Kitabganj / किताबगंज
Kitabganj / किताबगंज
February 6, 2025 at 04:15 AM
हर रोज़ घर के बाहर कदम रखते ही बर्फ गिरती है मेरे हृदय में- तुम्हारी स्मृति को अपने ठण्डेपन से ये दुनिया ढकती जा रही है मेरे हृदय में। और कॉलेज के बाद से अभी तक मेरे हृदय ने कभी सूर्य नहीं देखा। दुनिया में सूरज का उगना हमारे स्कूलों में पढ़ाया गया एक झूठ है। मेरी चिता की लकड़ियां मेरी ऑफिस की मेज से तो आ जाएंगी पर ये दुनिया इतनी ठंडी हो चुकी है कि मेरे ठंडे हृदय के घात से ठण्डे पड़े शरीर को जलाने के लिए इसके पास आग नहीं बचेगी। सभ्यता कवि को घर और दफ्तर के बीच में मार तो देगी पर उससे पीछा नहीं छुड़ा पायेगी।। (फ़ोटो: किताबगंज)
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