
Kitabganj / किताबगंज
February 1, 2025 at 03:18 AM
कल रात एक ख्याल आया था, सोच रही थी कि मैं क्या करुँगी अगर किसी दिन तुम मुझे भूल गए।सोचकर हँसी आयीं! और फिर पता नहीं क्यों मैं सोचने में जुट गयी।
अगर किसी दिन तुम मुझे भूल गए, तो मैं पहाड़ो में एक घर लूँगी। जिस घर की लाइब्रेरी के एक खाने में तुम्हारे दी हुई किताबें रखी होंगी। लेकिन उनमें से दो किताबें जर्जर हो चुकी होंगी, एक होगी गुनाहों का देवता और दूसरी होगी ठीक तुम्हारे पीछे।
शाम को मैं उस घर के बरामदे में।ओल्ड मोंक का एक पेग हाथ मैं लिए शॉल ओढ़कर बैठी हूँगी, लेकिन अब उस शॉल मैं जले हुए के छेद होंगे और कोने मैं चूहों ने कतरन कर झालर बना रखी होगी। मैं फ़ोन पर फ़रीदा ख़ानुम का गाना चला कर मेरे और तुम्हारे फेवरेट अन्तरे कि लाइनें गाऊंगी।
रात को क़रीबन ढ़ाई बजे मैं अपनी स्टडी मैं बैठकर एक बार फिर से चन्दर और सुधा को पढूंगी। उस डेस्क के एक कोने मैं सिगरेट के बचे हुए टुकड़े होंगे और नीचे चाय के खाली कपों की बारात होगी। दूसरी तरफ एक पिले रंग का लैंप जल रहा होगा। फिर मैं तीन बजे चाय बनाने उठ जाऊंगी, इतनी रात को बर्तनों को आवाज हो रही है इस वजह से मुझे एंग्जायटी होगी और हाथ मैं पसीने आने लगेंगे।
फिर मैं वापस डेस्क पर आ कर एक नया सिगरेट जलाऊंगी और हमारी इंडिया गेट वाली तस्वीर को लैंप के नीचे पकड़ कर देखूंगी। अब नज़रें कमजोर हो चुकी होंगी मेरी, इसलिए चश्मा होगा और बाल भी चाँदी होने लग चुके होंगे, लेकिन लंबे होंगे।
चाय ख़त्म कर के मैं एक बार तुम्हे फिर से याद करुँगी, अपनी दिल्ली याद करुँगी और फिर उसी किताब पर आँखे मूंद सो जाया करूंगी।
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मैं अब पहाड़ों में रहती हूँ। यहाँ भी एक किताबों की शेल्फ हैं। यहाँ की किताबें मैं देख नहीं पाती। पढ़ने की आदत छूट रही है। मैंने शराब पीना छोड़ दिया है। अब सिगरेट खरीदने के पैसे नहीं होते।
शॉल कही गुम हो गया। फ़रीदा ख़ानुम का गाना गाते हुए गला भर आता है। चाय पीने की आदत भी छूट रही है। मेरे बाल अब पहले से ज्यादा छोटे हैं और अबतक चाँदी नहीं हुए।
हाँ लेकिन एक बात जो ठीक वैसी ही हुई जैसे अंदाजा लगाया था, तुम मुझे वाक़ई में भूल गए।
🔹श्रेया वानखेड़े
(लेख और फ़ोटो)
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