बना दिया गया था। 
गुरु रविदास जी एक साधारण चर्मकार (मोची) परिवार में जन्मे थे। उस समय समाज की निम्न मानी जाने वाली जातियों में पैदा होना किसी अपराध से कम नहीं था। मंदिरों में प्रवेश वर्जित था, धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने का अधिकार नहीं था, और ज्ञान को केवल उच्च जातियों का विशेषाधिकार बना दिया गया था। 
*लेकिन क्या गुरु रविदास जी ने इस अन्याय को स्वीकार कर लिया?* 
नहीं! उन्होंने समाज की रूढ़ियों को तोड़ा और धर्म को सही अर्थों में पुनर्स्थापित किया।
गुरु रविदास जी ने स्पष्ट किया कि आत्मा तक पहुँचने का मार्ग केवल जाति और कुल से तय नहीं होता—वह मन की सफ़ाई और सही कर्मों से तय होता है। 
मीराबाई, जो राजघराने में जन्मी थीं, उनकी अनन्य भक्त बनीं और अपने पदों में उन्हें ‘सद्गुरु’ कहा। चित्तौड़ की रानी झलकारी बाई उनकी शिक्षाओं से इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने उन्हें अपना गुरु मान लिया। कई अन्य राजा और विद्वान भी उनके ज्ञान से प्रभावित होकर उनके विचारों को अपनाने लगे। कुछ ही समय में, वे केवल दलित समाज के नहीं, बल्कि हर व्यक्ति के गुरु बन गए। उनकी वाणी गुरु ग्रंथ साहिब में भी संकलित की गई, जो उनकी व्यापक स्वीकृति को दर्शाती है।
*गुरु रविदास जी का जीवन संघर्षों से भरा था।* समाज ने उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश की, उन्हें मंदिरों से बाहर रखा गया, उनके प्रवचनों को बाधित करने का प्रयास किया गया, और उनकी शिक्षाओं पर सवाल उठाए गए। लेकिन उन्होंने हर चुनौती को सहन किया और अपनी शिक्षाओं से समाज को झकझोर दिया। उन्होंने धर्म और समाज के लिए एक नया दृष्टिकोण दिया—जो विवेक और कर्म पर आधारित था, जाति या जन्म पर नहीं।
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