
Sri Guru
February 22, 2025 at 06:06 AM
*एक महीन रेखा*
अज्ञान और ज्ञान के बीच एक बहुत ही महीन रेखा है। लेकिन उस रेखा के दोनों ओर हवाएँ बिल्कुल विपरीत दिशाओं में बहती हैं।
*अज्ञानी*: एक तरह से देखा जाए तो संसार एक जेल है।
*ज्ञानी*: और मेरी नज़र से देखा जाए तो यह एक खेल है!
*अज्ञानी*: मनुष्य कितना बुरा है।
*ज्ञानी*: मनुष्य बस अधूरा है!
*अज्ञानी*: मनुष्य चतुर और स्वार्थी है, केवल अपने बारे में सोचता है।
*ज्ञानी*: मनुष्य मूर्ख है, जो अपना है उसे छोड़कर हर वस्तु के बारे में सोचता है!
*अज्ञानी*: दुनिया नफ़रत की अग्नि में जल रही है।
*ज्ञानी*: दुनिया उसके प्रेम और कृपा की वर्षा में संवर रही है!
*अज्ञानी*: यदि दुःख दूर करना है तो संसार से दूर जाना होगा।
*ज्ञानी*: यदि दुःख दूर करना है तो संसार में जाग जाना होगा!
*अज्ञानी*: तुम खुश हो क्योंकि तुमने सब कुछ छोड़ दिया है।
*ज्ञानी*: मैं आनंद में हूँ, क्योंकि मैंने सब कुछ पा लिया है!
*अज्ञानी*: इस दुनिया में नहीं चलता ऐसा संन्यास।
*ज्ञानी*: तो चलो उस दुनिया जहाँ है तुम्हारा और मेरा वास्तविक आवास!
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