
Chander Shaker Azad
February 2, 2025 at 10:33 AM
जवाहरलाल नेहरू और डॉ अम्बेडकर हिंदू कोड बिल लाना चाहते थे।
इस बिल के पास होने पर महिलाओं को जो अधिकार मिलने थे, वो थे:
* महिलाओं को संपत्ति में अधिकार,
* इंटर-कास्ट शादी,
* तलाक का अधिकार,
* बहूविवाह पर रोक
* दूसरी जाति के बच्चों को गोद लेने की अनुमति मिलना
* शादी के लिए जाति आधारित रीति रिवाज़ो की समाप्ति
इस बिल के विरोध में मार्च 1949 में All India Anti Hindu Code Bill Committee बनाई गई थी।
इस कमेटी ने देश में सैकड़ों मीटिंग की और बिल के ख़िलाफ़ धर्मयुद्ध की कॉल दी।
11 दिसंबर, 1949 को RSS ने दिल्ली के रामलीला मैदान में बिल के विरोध में रैली की। अगले दिन RSS ने असेंबली (संसद भवन) का मार्च किया और बिल और नेहरू विरोधी नारे लगाए।
इस मार्च में RSS कार्यकर्ताओं ने नेहरू और डॉ अंबेडकर के पुतले जलाए। आंदोलन का नेतृत्व स्वामी करपात्री महाराज ने किया था, जो ब्राह्मणों के क्षेत्र में एक अछूत अंबेडकर के दखल के ख़िलाफ़ थे।
1950 और 1951 नेहरू -अंबेडकर ने बिल पास करने की कई बार कोशिश की। लेकिन RSS और दूसरे रूढ़िवादियों के विरोध के कारण सफल नहीं हुए। ये रूढ़िवादी कांग्रेस में भी थे, महिलाओं को अधिकार देने को धर्म विरुद्ध मानते थे।
RSS के कार्यकर्ता बैच बना कर दिल्ली में आते और बिल का विरोध करते थे।
17 सितंबर 1951 को स्वामी करपात्री और उनके लोगों ने संसद का घेराव किया, जिसमें लाठीचार्ज भी हुआ।
इन विरोधों के कारण बिल पास नहीं हो सका। निराश डॉ अंबेडकर ने अक्टूबर 1951 में मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा दे दिया।वो ऐसे मामले में नेहरू से अधिक गंभीरता और संकल्प की उम्मीद रखते थे।
लेकिन नेहरू गंभीर भी थे और उनका संकल्प मज़बूत भी था। अंबेडकर के इस्तीफ़े के बाद वो भी बिल पास करवाने की कोशिश करते रहे, हालाँकि संघ- हिंदू महासभा के साथ साथ कांग्रेस के कई दिग्गज भी उनकी इस कोशिश के विरोधी थे।
इस बीच, 1952 का पहला लोकसभा चुनाव घोषित हो गया। ये बिल नेहरू के चुनाव का मुख्य मुद्दा बन गया।
जनसंघ और हिंदू महासभा ने नेहरू के ख़िलाफ़ पहला लोकसभा चुनाव इसी एक मुद्दे पर लड़ा था। उन्होंने नेहरू के ख़िलाफ़ एक धर्मगुरु प्रभु दत्त ब्रह्मचारी को उतारा। उस चुनाव में ब्रह्मचारी केवल एक ही मुद्दा उठाते थे - हिंदू रीति रिवाजों में कोई संवैधानिक बदलाव नहीं होना चाहिए और महिलाओं को धर्म विरोधी अधिकार देने वाला बिल पास नहीं होना चाहिए।
लेकिन नेहरू ने धार्मिक रूढ़िवादियों के ख़िलाफ़ उन्होंने झुकने से मना कर दिया। उन्होंने मानो अपने पहले लोकसभा चुनाव को महिला अधिकारों पर जनमत संग्रह में बदल दिया था।
इस चुनाव में नेहरू ने और कांग्रेस ने ज़बरदस्त जीत हासिल की। कांग्रेस को देश भर में 364 सीट मिली, जनसंघ को 3 और हिंदू महासभा को 4 सीट ही मिली थी।
नेहरू और डॉ अंबेडकर का महिलाओं को अधिकार देने प्रयास संघ और हिंदू महासभा को चुनाव में हरा कर ही आगे बढ़ सका था। उसी के बाद नेहरू ने हिंदू कोड बिल को चार अलग अलग बिल में बांट कर संसद में पास किया था।
आज भारत की महिलायें जो कर सकी हैं, उनकी स्थिति में आज़ादी के बाद जो बदलाव हुआ है, उसमें नेहरू-अंबेडकर की सोच का और संघर्ष का पूरा योगदान है।
अगर नेहरू पहला चुनाव इस मुद्दे पर हार जाते, जनसंघ- हिंदू महासभा का उम्मीदवार जीत जाता, तो देश की महिलाओं को न जाने कितने दशक या सदियाँ इंतज़ार करना पड़ता!
डॉ अम्बेडकर की निराशा और इस्तीफ़े का कारण RSS- हिंदू महासभा का और दूसरे रूढ़िवादियों का ज़बरदस्त विरोध था। आज संघ के लोग मजबूरी में डॉ अंबेडकर को मानते हैं क्योंकि उनका विरोध राजनैतिक रूप से ख़तरनाक है। लेकिन बाबा साहेब के जीते जी उनका विरोध इतिहास में दर्ज है
*बहुजन सामाजिक कार्यकर्ता*
आपका भाई शिवम कुमार
( बिजनौर उत्तर प्रदेश )
💙 जय भीम नमो बुद्धाय 💙