
Kitabganj / किताबगंज
February 14, 2025 at 04:21 AM
इस बार के विश्व पुस्तक मेले की एक खास बात ये रही कि भारतीय सूचना सेवा के दो बेहद प्रिय सीनियर्स, सुप्रिया मैम और अजित सर को जब पता चला कि मैं फ़लाँ स्टॉल पर हूँ तो वो खुद ढूंढते हुए आ गए। बातें करते उन्होंने हमें प्रकाशन विभाग के स्टॉल पर आमंत्रित किया, जहां पर एक बहुत खास कोने ने ध्यान खींचा।
वहाँ पर इस बार प्रकाशन विभाग ने एक कोना अपने अतीत के लिए रखा था, जहाँ पर आज़ादी के बाद से अब तक प्रकाशित की हुई मैगज़ीन और किताबों की मूल प्रतियां थीं। सर ने बताया कि हम सब जो यूपीएससी के वक़्त जो कुरुक्षेत्र और योजना पढ़ा करते थे, वो 1957 से प्रकाशन विभाग द्वारा निकाले जा रहे हैं।
भारतीय साहित्य का एक हिस्सा भी प्रकाशन विभाग के 'योजना' से जुड़ा है। आधुनिक भारत के महान लेखकों में से एक श्री खुशवंत सिंह 1957 में 'योजना' के चीफ एडिटर रहे हैं।
साथ ही में प्रकाशन विभाग ने 'बाल भारती' के पुराने अंक सहेजे थे। बचपन में पढ़ी मैगज़ीन के सहेजे इतिहास को देखकर लगा कि चलो कहीं तो मेरा बचपन बचा हुआ है अभी तक।
नश्वर दुनिया में कहानियां बचा लेना एक दुस्साहस है जो सिर्फ मनुष्य ही कर सकता है। उसमें भी किताब के पन्नों को बचा लेना, एक युग को सहेज लेना है। प्रकाशन विभाग के उस हिस्से में वो कहानियां भी थी जो शायद मेरे पुरखों के हाथों से गुज़रीं हो। वो कविताएँ भी थी, जिसे किसी ने किसी के लिए चुरा लिया हो। प्रकाशन विभाग ने अपने स्टॉल के उस हिस्से में हम आम लोगों के इतिहास को सहेजा था, उम्मीद है कि वो हमें आगे भी ऐसे ही ज़िंदा रखेंगे।
(विश्व पुस्तक मेले से)
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