
Sri Guru
February 1, 2025 at 08:14 AM
*प्रेम का आज़ाद संसार*
ये प्रेम ज़मीन का नहीं आसमानों से उतारा है,
इसका होने में जिस्म नहीं रूह को संवारा है!
लोग कहते हैं कि प्रेम आबाद तो कभी बर्बाद करता है,
लेकिन हमने जाना कि ये प्रेम तो सदा आज़ाद करता है!
ऐसी आज़ादी कि जिस में नहीं है कोई शिकायत दोनों जहानों से,
ऐसी आज़ादी कि जिसे बाँध न सके कोई मन के अरमानों से!
ये आज़ादी ऐसी, जिसे रूह के द्वार में खो कर ही है पाना,
ये आज़ादी ऐसी, जिसे रूहानियत में जी कर ही है जाना!
न करना अब तो मन की मालिकी पर यकीन तुम,
इसको (मन को) प्रेम की सुनती नहीं कभी कोई भी धुन!
होता है ये प्रेम तो मन के पार लग जाने से,
ये आज़ादी आती है किसी प्रेमी के प्रेम में खो जाने से!
हम भी खोए हैं अब इस प्रेम के अंतहीन आँगन में,
इसके होने से ही खिले हैं रंग ज़मीं-आसमानों के!
पुकारा है रूह ने फ़लक के पार से, अब इस बार
और आए हैं ज़मीं पर ही देने प्रेम का आज़ाद संसार!
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