
जय क्षात्र धर्म⚔️🚩🚩
February 10, 2025 at 05:42 AM
आज एक ओर जहां वो लोग हैं जो हर rajputised caste को क्षत्रिय/राजपूत बनाना चाहते हैं, तो दूसरी ओर वो प्रतिवादी (reactionary) राजपूत हैं जो राजपूतीकरण का विरोध करते करते समाज की उपजातियों को स्वीकारने से भी इनकार करते हैं।
हर समाज के स्थानांतरण के कारण या अन्य सामाजिक कारणों से उपजातिया बनती रहीं हैं। निःसंदेह राजपूत क्षत्रिय वंशों जा एक ट्राईबाल किनशिप ग्रुप है, किन्तु इसमें गत 600 सालों में ब्राह्मणवाद का प्रभाव पड़ा जिस कारण उपजातियों का उदय होता रहा।
उदाहरण : यह हेंडल पूर्वांचल की नमक उत्पादक नोनिया जाति और एनसीआर की खाकी चौहान (राजपूत उपजाती) को समतुल्य बता रहे हैं।
नोनिया जाति 20वि सदी में खुदको सीधा सम्राट पृथ्वीराज चौहान तृतीय का वंशज घोषित करती आई हैं। स्वाभाविक है कि एक जाति का एक वंश और वो भी एक व्यक्ति जो सम्राट था, का वंशज बतलाना हास्यस्पद और अविश्वसनीय है।
किन्तु एनसीआर की जमींदार खाकी चौहान जाति यह नहीं कहती कि हम किसी सभी किसी एक सम्राट के वंशज हैं या हम चौहान हैं । खाकी चौहानो का नाम ही इसलिए पड़ा क्योंकि इनमें सबसे बड़ी आबादी चौहानो की है और इनकी वर्तमान जागीरों में बसावट चौहान साम्राज्य द्वारा ग़ज़नविद साम्राज्य से संघर्ष के समय बनी - किन्तु इनमें चौहान (बचस खाप), सोलंकी (भाल खाप), गहलोत इत्यादि भी हैं।
यही arrangement बुंदेलखंड में मुख्य बुंदेला (गहरवार) वंश ने बुंदेला परमार और धाँधेरा चौहानो को लेकर भी बनाया जो अब पुनः मुख्यधारा के क्षत्रिय समाज में मिल गया है । मालवा साइड के सोंधिया परिहारों ने भी ऐसी arrangement बनाई थी जो पुनः main क्षत्रिय समाज में विलय होने लगे हैं।
रवा राजपूतों में केवल 6 वंशों के गाँवों ने एक अलग उपजाती बनाई - चौहान, तंवर, परमार, यदुवंश, गहलोत और कछवाह।
यह ठीक वैसे है जैसे राजस्थान में मुस्लिम राजपूतों की जाति कायमखानी कहलाने लगीं , किन्तु इसमें सिर्फ करमचंद चायल चौहान के वंशज थोड़ी हैं, अन्य चायल चौहान भी हैं, मोहिल चौहान भी हैं, अहाड़ा गहलोत इत्यादि भी हैं।
एक और विचारणीय बात है कि खाकी हो या रवा यह सभी जनरल में ही आती हैं अर्थात इन्होंने ना तो नमक बनाने का काम शुरू किया ना इन्होंने अपना क्षत्रिय कर्म छोड़ा और ना अपनी जागीरे खोयीं।
हालाँकि राजस्थान, गुजरात और हिमाचल में ऐसे भी क्षत्रिय/राजपूत हैं बहुत तादात में हैं जो भूमिहीन हो गए, जैसे जालौर के नातारायत राजपूत और भोमिया राजपूत, करड़िया राजपूत, हिमाचल के राठी राजपूत। (यहां नतारायत, भोमिया, करड़िया, राठी केटेगरीज़ हैं ना की वंश)।
आप तमिल नाडु जाओगे तो आपको बोन्दीली समाज मिलेगा जो राजा तेजसिंह बुंदेला के साथ दक्षिण में गए बुंदेला उपजाती से ही बनी।
इनसे अलग एक केस है, उन जातियों का जो हम राजपूतों से ही बनीं किन्तु अब वो अलग समाज हैं।
बाकी, राजस्थान की माली जाति मुलतः राजपूतो से ही निकली है - यह वह भूमिहीन राजपूतों से बनी है जिन्होंने पारम्परिक क्षत्रिय कर्म छोड़कर शुद्ध खेती का काम शुरू किया। सिंध से भाग कर आने वाली विदेशी जाटों की मारवड़ ढूंधाड़ में बसावट से पूर्व यही माली (राजपूत) इस क्षेत्र के शुद्ध किसान थे। हालांकि मालियों का केस अलग हैं - उनका निकास राजपूतों से ज़रूर है किन्तु खाकी, रवा इत्यादि की तरह वे उपजाति नहीं बोले जा सकते। किन्तु इनका सम्बन्ध भी किसी डांगी, नोनिया, ग्वाला, खंगार, लोधीयो, गोचर, जाट इत्यादि के फरजी क्लेम जैसा नहीं है --- यही कारण कि क्षत्रिय समाज की सभी उपजातियों के ही समान राजपूत मालियो की कुलदेवीयां भी वहीं हैं। यही स्टेटस राजपूतों से बिश्नोई संप्रदाय या सीरवी संप्रदाय में जुड़े लोगों की भी है - दोनों संप्रदाय राजपूतों द्वारा ही शुरू किए गए थे।।
*जय क्षात्र धर्म* 🚩