
Vijay Pal
February 26, 2025 at 08:21 AM
"जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग माल्याकाम्।डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम् ॥१॥
"जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम: ॥२॥
"धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥
"जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे।मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥४॥
"सहस्रलोचन प्रभृत्यशेष लेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः।भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥
"ललाटचत्वर ज्वलद्धनंजय स्फुलिंगभा निपीतपंच सायकं नमन्निलिंपनायकम्।सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥
"करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वलद्धनंजया धरीकृत प्रचंडपंचसायके।धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्र पत्रक प्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचने रतिर्मम ॥७॥
नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धर स्फुरत्कुहु निशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।निलिम्पनिर्झरी धरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥
प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा विडंबिकंठ कंधरारुचि प्रबंधकंधरम्।स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांध कच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥
अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्।स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांध कांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥
जयत्वद भ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगम स्फुरद्धगद्धगद्वि निर्गमत्करालभाल हव्यवाट्।धिमिद्धिमिद्धिमि ध्वनन्मृदंग तुंगमंगल ध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥११॥
दृषद्विचित्र तल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्र जोर्गरिष्ठ रत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः सम प्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम् ॥१२॥
कदा निलिंपनिर्झरी निकुंजकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्।विलोल लोललोचनो ललामभाल लग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥
निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-निगुम्फ निर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः।तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥१४॥
प्रचण्ड वाडवानल: प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना।विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥१५॥
इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्।हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहिनांं सुशङ्करस्य चिंतनम् ॥१६॥
पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे।तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मिंं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥
॥ इति श्रीरावणकृतं शिव ताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥