
Kitabganj / किताबगंज
February 13, 2025 at 06:18 PM
मैं अब अपने घर
एक स्वप्न की तरह ही
आता हूँ
साल में
एक दो बार
बस कुछ देर के लिए।
अपने माँ-बाप के सपनों का
पीछा करते करते
मैं इतनी दूर आ निकला
जहां से सिर्फ
स्वप्न बनकर वापिस आया जा सकता है
व्यक्ति बनकर नहीं।।
(फ़ोटो: Close-Up, 1990)
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