कविता का संगम
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                                February 13, 2025 at 07:00 AM
                               
                            
                        
                            दुख मिटता नहीं,
वह धीरे-धीरे किसी पुराने स्वेटर की तरह
ढीला हो जाता है,
और एक दिन हमें पहनना ही छोड़ देना पड़ता है।
••• 
दुख एक धीमी आँच है,
जो जलाती नहीं,
बस भीतर ही भीतर
राख में बदलती रहती है।
•••
दुख को बयान करने की जरूरत नहीं होती,
वह बिना कहे भी
आँखों के नीचे हल्की लकीरों में,
चुप रहने की आदत में
जगह बना लेता है।
•••
दुख का रंग काला नहीं होता,
वह कभी धूप में झिलमिलाता है,
कभी बरसात में घुल जाता है,
कभी किसी शाम की उदास चुप्पी में
रुककर साँस लेता है।
  - ~ आचार्य  आयुष  दुबे  जी  
                  🙏 💐💐💐🙏