
Sri Guru
February 10, 2025 at 07:17 AM
*कर्म और दृष्टिकोण*
अध्यात्म को अपनाने में हर मनुष्य के सामने एक बड़ी चुनौती आती है – अध्यात्म के लिए समय कहाँ है? शैक्षिक, व्यापारिक और पारिवारिक कर्तव्यों से भरे जीवन में, हम अध्यात्म को एक नियमित आधार पर जीवन का हिस्सा कैसे बना सकते हैं?
समय के अभाव के इस आभास है का मूल कारण यह है कि हम अध्यात्म को एक क्रिया के (या कुछ विशेष क्रियाओं के) रूप में देखते हैं, जबकि हमारे कर्तव्य हमारे जीवन का आधार बन जाते हैं।
आवश्यकता है इन दोनों भूमिकाओं के उलटफेर की। आप अपने कर्तव्यों के साथ न्याय तभी कर सकते हैं जब आप यह स्वीकार करें कि हर कर्तव्य का जीवन में एक सीमित स्थान है। दूसरी ओर, अध्यात्म एक दृष्टिकोण है, जीवन जीने का एक ढंग है। यह एक ऐसा नज़रिया है जो आपके द्वारा किए जाने वाले हर कर्म को जीवन के सर्वोच्च उद्देश्य से जोड़ता है – स्वयं की खोज। ध्यान करना, सत्संग और भक्ति सुनना, अवलोकन करना, या प्रकृति में समय बिताना – ये सभी क्रियाएँ इस नये दृष्टिकोण को अपनाने में सहायक रूप हो सकती हैं, परंतु वे अपने आप में आध्यात्मिक नहीं हैं। जब आपका पूरा जीवन ही आध्यात्मिक हो जाएगा, तो आपका प्रत्येक कृत्य एक आध्यात्मिक कर्म बन जाएगा।
अध्यात्म को जीवन का एक और कर्म न बनाएँ। जीवन के हर कर्म को अध्यात्म बनाएँ।
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