
Vijay Pal
February 21, 2025 at 05:37 AM
क्या है, एवं कैसे करते थे योगी “हठयोग”
हठयोग के शाब्दिक अर्थ पर विचार करें तो ह और ठ दो शब्द हमारे सामने आते हैं, अर्थात हकार (सूर्य) तथा ठकार (चन्द्र)। नाड़ी के इस योग को हठयोग (Hatha Yoga) कहते हैं। हठ प्रदीपिका, स्वामी स्वात्माराम द्वारा लिखित एक ग्रंथ है। स्वामी स्वात्माराम गुरु गोरखनाथ के शिष्य थे। इसे हठयोग का ग्रंथ माना जाता है
हठ योग (Hatha Yoga) अथवा प्राणायाम की क्रिया तीन भागों में विभाजित की गई है इस प्रक्रिया को तीन चरणों में पूर्ण की जाती है जो निम्नलिखित है-
रेचक – यह क्रिया का पहला चरण रेचक का अर्थ है कि श्वास को सप्रयास बाहर छोड़ना।
पूरक - क्रिया के दूसरे चरण को पूरक कहा जाता है। जिसका अर्थ है श्वास को सप्रयास अन्दर खींचना है।
कुंभक – यह अभ्यास का तीसरा चरण है जिसे कुंभक कहा जाता है। इस क्रिया में सांस को सप्रयास रोके रखना होता है। कुंभक के दो प्रकार हैं
बर्हिःकुंभक – इस क्रिया में श्वास को बाहर निकालकर बाहर ही रोके रखना होता है।
अन्तःकुम्भक – इस क्रिया में सांस को अंदर खींचकर सांस को रोक कर रखना होता है।
इस प्रकार सप्रयास प्राणों को अपने नियंत्रण से गति देना हठयोग है।
हठयोग के प्रमुख अंग
षट्कर्म
षट्कर्म हठयोग में बतायी गयी छः क्रियाएँ हैं। यह आसन हमारे शरीर में शक्ति की वृद्धि करता है। इनसे हमारे अंदर सुख तथा शांति का समावेश होता है षटकर्म के अंतर्गत नेति, धौति, नौली, कपाल भाति, त्राटक और बस्ति आते हैं।
आसन
आराम और स्थिरता से जिसमें बैठ सकें वही उपयुक्त आसन माना जाता है। किंतु हठयोग में अनेक आसनों का वर्णन किया गया है।
प्राणायाम
प्राणायाम का अर्थ होता है प्राण पर नियंत्रण, यानी की सांस पर नियंत्रण साधना। हठयोग में कुंडलीनी जाग्रुती के लिये प्राणायाम को एकमात्र साधन माना गया है। इसी को कुंभक कहा जाता है।
मुद्रा
हठयोग (Hatha Yoga) में आसन और प्राणायाम की तरह मुद्रा भी कंडलीनी जाग्रुति का एक साधन है। यह आसान आपके मन को आत्मा के साथ जोड़ने में सहायता करता है।
प्रत्याहार
प्रत्याहार हठयोग का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस प्रक्रिया में हम अपनी इंद्रियों को साधते हैं और जब इसकी ज़रुरत होती है तभी इनका प्रयोग करते हैं।
ध्यानासन
जैसा की नाम से ही पता चलता है कि ध्यान लगाने के लिए किये जाने वाले आसनों को ध्यानासन कहा जाता है। इस आसन में ध्यान को साधा जाता है।
समाधि
आज के वक्त में हर व्यक्ति सुख व शांति के लिये प्रयासरत है। इसलिए ऋषि मुनीओं ने ऐसी आध्यात्म विद्या खोज निकली है जिससे व्यक्ति सुख शांति का अनुभव कर सकता है। इसी सिद्धांत को समाधि बताया गया है।