Kitabganj / किताबगंज
Kitabganj / किताबगंज
February 11, 2025 at 06:45 PM
एक नदी गुज़रती है मेरे मन के बिल्कुल बीच से। इस पार सब है तुम नहीं उस पार तुम हो सब नहीं। वो नदी जो है मेरे मन की पिछले दिनों से उफान पे है- बाढ़ आयी है- और एक किनारा डूबेगा। मैं चाहता हूँ कि जिधर तुम खड़े हो, वो रह जाये, मेरे मन का बाकी हर कोना बह जाये।। (फ़ोटो: अज्ञात) (2017 : जब मेरे मन की नदी सूखी न थी) #पुरानीKavita
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